मुकुल रॉय की घर वापसी पश्चिम बंगाल में भाजपा के लिए एक और बड़ा झटका है। करीब चार साल पहले भाजपा में आए मुकुल रॉय ने लोकसभा चुनावों के दौरान पार्टी की चुनावी रणनीति को पश्चिम बंगाल में जमीन पर उतारने में अहम भूमिका निभाई थी, जिसके बाद भाजपा में उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी भी सौंपी। लेकिन विधानसभा चुनावों के बाद बदली राजनीतिक परिस्थितियों में मुकुल रॉय खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे थे। मौका का फायदा उठाकर ममता उन्हें वापस लाने में कामयाब रहीं।
मुकुल रॉय ममता बनर्जी के बेहद करीबी रहे हैं। यह माना जाता है कि चुनावों
से पूर्व तक तृणमूल कांग्रेस में बड़े पैमाने पर हुई तोड़फोड़ में भी रॉय की
भूमिका रही है। लेकिन चुनाव नतीजों के बाद खास तवज्जो नहीं मिलने से
मुकुल रॉय बेहद आहत थे। उधर, भाजपा केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से शुभेंदु
अधिकारी को आगे बढ़ाए जाने से रॉय कहीं ज्यादा खफा हो गए थे। शुभेंदु को विपक्ष का नेता बनाया गया है।
यह माना जा रहा है कि रॉय की वापसी से तृणमूल कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास बढ़ेगा,
हालांकि वह चुनाव में शानदार जीत से पहले से भी बढ़ा है।
दूसरे, तृणमूल छोड़कर गए कई और नेताओं की घर वापसी के आसार भी बढ़ रहे हैं।
अगले कुछ दिनों में कुछ और नेताओं की वापसी के आसार हैं।
दूसरी तरफ भाजपा को हालांकि मुकुल रॉय के जाने से तुरंत कोई नुकसान नहीं है।
लेकिन यह माना जा रहा है कि इससे लोकसभा चुनावों की तैयारियों पर असर पड़ेगा।
दूसरे, अब भाजपा को बाहर से आए लोगों को अहम पद देने के फैसले पर भी फिर से नए सिरे से विचार करना पड़ सकता है। क्योंकि ऐसे समय में जब दूसरे दलों से भविष्य की तलाश में नेता भाजपा में शामिल हो रहे हों, ऐसे में एक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का छोड़कर जाना जनता में गलत संदेश देता है। भाजपा में बाहरी लोगों को बड़ी जिम्मेदारियां बहुत कम और सोच-समझकर ही दी जाती हैं। लेकिन इस मामले के बाद अब ऐसे मामलों में फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाना होगा।
माना जा रहा है कि मुकुल रॉय को तृणमूल कांग्रेस राज्यसभा भेज सकती है या फिर राज्य सरकार में मंत्री भी बना सकती है। राज्य में तृणमूल कोटे की दो राज्यसभा सीटें खाली हो रही हैं। वैसे, उन्हें पश्चिम बंगाल औद्यौगिक विकास निगम की जिम्मेदारी दिए जाने की भी संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं।