डेस्क न्यूज़- महाराष्ट्र में सहयोगी शिवसेना की चुनाव बाद बगावत ने भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर होने पर मजबूर किया तो झारखंड में पार्टी ने एक नया प्रयोग किया और पहली बार अपने दम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया, बीजेपी ने न सिर्फ पुरानी सहयोगी आजसू को छोड़ दिया, बल्कि केंद्र और बिहार सरकार में साथ जेडीयू और एलजेपी को भी अपने साथ नहीं रखा, नतीजा ये हुआ कि बीजेपी को झारखंड की सत्ता भी गंवानी पड़ी, ऐसे में सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या झारखंड के नतीजों ने एनडीए के बाकी घटक दलों को बीजेपी के सामने कड़ा रुख अपनाने का मौका दे दिया है, इन नतीजों का सबसे बड़ा असर बिहार में दिखाई दे सकता है, जहां 2020 में विधानसभा चुनाव होने हैं,
बिहार में बीजेपी के साथ वही दो दल (जेडीयू और एलजेपी) हैं, जिन्होंने झारखंड में उसके खिलाफ चुनाव लड़ा है, हालांकि यहां दोनों ही दलों को बहुत कम वोट मिला है, लेकिन बिहार में इन दोनों राजनीतिक पार्टियों का बड़ा दखल है, ऐसे में यहां नीतीश कुमार की जेडीयू और राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी सीट बंटवारे पर अपनी शक्ति दिखा सकती है,
नीतीश कुमार की जेडीयू और राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी सीट बंटवारे पर अपनी शक्ति दिखा सकती है,
झारखंड नतीजों पर कार्यक्रम में चर्चा करते हुए जेडीयू महासचिव पवन वर्मा ने भी बीजेपी को ऐसा संदेश देने का प्रयास किया, पवन वर्मा ने बीजेपी प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य सुधांशु त्रिवेदी को महाराष्ट्र की याद दिलाई, पवन वर्मा ने घटक दलों पर बीजेपी प्रवक्ता को नसीहत देते हुए कहा कि महाराष्ट्र में क्या हुआ सबने देखा और इस बाद झारखंड में आजसू के साथ हुआ, पवन वर्मा ने केंद्र और राज्यों का फर्क समझाते हुए कहा, 'बीजेपी को समझना पड़ेगा कि राष्ट्रीय मसले और लोकल मसले भले ही कॉमन लगें, लेकिन वो अलग होते हैं, यानी जेडीयू की तरफ से बीजेपी को इस तरह सार्वजनिक मंचों से संदेश देने की कोशिशें की जा रही हैं. इसके अलावा नागरिकता कानून और एनआरसी जैसे राष्ट्रीय मसले पर भी जेडीयू अपना रुख साफ कर चुकी है, जेडीयू ने भले ही संसद में नागरिकता संशोधन बिल का समर्थन किया हो, लेकिन बाहर उसकी तरफ से अलग सुर सुनाई दे रहे हैं, देशभर में CAA-NRC के खिलाफ जारी विरोध प्रदर्शनों के बीच जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार साफ कह चुके हैं कि बिहार में एनआरसी लागू नहीं किया जाएगा, जबकि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह संसद के अंदर कह चुके हैं कि एनआरसी पूरे देश में लागू किया जाएगा,
लोकसभा चुनाव में भी दिखे थे तेवर
इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में देश की जनता ने भले ही बीजेपी को 2014 से ज्यादा बहुमत दिया हो, लेकिन बिहार में सीट बंटवारे पर सहयोगी जेडीयू और एलजेपी ने अपना दम दिखाया था, 2014 में खराब प्रदर्शन करने के बावजूद जेडीयू ने बीजेपी के बराबर 15 सीटों पर चुनाव लड़ा और बीजेपी को एलजेपी की डिमांड भी पूरी करनी पड़ी थी,
नागरिकता कानून पर AGP का अंदाज बदला
झारखंड के नतीजों से पहले ही नागरिकता संशोधन कानून आने के बाद असम में बीजेपी के साथ सरकार चला रही असम गण परिषद् (AGP) ने भी तेवर दिखाए हैं, AGP इस कानून की खुले तौर पर मुखालफत कर रही है और पार्टी के अध्यक्ष प्रफुल्ल कुमार ने बीजेपी को बड़ा फैसले लेने तक की चुनौती दे दी है. हालांकि, असम में चुनाव 2021 में होने हैं, लेकिन नागरिकता कानून पर पहले से चली आ रही असम गण परिषद् की नाराजगी राज्यों में कमजोर हो रही बीजेपी के खिलाफ और बल दे सकती है,
हरियाणा में भी झारखंड जैसी तस्वीर देखने को मिल चुकी है, एनडीए की सहयोगी पंजाब की अकाली दल ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में खुले तौर पर मनोहर लाल खट्टर को निशाना बनाते हुए बीजेपी का विरोध किया, अब नागरिकता कानून पर भी अकाली दल के सुर बीजेपी से अलग सुनाई दे रहे हैं. अकाली दल ने नए नागरिकता कानून में मुस्लिमों को जोड़ने की भी मांग की है, यानी महाराष्ट्र में शिवसेना बीजेपी से अलग हो चुकी है, झारखंड में जेडीयू-एलजेपी-आजसू ने अलग-अलग चुनाव लड़े हैं और नागरिकता कानून आने के बाद असम गण परिषद् और अकाली दल के सुर भी विरोध में सुनाई दे रहे हैं, ऐसे में, कभी मार्च 2018 तक अपने दम पर या सहयोगियों के सहारे 21 राज्यों में सरकार चलाने वाली बीजेपी का सिकुड़ते सियासी मैप राज्यों के आने वाले चुनावों में उसके लिए कड़ी चुनौती बन सकते हैं,