देश की आबो हवा इस समय धार्मिक मतभेदों से प्रदूषित होती नजर आ रहे है। राम मंदिर का मुद्दा खत्म होता है तो काशी का ज्ञानवापी शुरू हो जाता है। अभी काशी का ज्ञानवापी खत्म भी नही हुआ कि मथुरा शाही ईदगाह विवाद अब कोर्ट में आ गया।
इस सब में आग में घी डालने का काम कर रहे हैं नेताओं के बिगड़े बोल। हाल में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा ने एक बयान देते हुए कहा है कि कोई मुसलमान देश में पैदा नहीं हुआ सब हिंदू थे।
रिपोर्ट के अनुसार हिमंत बिस्व ने ये बयान 22 मई को दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक कार्यक्रम में दिया है। बयान में उन्होंने कहा
“मदरसों का अस्तित्व खत्म हो जाना चाहिए। मदरसा शब्द गायब हो जाना चाहिए। हमें लगता है कि राज्य का पैसा किसी विशेष धर्म की धार्मिक शिक्षा पर खर्च नहीं किया जाना चाहिए।”हिमंत बिस्व सरमा, मुख्यमंत्री असम
मदरसों को लेकर इस बयान को लेकर फिलहाल तो कोई प्रतिक्रिया सामने नही आई है। लेकिन बता दें कि हैदराबाद मौलाना आजाद यूनिवर्सिटी के एक पूर्व चांसलर ने जब कहा कि मदरसों के छात्र बेहद प्रतिभाशाली होते है तो इस पर जवाब देते हुए बिस्वा ने कहा
“कोई भी मुस्लिम भारत में पैदा नहीं हुआ था। भारत में हर कोई हिंदू था, इसलिए अगर कोई मुस्लिम बच्चा अत्यंत मेधावी है, तो मैं उसके हिंदू अतीत को इसका क्रेडिट दूंगा।”हिमंत बिस्व सरमा, मुख्यमंत्री असम
असम के मुख्यमंत्री यहीं नही रूके उन्होंने साफ तौर असम के सभी मदरसों को भंग करने और सामान्य स्कूल में बदलने के अपनी सरकार के फैसले को सही ठहराया और अपने फैसले की पुष्टि करते हुए कहा
“जब तक मदरसा शब्द रहेगा, तब तक बच्चे डॉक्टर और इंजीनियर बनने के बारे में नहीं सोच पाएंगे. ऐसी शिक्षा व्यवस्था होनी चाहिए जो छात्रों को भविष्य में कुछ भी करने का विकल्प दे सके. किसी भी धार्मिक संस्थान में प्रवेश उस उम्र में होना चाहिए जहां बच्चे अपने निर्णय खुद ले सकें.”हिमंत बिस्व सरमा, मुख्यमंत्री असम
“अपने बच्चों को कुरान पढ़ाएं, लेकिन घर पर. स्कूलों में सामान्य शिक्षा होनी चाहिए. बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर और वैज्ञानिक बनने के लिए पढ़ाई करनी चाहिए.”हिमंत बिस्व सरमा, मुख्यमंत्री असम
आपको याद दिला दें कि साल 2020 में असम की हिमंत बिस्वा सरकार ने धर्मनिरपेक्ष शिक्षा प्रणाली को सुविधाजनक बनाने का हवाला देते हुए सभी सरकारी मदरसों को भंग करने और उन्हें सामान्य शैक्षणिक संस्थान में बदलने का फैसला किया था। सरकार के इस फैसले चुनौती देते हुए 2021 में 13 लोगों ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी।