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बकरियां चराने वाली अनीसा बनीं तेज गेंदबाज, खेत में रोजाना 2 घंटे करती थी प्रैक्टिस, चैलेंजर क्रिकेट ट्रॉफी-19 में हुआ चयन

बाड़मेर जिले के एक छोटे से गांव कानासर की अनीसा बानो मेहत का चयन चैलेंजर क्रिकेट ट्रॉफी-19 में हुआ है. 27 अगस्त को जयपुर के सवाई मान सिंह स्टेडियम में हुए ट्रायल में उन्हें गेंदबाज के रूप में चुना गया। अनीसा समाज और जिले की पहली बेटी होंगी, जो राज्य की टीम के लिए क्रिकेट खेलेंगी. अनीसा का यहां तक ​​का सफर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है।

Manish meena

बाड़मेर जिले के एक छोटे से गांव कानासर की अनीसा बानो मेहत का चयन चैलेंजर क्रिकेट ट्रॉफी-19 में हुआ है. 27 अगस्त को जयपुर के सवाई मान सिंह स्टेडियम में हुए ट्रायल में उन्हें गेंदबाज के रूप में चुना गया। अनीसा समाज और जिले की पहली बेटी होंगी, जो राज्य की टीम के लिए क्रिकेट खेलेंगी. अनीसा का यहां तक ​​का सफर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है।

मैच होता तो बाउंड्री के पास बैठ जाती थी

अनीसा कानासर के छोटे से गांव की रहने वाली हैं, जहां घरों में

मवेशियों के अलावा भेड़-बकरियां रहती हैं। स्कूल से घर लौटते

समय अनीसा बकरियों को चराने के लिए खेतों में जाती थी। उन्हें

शुरू से ही क्रिकेट मैच देखने का शौक था। गांव में मैच हो तो वह

बाउंड्री के पास बैठ जाती थी। बकरियां चराने के दौरान वे दो घंटे

प्रैक्टिस करती थीं। इसकी शुरुआत उन्होंने 8वीं कक्षा से की थी।

दूसरे ट्रायल में बतौर गेंदबाज उन्हें टॉप 15 खिलाड़ियों में शामिल किया गया

जब अनीसा को लगा कि वह एक अच्छी खिलाड़ी बन सकती है, तो उसने गाँव के भाइयों और बच्चों के साथ अभ्यास करना शुरू कर दिया। 4 साल तक उन्होंने गांव के खेत में क्रिकेट का अभ्यास किया। जब उसके भाई को पता चला कि चैलेंजर ट्रॉफी-19 के लिए ट्रायल चल रहा है, तो अनीसा का भी रजिस्ट्रेशन करवा दिया। इससे पहले उन्हें टॉप 30 प्लेयर में चुना गया था। इसके बाद दूसरे ट्रायल में बतौर गेंदबाज उन्हें टॉप 15 खिलाड़ियों में शामिल किया गया।

आत्मविश्वास ने मुझे ताकत दी – अनीसा

अनीसा बताती हैं कि बचपन में भाई और पिता घर में टीवी पर क्रिकेट देखते थे। मैं मैच देखने के लिए उनके पास बैठा करता थी। इसी बीच मैंने क्रिकेट की प्रैक्टिस भी शुरू कर दी। विपरित परिस्थितियों में भी खुद पर भरोसा रखा और उसी को ताकत बनाया। अब राजस्थान क्रिकेट टीम में चयन होना किसी सपने से कम नहीं है।

गांव वाले भी ताना मारते थे

अनीसा के पिता याकूब खान पेशे से वकील हैं। वह बताते हैं कि कई बार उन्होंने अनीसा को समझाया कि पढ़ाई पर ध्यान दो, क्योंकि न जमीन थी और न ही सुविधाएं। कभी-कभी तो गांव के लोग भी उसे ताना मारते थे। वे कहते थे- बेटी को लड़कों के साथ क्यों खिला रहे हो, लेकिन अनीसा की जिद थी। वह क्रिकेट छोड़ने को तैयार नहीं थी। इसी जुनून के साथ वह राज्य की टीम में पहुंची हैं।

अनीसा घर में सबसे छोटी हैं

अनीसा बानो (16) की तीन बहनें विलायतो (21), लीला (19), अमीना (16) और एक भाई साहिदाद खान (25) हैं। अभी सभी बहनें और भाई पढ़ रहे हैं। अनीसा बानो के परिवार में किसी ने भी जिले के बाहर क्रिकेट नहीं खेला है। वह वर्तमान में कानासर के हायर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ रही है। भाई रोशन ने बताया कि पढ़ाई और खेल दोनों का माहौल नहीं होने के बाद वह राज्य की टीम में पहुंची हैं. खेत में प्रैक्टिस कर उसने यह मुकाम हासिल किया है। उन्होंने आठवीं कक्षा से ही अभ्यास करना शुरू कर दिया था।

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