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सुप्रीम फैसला: Live-in Relationship की पैदाइश भी संपत्ति में उतने ही हकदार जितनी शादीशुदा जोड़े से जन्मी संतान, जानिए पूरा मामला

ChandraVeer Singh
Supreme Court decision On live-in relationship : हमारे देश में वैसे तो लिव-इन रिलेशिप को अब आधुनिक दौर में अपराध नहीं माना जाता है, लेकिन जब इस रिश्ते की पैदाइश जब समाज के बीच रहती है तो उसे नाजायज कहा जाता है या उसे हेय दृष्टि से देखा जाता है। ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर एक बड़ा वर्डिक्ट दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि पुरुष और महिला सालों तक पति-पत्नी की तरह साथ रहते हैं, तो ये मान लिया जाता है, ये माना जाएगा कि दोनों के रिश्तों में वहीं गंभीरता थी जो वास्तव में शादीशुदा जोड़े के बीच होते हैं और उनके रिश्तों को शादीशुदा की तरह ही देखा और माना जाएगा। इसी आधार पर उनसे पदौ हुए बच्चों का पैतृक संपत्ति पर भी हक होगा।

केरल HC ने लिव-इन रिलेशन से उत्पन्न संतान को नहीं माना था संपत्ति में हकदार

दरअसल ये पूरा मामला संपत्ति विवाद को लेकर था। साल 2009 में केरल हाईकोर्ट ने इस मामले में पैतृक संपत्ति पर लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे पुरुष-महिला के बेटे को पैतृक संपत्ति पर अधिकार देने से साफ इनकार कर दिया था। पीड़ित इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले गया। अब सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को पलटते हुए कहा कि बेटे को पैतृक संपत्ति पर हक देने से मना नहीं किया जा सकता।

लिव-इन रिलेशनशिप में संपत्ति के अधिकार को लेकर मामला क्या था?

केरल में संपत्ति को लेकर मामला अदालत में चल रहा था, वो कत्तूकंडी इधातिल करनल वैद्यार की थी। कत्तूकंडी के चार बेटे थे- दामोदरन, अच्युतन, शेखरन और नारायण।
याचिकाकर्ता का कहना था कि वो दामोदरन का बेटा है, वहीं प्रतिवादी करुणाकरन का कहना था कि वो अच्युतन का बेटा है। शेखरन और नारायण की अविवाहित रहते हुए ही मौत हो गई थी।
करुणाकरन ने कोर्ट में बताया कि वही सिर्फ अच्युतन की इकलौती संतान है, बाकी तीनों भाई अविवाहित थे। उसका आरोप था कि याचिकाकर्ता की मां ने दामोदरन से शादी नहीं की थी, बल्कि वे लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे थे। इसलिए वो वैध संतान नहीं हैं, लिहाजा उसे संपत्ति में हक नहीं दिया जाना चाहिए।

ट्रायल कोर्ट ने भी लिव-इन रिलेशनशिप को वैध माना , लेकिन हाईकोर्ट ने पलट दिया था फैसला

संपत्ति को लेकर ये डिस्पुट ट्रायल कोर्ट में पहुंचा। यहां कोर्ट ने माना कि दामोदरन लंबे समय तक चिरुथाकुट्टी के साथ रहा, इसलिए माना जा सकता है कि दोनों ने शादी की थी। इसके बाद ट्रायल कोर्ट ने संपत्ति को दो हिस्सों में बांटने का आदेश दे दिया।
इसके बाद प्रतिवादी ये मामला केरल हाईकोर्ट में ले गया। यहां कोर्ट ने कहा कि दामोदरन और चिरुथाकुट्टी के लंबे समय तक साथ रहने के सबूत नहीं हैं और दस्तावेजों से साबित होता है कि वादी दामोदरन का बेटा जरूर है, लेकिन वैध संतान नहीं है।

अब सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ये फैसला

मामला जब सुप्रीम कोर्ट गया तो अदालत ने माना कि इस बात के सबूत हैं कि दामोदरन और चिरुथाकुट्टी लंबे समय तक पति-पत्नी के तौर पर रह रहे थे। भले ही शादी न की हो। जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने कहा कि यदि एक पुरुष और महिला लंबे समय तक पति-पत्नी के तौर पर साथ रह रहे हों, तो माना जा सकता है कि दोनों में शादी हुई थी। ऐसा अनुमान एविडेंस एक्ट की धारा 114 के तहत लगाया जा सकता है।
हालांकि, कोर्ट ने ये भी कहा कि इस अनुमान का खंडन भी किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए साबित करना होगा कि दोनों भले ही लंबे समय तक साथ रहे थे, लेकिन शादी नहीं हुई थी।

इस फैसले के क्या हैं मायने?

भारत में लिव-इन रिलेशनशिप में रहना क्राइम नहीं है, लेकिन अब तक लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे पुरुष और महिला से किसी संतान का जन्म होता है तो उसे पैतृक संपत्ति में अधिकार नहीं मिलता था। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे पुरुष और महिला से जन्मीं संतान को भी पैतृक संपत्ति में हक मिलने लगेगा। जब भी लिव-इन रिलेशनशिप से उत्पन्न संतान संपत्ति की मांग करेगा तो केरल के इस केस का हवाला दिया जा सकेगा।

पुश्तैनी संपत्ति कौनसी होती है?

यहां ये भी गौर करने की बात है कि संपत्ति भी दो तरह की होती है। एक वो होती है जो खुद कमाई जाती है और दूसरी वो जो पुश्तैनी यानि विरासत में मिलती है। विरासत में मिली संपत्ति को ही पैतृक संपत्ति कहा जाता है। पैतृक संपत्ति पर उत्तराधिकारियों का हक रहता है। यदि किसी व्यक्ति की बिना वसीयत बनाए ही मौत हो जाती है, तो ऐसी स्थिति में पैतृक संपत्ति पर बेटे-बेटियों का बराबर हक होता है।

उत्तराधिकारी अपनी इच्छा से संपत्ति के भागिदारी की सहमति के बिना बेच नहीं सकता

इस तरह के मामलों में हिंदू उत्तराधिकार एक्ट और भारतीय उत्तराधिकार एक्ट, दोनों ही लागू होते हैं। मुसलमानों के मामले में उनका अपना शरीयत कानून लागू होता है। हिंदू पुरुष के उत्तराधिकारियों का पैतृक संपत्ति पर बराबर-बराबर हक रहता है। कोई भी उत्तराधिकारी अपनी इच्छा से पैतृक संपत्ति को नहीं बेच सकता।

संपंत्ति पर बेटे या पोतों का जितना हक उतना ही बेटी और नवासी का भी

पैतृक संपत्ति में अब बेटा और बेटी दोनों को बराबर हक मिलता है। 2005 से पहले ऐसा नहीं होता था। 2005 से पहले तक पैतृक संपत्ति पर सिर्फ बेटों का ही हक माना जाता था, लेकिन अब बेटी को भी पैतृक संपत्ति में बराबर हक दिया जाता है। मसलन, जिस संपत्ति पर पोते का हक है, उसी पर नवासे का भी पूरा हक होगा।

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