राजधानी जयपुर में ऐसा कोई दिन नहीं होता जब कोई लो फ्लोर बस बीच राह खड़ी न मिले। लो फ्लोर बस यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने से ज्यादा बीच रास्ते खराब हो कर यात्रियों के लिए मुसीबत बन जाती है। कई किलोमीटर तक लगे लम्बे जाम से यातायात बाधित होता है, आम लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 25 जुलाई को भी हवामहल के ठीक सामने बीच सड़क लो फ्लोर बस खराब हो गई। हमेशा जाम की समस्या से जूझ रहे परकोटे में बस खड़ी होने से करीब 1 किलोमीटर लम्बा जाम लग गया। अपने काम-धंधे पर जाने में लोगों को देरी का सामना करना पड़ा।
जेसीटीएसएल लो फ्लाेर बसों के रखरखाव पर हर महीने करीब सवा करोड़ रुपए खर्च करता है। इसके बावजूद इन बसों में कभी शॉर्टसर्किट से आग लग जाती है तो कभी ब्रेकफैल हो जाते हैं। बस के टायर से लेकर शीशे तक सब के हालत जर्जर हो रखें है। अगर देखा जाए तो प्रदूषण फैलाने में लो फ्लोर बसों का हाथ सबसे ज्यादा होता है। इन बसों का मेन्टेन्स इतना खराब है कि 10 वाहनों के बराबर का धुँआ अकेली एक लो फ्लोर छोड़ती है।
जेसीटीएसएल करीब 300 बसों का संचालन करता है। इन 300 बसों के मेन्टेन्स का हर महीने करीब 1.25 करोड़ रूपये ठेकेदार को देता है इसके बाद भी किसी बस के शीशे टूटे है तो किसी के टायर खराब हो रखें है तो फिर इतना खर्चा किस चीज का आ रहा है? क्या ठेकेदार काम नही कर रहा है या जेसीटीएसल के 1.25 करोड़ से कोई अपनी जेब भर रहा है?