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कभी सामने नहीं आई बालरुप गणेश की तस्वीर: मंदिर तक पहुंचने के लिए हर रोज तैयार की जाती थी एक सीढ़ी

अरावली पर्वतमाला पर जयपुर शहर में एक पहाड़ी पर स्थित, यह देश का एकमात्र मंदिर है जहाँ बिना सूंड के गणेश की मूर्ति है। यह मंदिर गढ़ गणेश के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि सवाई जय सिंह ने 18वीं शताब्दी में जयपुर की स्थापना के लिए यहां गुजरात के विशेष पंडितों को बुलाकर अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था।

Vineet Choudhary

डेस्क न्यूज़- आज आपको भगवान गणेश के ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे, जिसमें गणेश की तस्वीर आज तक सामने नहीं आई। इन बालरुप गणेश की तस्वीर कभी नही देखी होगी। इस गणेशजी के दर्शन करने के लिए आपको मंदिर में जाना पड़ता हैं क्योकि यहां फोटो लेना तभी बेन कर दिया था जब मंदिर का निर्माण हुआ था। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए हर रोज तैयार की जाती थी एक सीढ़ी, मनोकामना के लिए 365 सीढ़ियां चढ़कर गढ़ श्रद्धालु गणेश के दर्शन करते है।

Photo | Dainik Bhaskar

बिना सूंड के गणेश की मूर्ति

अरावली पर्वतमाला पर जयपुर शहर में एक पहाड़ी पर स्थित, यह देश का एकमात्र मंदिर है जहाँ बिना सूंड के गणेश की मूर्ति है। यह मंदिर गढ़ गणेश के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि सवाई जय सिंह ने 18वीं शताब्दी में जयपुर की स्थापना के लिए यहां गुजरात के विशेष पंडितों को बुलाकर अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था।

तब जयपुर की नींव रखते हुए बालरूप गणेश जी की मूर्ति बनाकर पूजा की गई। उसी गणपति की मूर्ति को किला बनाकर शहर की उत्तरी दिशा में अरावली की पहाड़ी पर विराजमान किया गया था। सवाई जय सिंह और यज्ञ करने वाले पुजारियों का मानना ​​था कि इससे भगवान गणेश की नजर पूरे शहर पर रहेगी। उनका आशीर्वाद प्राप्त होगा।

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मंदिर जाने के लिए रोज बनाई जाती थी सीढ़ी

जानकारों के मुताबिक करीब 500 फीट की ऊंचाई पर बने गढ़ गणेश मंदिर तक पहुंचने के लिए रोजाना एक सीढ़ी बनाई जाती थी। इस तरह पूरे 365 दिनों तक एक ही सीढ़ी का निर्माण चलता रहा। आज अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए दूर-दूर से सैकड़ों श्रद्धालु 365 सीढ़ियां चढ़कर मंदिर पहुंचते हैं और बिना सूंड के भगवान गणेश के दर्शन करते हैं।

300 साल बीत जाने के बाद भी गणेश प्रतिमा की फोटो आज तक सामने नहीं आई है।

इस मंदिर की स्थापना के साथ ही यहां फोटोग्राफी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। मंदिर के गर्भगृह में मौजूद मूर्ति की कभी फोटो नहीं खींची गई। ऐसे में मंदिर की स्थापना के 300 साल बाद भी भगवान गणेश की तस्वीर सामने नहीं आई। भगवान को देखने से ही देखा जा सकता है।

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महाराजा सिटी पैलेस की छत से सुबह-शाम मंदिर की आरती करते थे।
मंदिर की खास बात यह है कि सवाई जय सिंह के वास्तुकारों ने मंदिर को ऐसी जगह बनवाया था कि राजा हर सुबह और शाम शहर के महल से खड़े होकर मंदिर में आरती कर सकते थे। पहाड़ी पर एक ही दिशा में एक दूसरे के समानांतर गढ़गणेश, गोविंद देव मंदिर, सिटी पैलेस और अल्बर्ट हॉल का निर्माण किया गया था।ॉ

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शहर से ऐसा दिखता हैं मंदिर का नजारा

नियमित रूप से आने वाले भक्तों का मानना ​​है कि सात बुधवार को नियमित दर्शन करने से गढ़ गणेश से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है। मंदिर परिसर में सीढ़ियां चढ़कर मुख्य द्वार पर दो चूहे भी स्थापित हैं, जिनके कान में भक्त अपनी मन्नतें बताने जाते हैं और चूहे उन इच्छाओं को बाल गणेश तक ले जाते हैं।

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