खाकी फाइल्स की किताब जब साहित्य के मंच पर खुली तो जिक्र कई मुद्दों को लेकर हुआ। जयपुर के डिप्टी कमिश्नर अजय पाल लाम्बा और एसीपी सुनील शर्मा से जब कार्तिकेय शर्मा द्वारा सवाल पूछा गया गया कि ‘वर्दी के साथ न्याय को सर्व करना में सुकून मिलता है या कलम के साथ? अजय पाल लाम्बा ने जवाब देते हुए कहा कि वर्दी के साथ न्याय करने का मजा ही कुछ और है। किसी के आंसू पौंछकर भेजने में जो सुकून मिलता है वो किसी में नहीं मिल सकता। कलम से न्याय तो मिलता है लेकिन उसमें वक्त ज्यादा लगता है।
लेकिन गोली से ज्यादा कलम लोगों को प्रभावित कर सकती है। सेशन में लाम्बा ने अपनी बुक ‘गनिंग आफ दा गॉड मैन’ का जिक्र करते हुए आसाराम बाबू जैसे लोगों से सतर्क रहने की हिदायत दी। अपने अनुभव साझा करते हुए लाम्बा ने कहा कि मेरे लिए कार्यवाही करना आसान था लेकिन बुक लिखना मुश्किल रहा। किसी विषय पर लिखते वक्त अपने दिमाग का हर दरवाजा खुला रखना पड़ता है।
बात जब संवेदना की आई तो लाम्बा ने अपने एक ट्रैफिक पुलिस के जवान का मकर संक्रांति का वीडियो दिखाया जिसमें वह बस रोककर एक बेजुबान पक्षी को तार से उतारकर उसकी जान बचाता है। वहीं डीवाई. एसपी ने सेशन में कई कविताएं सुनाई और कहा- हिन्दी ही नहीं दुनिया का कोई भी साहित्य हो, वह संवेदना मांगता है। जब हमारे शरीर पर वर्दी रहती है तब हम इसका कर्तव्य तो निभाते ही है, लेकिन याद रखिए जब हम वर्दी निकालकर निकलते है तब भी हमारे शरीर पर वर्दी ही होती है।