डेस्क न्यूज़- भारतीय रेलवे (Indian Railways) के हर यात्री को यह जानकारी चौंका सकती है, दरअसल, ट्रेनों में सफर के दौरान मिलने वाले काले या भूरे मोटे कंबल को महीने में महज एक बार ही धोया जाता है, और तो और, ये हालात मुंबई दिल्ली राजधानी और अगस्त क्रांति राजधानी एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों में भी हैं, ये ट्रेनें मुंबई और दिल्ली के बीच नियमित तौर पर चलती हैं, यानी तकनीकी तौर पर यह कहना गलत नहीं होगा कि इन ट्रेनों के वातानुकूलित कोचों में मिलने वाले ये कंबल करीब 83 हजार किमी के सफर और हजारों यात्रियों के इस्तेमाल के बाद ही धोए जाते हैं,
एक आरटीआई के जवाब में रेलवे की ओर से ये जानकारी दी गई है, 64 साल के जतिन देसाई ने रेलवे से ये जानकारियां मांगी थीं, राहत की बात यह है कि सफर में कंबल के साथ मिलने वाले बेडरोल और तकिए के कवर हर रोज धोए जाते हैं और यात्रियों को ये हर बार फ्रेश ही दिए जाते हैं, देसाई के मुताबिक, 'मैं काफी ज्यादा यात्राएं करता हूं और कई बार मुझे इन ट्रेनों में गंदे और फटे कंबल मिले हैं, मेरा एक दोस्त तो अपने साथ खुद के कंबल लेकर सफर करता है, उसे भरोसा नहीं कि ट्रेनों में दिए जाने वाले कंबल साफ हैं भी कि नहीं, ये हमारे देश की प्रीमियम ट्रेनें हैं, ऐसे में मैं यह जानना चाहता था कि इन कंबलों को कितने वक्त के अंतराल पर धोया जाता है, इसलिए मैंने आरटीआई डाली,
पहले दो महीने में एक बार धुलते थे कंबल!
देसाई की आरटीआई के जवाब में उन्हें जवाब मिला कि लिनेन वाली चीजें ट्रेनों में हर बार इस्तेमाल के बाद धोई जाती हैं, वहीं कंबलों को महीने में एक बार धोया जाता है, इंडिया टुडे ने इस बारे में वेस्टर्न रेलवे के चीफ पब्लिक रिलेशन ऑफिसर से संपर्क किया,
सीपीआरओ रविंदर भाखर के मुताबिक, "कंबल आदि ऊनी चीजें हैं और ज्यादा से ज्यादा 50 बार धोए जाने लायक ही होती हैं, पहले तो इन कंबलों को दो महीने में एक बार धोया जाता था, लेकिन कुछ वक्त पहले से अब इन्हें हर महीने धोया जाने लगा है, ऊनी कंबलों को हर रोज धोना संभव नहीं है, गुजरते वक्त के साथ इन कंबलों के मटीरियल में तब्दील किया गया है ताकि इनको ज्यादा धोने के बावजूद भी इस्तेमाल किया जा सके,