Nirjala Ekadashi 2021 : साल की सभी 24 एकादशी में सबसे महत्वपूर्ण एकादशी निर्जला एकादशी है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। आज यानी सोमवार को देशभर में निर्जला एकादशी मनाई जा रही है, निर्जला एकादशी के दिन विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
एकादशी के दिन दान का भी विशेष महत्व है। इस दिन कपड़े और अनाज, घड़ा-गुड़, खजूर के पत्तों से बने पंखे, दही, आम, तरबूज, खरबूजा या जो भी क्षमता हो दान किया जाता है।
गरीबों और जरूरतमंदों को दान देना लाभकारी होता है। एकादशी व्रत का पालन करने के साथ-साथ इसका पारण भी विधि विधान से किया जाता है। द्रुक पंचांग के अनुसार यदि एकादशी का व्रत करने वाले लोग सभी नियमों का पालन करें तो वह व्रत उनके लिए बहुत फलदायी साबित होगा।
एकादशी के व्रत को समापन को पारण कहते हैं। व्रत के अगले दिन द्वादशी पर सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना जरूरी होता है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो भी पारण सूर्योदय के बाद ही होता है।
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। एकादशी का व्रत करने वालों को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण नहीं कर पाया है तो फिर उसे मध्याह्न के बाद ही पारण करना चाहिए।
एकादशी के दूसरे दिन द्वादशी पर प्रात:काल स्नान आदि करें। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा कर उनसे अंजाने में हुई भूल को लेकर क्षमा याचना करें। इसके बाद व व्रत पारण से पहले ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। हालांकि जो लोग ऐसा करने में असमर्थ हों तो वह ब्राह्मण भोजन के निमित्त कच्चा सामान (सीधा) किसी मंदिर में या फिर सुपात्र ब्राह्मण को थाली सजाकर दे सकते हैं। इसके बाद वे एकादशी व्रत का पारण कर सकते हैं।