धर्म

मुस्लिम पक्ष ज्ञानवापी मस्जिद मामले में विष्णु जैन को क्यों हटाना चाहता है ?

1947 में आजादी के समय धार्मिक स्थलों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। वहीं, इस पर हिंदू पक्ष ने कहा कि नमाज पढ़ने से कोई जगह मस्जिद नहीं बन जाती।

Deepak Kumawat

ज्ञानवापी मस्जिद मामले में जिला जज ए.के. विश्वेश की अदालत में सुनवाई शुरू हो गई है। आज हिंदू पक्ष अपनी दलीलें पेश कर रहा है। इससे पहले मंगलवार को मुस्लिम पक्ष ने अपनी दलीलें पूरी की थीं। इसके बाद हिंदू पक्ष ने दलीलें रखीं। उधर, सुनवाई से पहले मुस्लिम पक्ष ने नई याचिका दायर की है। इसमें वकील विष्णु जैन को हटाने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि विष्णु जैन वादी और प्रतिवादी दोनों पक्षों से केस लड़ रहे हैं।

तकनीकी आधार पर याचिका खारिज
मुस्लिम पक्ष की ओर से दायर याचिका पर हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि तकनीकी आधार पर याचिका खारिज हो जाएगी। उन्होंने कहा, वह सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन यहां हम हिंदू पक्ष की ओर से बहस कर रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने यूपी सरकार की ओर से वकालतनामा दाखिल नहीं किया। इतना ही नहीं, विष्णु शंकर जैन ने कहा, ऐसे में यूपी सरकार सिर्फ औपचारिक पार्टी है। अयोध्या मामले में भी ऐसा ही था, जो सभी आदेशों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करता है।
मेरे खिलाफ साजिश के तहत आरोप लगाए जा रहे हैं। यह मूल मुद्दे से ध्यान भटकाने की एक बड़ी साजिश है। लेकिन कोर्ट में यह नहीं चलेगा। तकनीकी आधार पर मुस्लिम पक्ष की याचिका कोर्ट में नहीं टिक सकती। इस पर वह कल ही यूपी सरकार की एनओसी कोर्ट में दाखिल कर चुके हैं।
विष्णु शंकर जैन

जिला न्यायाधीश ए.के. विश्वेश ज्ञानवापी मस्जिद मामले में आज की अदालत में फिर से सुनवाई चल रही है। कल की सुनवाई में मुस्लिम पक्ष की ओर से 1991 के उपासना अधिनियम और 1936 के दीन मोहम्मद मामले का हवाला देते हुए उनके वकील अभय यादव ने कल अदालत में अपना पक्ष रखा था। इसके बाद हिंदू पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विष्णु जैन ने कल कोर्ट में अपनी बात रखी थी।

दरअसल, यह सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जिला अदालत में चल रही है। मुस्लिम पक्ष ने अपनी दलीलों में कहा कि हिंदू पक्ष का मामला चलने योग्य नहीं है और इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए। मुस्लिम पक्ष ने कहा कि ज्ञानवापी मामले में पूजा स्थल अधिनियम (विशेष प्रावधान), 1991 लागू है। मतलब 1947 में आजादी के समय धार्मिक स्थलों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। वहीं, इस पर हिंदू पक्ष ने कहा कि नमाज पढ़ने से कोई जगह मस्जिद नहीं बन जाती।

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