राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने अपने सोमवार की शुरुआत एक ट्वीट के साथ की, इसमें उन्होंने बमुश्किल संकेत दे दिया कि 135 साल पुरानी पार्टी का भाग्य संवार उसे पुनर्जीवित करने को लेकर कांग्रेस के साथ उनकी बातचीत टूटने के बाद उनका अगला कदम क्या होने वाला है। (Prashant Kishor announced his party)
उनका ये ट्वीट एक सीक्रेट मैसेज की तरह एक सप्ताह बाद तब आया है... जब उन्होंने 2024 के आम चुनावों पर देश की सबसे पुरानी पार्टी की कमेटी एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप के सदस्य के तौर पर शामिल होने के उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। सूत्रों के अनुसार 45 वर्षीय पीके बड़े बदलाव लाने के लिए फ्री हैंड चाहते थे, न कि कोई बड़ा पद, जैसा कि कांग्रेस चाह रही थी।
उनके ऐलान ने ये इशारा दिया कि पीके अपने गृह राज्य बिहार लौटने वाले हैं, बता दें कि करीब चार साल पहले उनका यही राज्य राजनीतिक कार्यकाल के लिए उनका आधार रहा था। पीके जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी में शामिल हुए थे, वे केवल 16 महीने बाद जेडीयू से अलग हो गए थे।
हालांकि, उन्होंने अपने ट्वीट में इशारा देकर प्रशंसकों की अटकलों पर विराम लगा दिया है कि क्या वह एक नई राजनीतिक पार्टी शुरू करेंगे या एक विपक्षी संगठन में शामिल होंगे।
सूत्रों की मानें तो प्रशांत किशोर ने राज्य का दौरा करने की योजना बनाई है। और वहां सत्तारूढ़ भाजपा-जनता दल संयुक्त मोर्चे से दूरी बना ली है। माना जा रहा है कि अब पीके बिहार के मतदाताओं के साथ व्यापक रूप से कनेक्शन बनाने की प्लानिंग बना सकते हैं।
सूत्रों के अनुसार पीके की ओर से अपने स्तर पर एक राजनीतिक पार्टी का ऐलान करने से कांग्रेस के साथ उसके भविष्य की कोई भी बातचीत खतरे में आ सकती है। खतरे में पड़ जाएगी। राजनीति विश्लेषकों का मानना है कि प्रशांत किशोर अपने इस हार्ड कोर एनाउंसमेंट के लिए सालभर या छ माह की समय सीमा तय करनी चाहिए थी।
बता दें कि प्रशांत किशोर ने 2014 के आम चुनावों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अभियान के साथ एक चुनावी रणनीतिकार के तौर पर शुरुआत की, और फिर 2015 में बिहार में भाजपा को हराने में मदद की। पीके लंबे समय से प्रतिद्वंद्वी रहे लालू यादव और नीतीश कुमार के बीच एक गठबंधन कराने के भी सूत्रधार रहे थे।
वहीं पीके ने 2017 में कांग्रेस के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए पंजाब अभियान और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए रणनीति बनाई। यूपी में जब कांग्रेस कुछ कमाल नहीं कर पाई तो पीके ने कांग्रेस पार्टी की यूपी प्लानिंग के दौरान अपने हाथ बंधे होने की बात कही थी।
पीके ने आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी के लिए 2019 के कैंपेनिंग, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के 2020 के फिर से चुनाव में जीत दिलवाई, तो वहीं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की 2021 की जीत और उसी वर्ष भाजपा के खिलाफ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ऐतिहासिक जीत में प्रमुख भूमिका निभाई।
यह भी कहा जा रहा है कि ट्वीट में उन्होंने जन सुराज मेंशन किया है, वहीं उनकी नई पार्टी का नाम भी हो सकता है। सूत्रों के मुताबिक प्रशांत किशोर की पार्टी पूरी तरह से मॉडर्न होगी।
डिजिटल माध्यम से लोगों से जुड़ने पर अधिक ध्यान दिया जाएगा, और वैसे भी प्रशांत किशोर खुद सोश्यल मीडिया के इस्तेमाल में माहिर हैं। इससे पहले प्रशांत किशोर बीजेपी, जदयू, टीएमसी, कांग्रेस समेत कई पार्टियों के लिए चुनावी रणनीतिकार के तौर पर काम कर चुके हैं। गौरतलब है कि पीके ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि वह 2 मई तक अपने भविष्य पर फैसला ले लेंगे। उनके इस ट्वीट को उनके राजनीतिक भविष्य की घोषणा ही माना जा रहा है।
वहीं कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रशांत किशोर ने सही समय पर नई पार्टी की घोषण की है। वजह ये कि वे अपनी पार्टी लॉन्च करते हैं तो 2024 के चुनाव में उन्हें पर्याप्त समय मिल जाएगा‚लेकिन फिलहाल उन्होंने आम चुनाव को लेकर अपनी प्लानिंग को लेकर किसी भी तरह के पत्ते नहीं खोले हैं। देखा जाए तो राजनीतिक रणनीतिकार के तौर बड़ी शख्सियत बन चुके पीके को राजनीति के गिरते स्तर में एक सुधारक के तौर पर देखा जा सकता है।
अब देखना ये होगा कि एक पॉलिटिकल स्ट्रेटेजिस्ट्स से पार्टी बनाने वाले अपनी पार्टी को कहां तक ले जाते हैं। क्योंकि पॉलिटिक्स भी एक गेम ही है खास क्रिकेट से तुलना करें तो.... क्रिकेट में जरूरी नहीं हो जो हरफनमौला खिलाड़ी हो वो बेहतर कप्तान भी बन सकता है। रवींद्र जडेजा के साथ यही हुआ। बहरहाल पार्टी बनाने के बाद पीके को अभी कई चुनौतियों का सामना करना है। वे अब तक दूसरी पार्टियों की नैया पर सवार होकर माझी को रास्ता दिखा रहे थे... लेकिन अब उन्हें खुद अपनी नाव का माझी बनना होगा।