दुनियाभर में विश्वगुरु बनने का जो ख्वाब प्रधानमंत्री मोदी समेत पूरा देश देखता है उस ख्वाब के पूरे होने से पहले कई तरह की चुनौतियाँ इसके ऊपर कुंडली मार के बैठी है। इन सभी चुनौतीयों में सबसे प्रमुख है बेरोजगारी(Unemployment) का मुद्दा, जिसको लेकर देश की तमाम राजनीतिक पार्टीयां एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाती रहती है लेकिन देश के विकास के लिए सबसे जरूरी मसले का समाधान ढूंढने की कोशिश नहीं करती।
वैसे खैर कोशिश न करने के पीछे एक वाजिब कारण भी है, अव्वल तो ये की इस मुद्दे पर अगर काम किया गया तो फिर भारतवर्ष की तमाम पार्टीयों को खुद को बेहतर साबित करने के लिए रोजगार के बेहतरीन विकल्प आम जन को देने होंगे, जो कि हमारी सरकार के बस का रोग नहीं है, क्यूंकी ऐसा होने पर जनता के पास अपने आप सरकार के कामकाज का ब्यौरा परोक्ष रूप से पहुंच जाएगा, जो देने से कोई भी सरकार डरती है।
बात प्रदेश की ही कर ले, देश में बेरोजगारी(Unemployment) का आंकडां 7.83%(अप्रेल) है। CMIE के आंकड़ों के मुताबिक मार्च 2022 में शहर में बेरोजगारी(Unemployment) की दर 9.22% रही थी तो वही ग्रामीण क्षेत्रों में यह 7.18% रही थी। अब इस मसले पर प्रदेश के हाल देखे तो मालूम चलेगा की प्रदेश में तो बेरोजगारी(Unemployment) से हाहाकार मचा हुआ है। 27.1 की बेरोजगारी(Unemployment) की दर के साथ राजस्थान लिस्ट में दूसरे नंबर पर है।
इस बात को यूं एकदम चर्चा में लाने के पीछे की वजहै भी जान लीजिए, प्रदेश में पुलिस कांसटेबल कि हाल ही में भर्ती निकली है जिसके लिए 18 लाख 86 हजार अभ्यर्थियों ने आवेदन किया है और भर्ती केवल 4 हजार 588 पदो पर ही होनी है। परीक्षा के लिए उमडने वाली भीड का ख्याल रखते हुए राज्य सरकार ने प्रदेश के केंद्रीय बस स्टैंड सिंधी कैंप(Sindhi Camp) से संचालित होने वाली करीब 1000 बस आम नागरिको के लिए ससपेंड कर रखी है।
इन बसों से 13 - 16 मई तक कांस्टेबल परीक्षा के अभ्यर्थी ही सफर करेंगे, जिसके चलते 20000 से भी ज्यादा सामान्य यात्री रोजाना परेशान हो रहे है और न चाहते हुए भी या तो प्राइवेट बस के धक्के खा रहे है और या फिर पेड टेक्सी के सहारे ट्रेवेल करने को मजबूर है। सिस्टम की लापरवाही इस हद तक है की इतना बड़ा कदम लेने के बाद उसने इस संबंध में कोई सूचना बोर्ड तक नहीं लगा रखा जिसके वजह से यात्री सिंधी कैंप तक जाते है और फिर दोबारा अनमने मन से किसी और साधन का रुख करते है।
खैर फ़िलहाल बात करते है बेरोजगारी की, प्रदेश का रिकॉर्ड रहा है की इसे लगभग हर सरकारी नियुक्ति को देर से जारी करने की लत पड़ चुकी है। या तो कभी प्रश्न पत्र में गड़बड़ी देखने को मिलती है, तो कभी आरक्षण या फिर आंसर की में कोई मसला देखने को मिल जाता है। इन सबके बाद भी जब अभ्यर्थियों का हौसला नहीं टूटता तो मालूम चलता है की पेपर ही लीक हो गया(REET की परीक्षा नाम तो सुना ही होगा। बीते साल विभिन्न सरकारी परीक्षाओ में करीब 70 लाख बेरोजगार शामिल हुए थे। सरकार द्वारा निकाले जाने वाली भारतीयों में देरी के चलते बेरोजगार दिन ब दिन बढ़ते जाते है तो कुछ ओवरऐज हो जाते है।
समाधान क्या है
समाधान तो जी कुछ भी नहीं है। समय से परीक्षाएं ली जाये, परीक्षा का आयोजन कैसे होता है ये सरकार UGC से सीखे, और अच्छे से पूरी तैयारी करके परीक्षाओ के समय रहते परिणाम भी घोषित करें। लेकिन ऐसा होने वाला नहीं है, क्यूंकि राज्य सरकारे जान बूझकर भर्तियों को निकालते वक्त चुनावों का ख्याल करती है और उसी के अनुसार फिर नियुक्ति करती है।