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रावण के वंशजः राजस्थान के जोधपुर में रहते हैं रावण के वंशज, दशानन को जलते हुए नहीं देखते, मनाते हैं शोक

Manish meena

दशहरे के दिन जब पूरे देश में रावण का पुतला दहन किया जाता है तो राजस्थान में एक ऐसी जगह है जहां लोग इस अंत पर शोक मनाते हैं। यहां वही रावण मंदिर में भी पूजा जाता है। यह जगह श्रीलंका में नहीं बल्कि राजस्थान के जोधपुर में है। जहां श्रीमाली ब्राह्मण समाज खुद को रावण का वंशज और मंडोर को उनका ससुराल मानते है।

श्रीमाली ब्राह्मण समाज खुद को रावण का वंशज और मंडोर को उनका ससुराल मानते है

ऐसा माना जाता है कि जब रावण जोधपुर के मंडोर में शादी करने आये थे, तब बारात में ये ब्राह्मण उनके साथ आए थे। रावण विवाह करने के बाद वापस लंका चला गया, लेकिन ये लोग यहीं रह गए। तब गोधा गोत्र के श्रीमाली ब्राह्मण यहां रावण की विशेष पूजा करते आ रहे हैं। वे रावण को जलते हुए नहीं देखते, लेकिन उस दिन शोक मनाते हैं। श्राद्ध पक्ष में भी दशमी को रावण का श्राद्ध, तर्पण आदि भी किया जाता है।

दहन के बाद लोकाचार स्नान

अपनों की मृत्यु के बाद जिस प्रकार स्नान कर यज्ञोपवीत परिवर्तित होता है, उसी प्रकार रावण के वंशज दहल के बाद शोक स्वरूप स्नान कर वस्त्र बदलते हैं। श्रीमाली कमलेश दवे का कहना है कि जोधपुर में श्रीमाली ब्राह्मणों में गोधा गोत्र के ब्राह्मण रावण के वंशज हैं, इसलिए वे रावण को जलते नहीं देखते। इस गोत्र के 100 से अधिक परिवार जोधपुर में तथा 60 से अधिक परिवार फलोदी में निवास करते हैं।

रावण के वंशज होने का दावा

कमलेश दवे कहते हैं कि रावण के वंशज होने के कई प्रमाण हैं, उनमें से एक यह भी है कि हमारे गोत्र में विवाह के बाद त्रिजटा पूजा की जाती है। विवाहित त्रिजटा, जो अपभ्रंश त्रिज कहलाने लगी है। इस पूजा में अन्य महिलाओं के माथे पर सिंदूर की बिंदी लगाई जाती है। उसके बाद ही भोजन होता है। यह पूजा इतनी जरूरी है कि अगर कोई महिला किसी कारणवश ऐसा नहीं कर पाती और उसकी मृत्यु हो जाती है तो उसके नाम से यह पूजा की जाती है। रामायण में अशोक वाटिका की कथा में त्रिजटा पूजा का उल्लेख मिलता है। त्रिजटा को रावण की बहन भी कहा जाता है।

रावण के साथ मंदोदरी का मंदिर भी

रावण का मंदिर 2008 में मेहरानगढ़ की तलहटी में गोधा गोत्र के ब्राह्मणों द्वारा बनाया गया था। यहां शिव की पूजा करते हुए रावण की विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है। पुजारी अजय दवे का कहना है कि दशहरे पर रावण को जलाने के बाद उनके समाज के लोग स्नान कर यज्ञोपवीत बदल कर मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. रावण भी शिव का भक्त था इसलिए शिव की भी विशेष पूजा होती है। रावण के मंदिर के सामने मंदोदरी मंदिर भी बनाया गया है।

बच्चों में खत्म होता है डर

पुजारी अजय का कहना है कि रावण संगीतकार होने के साथ-साथ वेदों का ज्ञाता भी था। ऐसे में छात्र ज्योतिष और वेद सीखने से पहले रावण की पूजा करते हैं। जो बच्चे रात में डर जाते हैं, उनके परिवार उनके बच्चों को मंदिर लाकर धोक दिलाते हैं। इससे उनका डर खत्म हो जाता है।

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