राजस्थान

Rajasthan: अपने घर में ही नहीं चला गहलोत का गारंटी कार्ड, सूरसागर में BJP की अब तक की सबसे बड़ी जीत

Om Prakash Napit

Rajasthan Assembly Election 2023: निवर्तमान सीएम अशोक गहलोत चुनाव के पहले कहते रहे कि उनकी योजनाओं का अंडर करंट चला है, जिसके बूते वे सत्ता में लौटेंगे। लेकिन उनके गृह नगर में चल रहे अंडर करंट को वे नहीं पहचान पाए।

यहां कांग्रेस की सबसे बुरी हार सूरसागर में हुई। हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की इस सीट पर गहलोत ने युवा मुस्लिम चेहरे को इस उम्मीद के साथ उतारा कि इस बार चुनाव जीत जाएंगे, लेकिन यहां से पिछले तीन चुनावों की सबसे भीषण हार झेलनी पड़ी।

सूरसागर विधानसा सीट पर भाजपा को कुल 117065 वोट मिले। ये कुल वोटों का 58.27% है। वहीं कांग्रेस को 78306 वोट मिले, जो कुल वोटों का 38.98% है। भाजपा प्रत्याशी देवेंद्र जोशी ने इस सीट पर कांग्रेस के शहजाद खान को 38,759 वोटों के भारी अंतर से हराया।

यह है ध्रुवीकरण की मिसाल

सूरसागर में हिंदू मतों का ध्रुवीकरण का विस्फोट इस कदर हुआ कि कांग्रेस प्रत्याशी तीन दर्जन बूथों पर दहाई का आंकड़ा पार नहीं कर पाया। ध्रुवीकरण मुस्लिम मतों का भी हुआ जो हर बार होता है, जिसके चलते भाजपा उम्मीदवार भी 12 बूथ पर दहाई पार नहीं कर सके और दो बूथ पर इकाई तक सीमित रहे। यही कारण था कि 25 राउंड की गिनती में कांग्रेस प्रत्याशी शहजाद खान सिर्फ चार राउंड में आगे रहे, लेकिन तब तक भाजपा के देवेंद्र जोशी की बढ़त इतनी हो गई थी कि पीछे करना मुश्किल हो गया था।

2018 में 16 बूथ पर दहाई में सिमटी थी भाजपा

सूरसागर सीट पहले सुरक्षित सीट थी, तब भी 1990 से 2003 तक कांग्रेस एक बार ही जीती थी। 2008 में नए परिसीमन के बाद सामान्य सीट बनी, तो भाजपा की सूर्यकांता व्यास यहां से लड़ने लगी। उन्होंने तीन चुनाव जीते। हर बार जीत का अंतर 15 हजार के अंदर रहा। 2018 के चुनाव में भाजपा 5763 मतों से जीती। इस चुनाव में 14 बूथ पर भाजपा दहाई में सिमटी, जबकि कांग्रेस सिर्फ 7 पर। 14 में भी 5 बूथ पर 10 से भी कम मत मिले थे।

अल्पसंख्यक ही कर रहे थे शहजाद का विरोध

कांग्रेस से सूरसागर में अंतिम बार विधायक 1998 में भंवर बलाई सुरक्षित सीट से जीते थे। इसके बाद से गहलोत अल्पसंख्यक को ही उतार रहे हैं। इस बार जब शहजाद को टिकट दिया, तो सबसे ज्यादा विरोध अल्पसंख्यकों ने ही किया। उन्होंने कहा कि सरदारपुरा बचाने के लिए हमें यहां टिकट देते हैं, लेकिन मजबूत उम्मीदवार नहीं उतारते हैं। इसके बाद कई इस्तीफे भी हुए, जिसका असर भी दिखा। अल्पसंख्यकों की वोटिंग कम हुई।

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