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सम्पूर्ण भारत लॉक डाउन और महिलाओ की महावारी का दर्द

रोटी और बच्चों के लिए दूध खरीदने के पैसे नहीं तो पैड्स तो नहीं ही होंगे

Ranveer tanwar

उसे भी पीरियड्स  आते हैं :-

जो मजदूर महिलाएं हफ्तों से पैदल चल रही हैँ उनमे से कइयों के पीरियड्स चल रहे होंगे। कई के अचानक शुरू हुए होंगे। चलते काफिले में अचानक शुरू हुए पीरियड्स के लिए सबको कैसे रुकने को बोल सकती थी वो ?

तो पीरियड्स में चलती रही , 40 मर्दों के बीच ट्रक में बैठी महिला का पीरियड शुरू हो जाये तो क्या करेंगी ?

लॉकडाउन : मानवता हुई शर्मसार

कैसे मैनेज़ किया होगा ?

रोटी और बच्चों के लिए दूध खरीदने के पैसे नहीं तो पैड्स तो नहीं ही होंगे। कोई कपड़ा होगा भी तो लगातार हफ़्तों के पैदल चलने में कहां धोया,

कब कैसे सुखाया होगा ?

कभी सोचा है  ?

उन दिनों में चलते हुए जाँघ छिल गयी होंगी उसकी ।

कुछ मजदूर महिलायें गर्भवती भी थी। हमारे घर की गर्भवती को जरा सा दर्द हो तो अस्पताल ले भागते हैं,

उन्होंने अपना दर्द किससे कहा होगा ?

कह भी दिया तो पति कितना बेसहारा और मजबूर नज़र आया होगा कि कुछ नहीं कर सकता , एक मजदूर महिला को चलते हुए लेबर पेन हुआ, उसने रास्ते में बच्चे को जन्म दिया,  बच्चे की नाल काटी और 2 घंटे बाद फिर चलने लगी। आपके घर की महिलाओं की  हफ़्तों मालिश होती है।  सोचो उसपे क्या गुजरी होंगी। कई महिलाओं में इंफेक्शन फैलेगा, कई कोरोना की बजाय इंतेज़ाम की कमी और इंफेक्शन से मर जाएंगी।

इसका हिसाब कौन देगा  ?

सरकारों को इसका ख़्याल नहीं आया  ?

राजनीति करने वालो, टांगों से खून टपक रहा है और तुम्हें राजनीति करनी है..?

शर्म आती है सरकार की ऐसी व्यवस्था पर,भारत में इस लॉक डाउन में इस दर्द से कई सवाल खड़े हुए है लेकिन जवाब किसी मंत्री या राजनेता के पास नहीं है अफ़सोस राजनीती से ऊपर उठकर कभी मानवता नहीं आती ।

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