लेखक - सुनिधि शुक्ला
होली का नाम सुनते ही हम सबके मन में एक ही शब्द आता हैं - रंग । होली खुशियों और रंगो का त्यौहार हैं। होली एक ऐसा त्यौहार हैं जहाँ दुश्मन भी एक दूसरे को प्रेम से गले लगाते हैं। हमारा भारत देश विविधताओं का देश हैं। यहाँ होली का त्यौहार अलग - अलग जगह अलग - अलग तरह से मनाया जाता हैं। होली की जब भी बात होती है तो एक शब्द जेहन में आता है कि बुरा ना मानो होली है। मतलब ये कि होली के दिन किसी को भी बुरा नहीं मानना है। हमारे देश में हर चार कोस पर पानी और बोली बदल जाती है तो भला होली एक जैसी कैसे हो सकती है। तो आइए आप भी शामिल हो जाइए हमारी होली की टोली में, और कीजिए सैर देश की उन जगहों की जहां होली का अंदाज भी निराला है और मिजाज भी :
बरसाना जहां होली के दिन महिलाएं लठ्ठ मार मार कर मर्दों का करती हैं बुरा हाल
भारत के समाज में लठ्ठ दरअसल मर्दों के हाथों में ही नजर आता है क्यों कि घर के बाहर का काम मर्दों के जिम्मे रहा करता था। लेकिन बीते समय में भी एक दिन ऐसा मुकर्र था जिस दिन महिलाएं लठ्ठ चलाती थी और मर्दों को उनकी मार झेलनी पड़ती थी। इस परंपरा को लठ्ठ मार होली का नाम दिया गया और प्यार से लठ्ठ खाने को आज भी होली के दिवाने तैयार रहते हैं।प्यार और दीवानगी से सराबोर ये रिवाज है बरसाना का जहां कभी कान्हा अपने साथियों के साथ होली खेला करते थे। आज भी पूरे भारत में बरसाना की लट्ठमार होली काफी लोकप्रिय है। बरसाना होली का त्यौहार अनूठे तरीके से मनाए जाने के कारण केवल भारत में ही नहीं पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं । बरसाना की लट्ठमार होली भगवान श्रीकृष्ण द्वारा की जाने वाली लीलाओं की पुनरावृत्ति की तरह हैं । जिस तरह राधारानी और उनकी सखियाँ श्रीकृष्ण और ग्वालों पर हँसी-ठिठोली करते हुए लाठीयाँ बरसाया करती थी और श्रीकृष्ण और ग्वालें भी मार से बचने के लिए ढालों का प्रयोग करते थे , उसी प्रकार बरसाना की महिलायें भी होली के दिन पुरुषों पर लट्ठ बरसाती हैं और पुरुष ढालों से खुद को बचाते हैं। इसकी सबसे ख़ास बात यह हैं की यह मारना-पीटना ख़ुशी के माहौल में होता हैं। बरसाना की होली देखने लोग दुनियाभर से आते हैं।
बरसाना में होली खेलते लोग
उदयपुर में होली के रंग में रंग जाते हैं हाथी-घोड़े भी
अंदाज शाही लिबास शाही और होली राज शाही ये होली है उदयपुर की। सालों से चली आ रही ये परंपरा आज भी उतनी ही मशहूर है जितनी राजा रजवाड़ों के दौर में हुआ करती थी। झीलों की नगरी की ये होली आज भी उदयपुर की शाही होली के नाम से प्रसिद्ध हैं । अगर आप शाही होली का आनंद लेना चाहते हैं तो इस होली उदयपुर जरूर जाइये। यहाँ होली के दिन सिटी पैलेस में शाही निवास से मानेक चौक तक शाही जुलूस निकाला जाता हैं। जुलूस में सजे-धजे हाथी, घोड़ो को भी शामिल किया जाता हैं। गीत-संगीत के साथ यहाँ होली बड़े धूमधाम और अलग अंदाज़ में मनाई जाती हैं। उदयपुर की होली की ख़ास बात ये है की यहाँ लोगों के साथ-साथ आपको हाथी-घोड़े भी होली के रंगो में रंगे दिखाई देंगे।
