क्या बिहार और यूपी में विपक्षी पार्टियों ने पिछले चुनाव में बीजेपी की बंपर जीत से निपटने का कोई तरीका ढूंढ लिया है? राजनीतिक पंडितों की माने तो यह बात कुछ हद तक सही भी है। जदयू और राजद गठबंधन बिहार में भाजपा की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है।
वहीं यूपी में समाजवादी पार्टी भगवा पार्टी की सबसे बड़ी विरोधी है। इन तीनों पार्टियों का मानना है कि बीजेपी के उदय के पीछे हिंदुओं की उसके साथ एकता है। इसलिए अगर उन्हें चुनाव जीतना है तो इस एकजुटता को तोड़ना होगा।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो बिहार में अगड़े-पिछड़ों के मुद्दे और यूपी में रामचरितमानस पर समाजवादी पार्टी के रोज बयान देने के पीछे यही रणनीति अपनाई जा रही है।
इसके जरिए दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों को अन्य जातियों के खिलाफ खड़ा कर हिंदू समाज को बांटने की कोशिश की जा रही है, ताकि अगले आम चुनावों में बीजेपी को हिंदुओं की एकजुट ताकत का फायदा न मिल सके।
इसी सोची समझी रणनीति के तहत बिहार में जाति गणना की जा रही है, जिसका नतीजा सामने आने पर दलितों और पिछड़ों को ज्यादा अधिकार देने के नाम पर हिंदू समाज को एकजुट होने से रोका जा सकता है।
बिहार की उसी रणनीति को यूपी में भी लागू किया जा रहा है। यूपी में सपा के बड़े नेता स्वामी प्रसाद मौर्य हिंदुओं के बड़े ग्रंथ श्री रामचरितमानस की रोजाना आलोचना कर रहे हैं। जिसका पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन किया है।
अब मौर्य ने एक बार फिर मोहन भागवत के बहाने ब्राह्मणों के खिलाफ बयान दिया है। इस बयान में उन्होंने केंद्र सरकार से रामचरितमानस को संशोधित कर दोबारा लिखने की मांग की है।
मौर्य (स्वामी प्रसाद मौर्य) ने एक ट्वीट में कहा, 'पंडितों (ब्राह्मणों) द्वारा जाति व्यवस्था बनाई गई है, यह कहकर आरएसएस प्रमुख श्री भागवत ने महिलाओं, आदिवासियों, दलितों और पिछड़ों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले तथाकथित धर्म के ठेकेदारों और ठेकेदारों की आलोचना की। धर्म की आड़ में लोग कपटियों की कलाई खोल दी। कम से कम अब तो रामचरितमानस से आपत्तिजनक टिप्पणी हटाने के लिए आगे आइए।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो बिहार-यूपी में बीजेपी विरोधी पार्टियां 2024 के आम चुनाव तक इसी रणनीति पर चलती रहेंगी।
उनकी ओर से लगातार दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के मुद्दे उठाए जाएंगे, ताकि समाज के एक बड़े वर्ग को यह संदेश दिया जा सके कि उनके साथ अन्याय हो रहा है।
ऐसे में अगर हिंदू समाज का एक छोटा सा हिस्सा भी बीजेपी से अलग हो जाता है तो विपक्षी पार्टियां आसानी से अपनी जाति और वर्ग विशेष के वोटों से चुनाव जीत सकती हैं.