राजस्थान

DIPR ने सालभर पहले टेंडर निकालते समय ही कर ली थी सुजस घोटाले की प्लानिंग ?

SI News

राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में लगे सुजस घोटाले के आरोप अब आग पकड़ने लगे है । लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मंत्रालय का सिस्टम कैसे काम कर रहा है इसका अंदाज़ा आप इससे लगा सकते हैं की एंटी करप्शन ब्यूरो द्वारा जांच की अनुमति मांगने के बाद भी जांच नहीं हुई है ।

ऐसा क्यों हुआ ? सुजस मैगजीन पूरी पांच लाख की संख्या में छप रही है या नहीं, इसकी जांच क्यों नहीं हो रही ?

क्यों एंटी करप्शन ब्यूरो की टीम इस मामले में लिप्त अधिकारी और लोगों से पूछताछ नहीं कर रही ?

खुलासों ने उड़ा दिए होश

जब इन्डिलीक्स और सिंस इंडिपेंडेंस की टीम ने इस काण्ड की परतें खोलनी शुरू की तो होश उड़ गए ।

प्लानिंग पूरी पुख्ता थी और वो भी आज से नहीं बल्कि सालभर पहले से ।

जी हाँ जिस सुजस घोटाले की धुंआ अब सरकारी डिपार्टमेंट्स में उठने लगी है ।

उसकी तैयारी इस खेल के खिलाडियों ने सालभर पहले ही कर ली थी । इस खेल को पूरी प्लानिंग से रचा गया ।

टेंडर से ही हुई घोटाले की शुरूआत

अक्टूबर 2021 में अचानक सुजस की संख्या जब 5 लाख की गई तो वो कोई क्रांतिकारी कदम नहीं बल्कि मलाई चाटने के कार्यक्रम का पहला कदम था ।

जिस ज़माने में लोग अपनी स्कूल कालेज की पाठ्य पुस्तकों को भी ऑनलाइन पढ़ रहे हैं उस ज़माने में सुजस की संख्या सीधे पांच लाख कर दी गई, वो भी तब जब सुजस का ऑनलाइन एडिशन भी उपलब्ध है ।

ऐसा क्यों हुआ जब इस बात की परत खोलने बैठे तो पता लगा की 2021 में DIPR डिपार्टमेंट ने जो टेंडर निकाले थे खेल वही से शुरू हो गया था ।

विभाग ने सबसे पहले सुजस की संख्या पांच लाख की और उसके बाद 2021 में काम करने वाली कंपनियों को टेंडर देने के लिए आवेदन मांगे ।

मनमर्जी से बदल दिया टेंडर का पैटर्न

अब इस कम्पनी सेलेक्शन की प्रक्रिया में क्या खेल लिया उसे समझिये।

DIPR हर साल टेंडर निकालकर कई कंपनियों को सेलेक्ट करके एक पैनल बना लेता है और होने वाले कामों को सबमे बाँट देता है। ताकि काम जल्दी हो और बैकअप रहे।

लेकिन इस बार DIPR ने पुरोषत्तम शर्मा के नेतृत्व में कंपनियों का पैनल बनाने के बजाय केवल एक ही कम्पनी कृष्णा प्रिंटर्स को सेलेक्ट किया और सेलेक्ट करके सारा काम उसको सौंप दिया। हवाला ये दिया गया की इस बार टेंडर ही ऐसा था।

मतलब विभाग ने अपनी मनमर्ज़ी से सालों से चले आ रहे पैटर्न को बदल दिया।

घोटालाः मलाई ही मलाई

यानी कहानी कुछ यूँ बनती है की सबसे पहले छपने वाली मैगजीन की संख्या बढ़ा दो, फिर टेंडर निकालो, उसके बाद अपनी या अपने लिए काम करने वाली कम्पनी को उसमे सेलेक्ट करो

और ये सब करने के बाद वो मैगजीन पूरी छप भी रही है या नहीं ये मत देखो क्यूंकि खेल तो सब आपने ही रचा है और उसके बाद मलाई ही मलाई। यानी कि घोटाला।

योग्य ही नहीं है कृष्णा प्रिंटर्स

ये आरोप DIPR डिपार्टमेंट के माथे पर लगे हैं और इन आरोपों में कितनी सच्चाई है इस बात का अंदाज़ आप इससे लगाइये की जिस कृष्णा प्रिंटर्स का सेलेक्शन विभाग ने किया वो इस टेंडर के लिए ज़रूरी योग्यताएँ ही नहीं रखता था और विभाग ने उसको सेलेक्ट करने के मामले में गड़बड़ी की । प्रारंभिक तौर पर कम्पनी योग्य है या नहीं ये देखने के काम सुभाष दानोदिया का है जो की DIPR में फिनेन्स एडवाइजर के पद पर कार्यरत हैं।

तो ये अधिकारी कैसे काम करते हैं की इनको पता नहीं लगा की कृष्णा  प्रिंटर इस टेंडर की ज़रूरी योग्यताएं ही पूरी नहीं करता । या फिर इनकी सहमति और सहयोग से ये काम हुआ ?

कृष्णा प्रिंटर को डिपार्टमेंट ने असामान्य लाभ पहुचाये  इसकी पुष्टि खुद फाइनेंस डिपार्टमेंट ने भी की थी जिसके सबूत जल्द आपके सामने रखेंगे ।

अंत में बचते हैं केवल सवाल ही सवाल

तो अब सवाल ये बनता है की जो कम्पनी इस टेंडर के लिए योग्यता ही नहीं रखती उसको सेलेक्ट क्यों किया गया ?

तो क्या इसका ये मतलब समझा जाये की फ़र्ज़ी सुजस छापने के लिए अपनी ही किसी कम्पनी को टेंडर में पास करके सारा काम दे दिया।

यानी तुम मलाई खाओ और हमें भी खिलाओ।

 ये है आरोप लगने वाले सुजस घोटाले की अंदर की बात।

इस खेल में और कौन शामिल हैं जल्द ही आपको बताएँगे पर सवाल ये बनता है की जब इतनी गड़बड़ियां हैं तो एंटी करप्शन ब्यूरो को कार्यवाही करने से कौन रोक रहा है ?

क्या CM हाउस इसको कंट्रोल कर रहा है ? या  DIPR के अधिकारी ही चुपचाप इस मामले में मुख्यमंत्री  और ACB को गुमराह कर रहे हैं ?

अब देखना ये है की जनता के पैसों का घोटाला करने वाले ये खिलाडी कब तक बचेंगे क्यूंकि ACB में MN दिनेश जैसे तेज तर्रार अधिकारी काम करते हैं जिनके काम और दिमाग का लोहा हर कोई मानता है ।

Report By - A Kumar

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