वृन्दावन जहाँ लोग फूलों से खेलते हैं होली
ब्रजभूमि ने होली की प्राचीन परम्पराओं को आज तक जीवित रखा हैं। वृन्दावन की फूलों वाली होली बहुत लोकप्रिय हैं। वृन्दावन के बांके बिहारी मंदिर में होली का त्यौहार 40 दिन तक मनाया जाता हैं। यह एकादशी से शुरू होकर पूर्णिमा तक खेली जाती हैं। होली के दिन बांके बिहारी के भक्त देश-विदेश से ब्रजभूमि पर होली मनाने के लिए आते हैं। यहाँ शुद्ध केसर का रंग का बनाया जाता हैं जिससे सबसे पहले श्रीबाँकेबिहारी को लगाया जाता हैं फिर होली के महोत्सव का शुभारंभ किया जाता हैं। बसंत पंचमी को बांके बिहारी मंदिर में गुलाल उड़ाने के साथ ही यहाँ होली का त्यौहार शुरू हो जाता हैं।
वृन्दावन में होली में मग्न लोग
कर्नाटक की हम्पी होली में नाचते- गाते हुए उड़ाया जाता हैं गुलाल
वैसे तो होली भारत के उत्तर राज्यों का त्यौहार हैं पर कर्नाटक के हम्पी की होली देश-विदेश में प्रसिद्ध हैं। हम्पी कर्नाटक का वह सुंदर स्थान हैं जिसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया हैं। यह नगर विदेशी पर्यटकों का आकर्षण केंद्र हैं। यहाँ साल भर ही पर्यटकों को आना-जाना लगा रहता हैं लेकिन मार्च के महीने में काफी पर्यटक साइट सीइंग के साथ ही होली मनाने भी आते हैं। यहाँ होली का त्यौहार दो दिन तक मनाया जाता हैं। यहाँ ढोल-नगाड़ो के साथ जुलूस निकालते हुए नाचते-गाते हुए गुलाल उड़ाया जाता हैं। इस दिन स्थानीय लोगों के साथ पर्यटक भी भारी संख्या में जुलूस में शामिल होते हैं।
पंजाब में तलवारों से खेली जाती हैं होली
पंजाबियों में एक अलग ही जोश और उत्साह देखने को मिलता हैं। सिर्फ पंजाब के लोग ही नहीं उनके त्यौहार भी जोश से भरपूर होते हैं। अगर आप पंजाबी स्टाइल में होली मनाना चाहते हैं तो आपको पंजाब के आनंदपुर साहिब की होली जरूर देखनी चाहिए। यहाँ होली अलग अंदाज़ में मनाई जाती हैं, जिसे होला- मोहल्ला के त्यौहार के नाम से जाना जाता हैं। होला - मोहल्ला के पर्व से पहले होली के दिन फूल और फूलों से बने रंगो को बिखेरने की परम्परा थी लेकिन इस पर्व पर होली के दिन फूलों की जगह वीरता का रंग बिखेरा जाता हैं। इसमें सिक्ख समुदाय के लोग कुश्ती , मार्शल आर्ट्स और तलवारों के साथ करतब दिखाते हैं।
पंजाब में तलवारों की होली
कोरोना के बाद ये पहला मौका है जब सब लोग बिना किसी रोक टोक के होली मनाने जा रहे हैं। उत्साह और उल्लास का ये त्यौंहार फीके पड़े बाजारों को अपने रंगों में रंग देगा। हम उम्मीद करते हैं बारुद के ढ़ेर पर बैठे संसार को ये त्यौंहार अपने मतभेद भुलाकर साथ चलने का पैगाम देगा,और रूस युक्रेन संकट से सहमी हुई दुनिया को एक नए उल्लास से भर देगा। टीम सिन्स इंडेपेंडेंस की तरफ से सभी को होली की शुभकामनाएं।