लखीमपुर खीरी : नेपाल से यूपी के लखीमपुर खीरी पहुंचे जंगली हाथियों के चलते एक तरफ जहां वन विभाग खुश है तो वहीं स्थानीय लोगों में चिंता है। उनका मानना है कि यदि हाथियों ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया तो उन्हें वन विभाग भी कंट्रोल नहीं कर पाएगा। ऐसे में जान माल का खतरा भी है। खास बात ये है कि जंगली हाथी करीब तीस साल बाद अपनी पुरखों की धरती पर भारतीय सीमा में इतने अंदर तक आ गए है।
यूं तो हाथी नेपाल के वर्दिया या शुक्ला फांटा नेशनल पार्क से निकलकर भारत के खीरी जिले की सीमा से सटे दुधवा और पीलीभीत टाइगर रिजर्व के जंगलों तक आकर फिर मानसून खत्म होते ही वापस नेपाल चले जाते थे | पर इस बार जंगली हाथियों का कुनबा भारतीय सीमा में करीब डेढ़ सौ किलोमीटर अंदर दक्षिण खीरी वनप्रभाग के जंगलों तक आ गए हैं।
हाथी यहां रात के अंधेरे में निकलकर फसलों को नुकसान भी पहुंचा रहे है। गांव वाले हाथियों के नुकसान से परेशान हो रहे। हाथी महेशपुर जंगल से सटे खेतों में रात में घुसकर धान व गन्ने की फसल तबाह कर रहे हैं। मंजीत सिंह की चार बीघा धान और गन्ने की फसल हाथियों ने रौंद डाली। मंजीत अब रात रातभर आग जलाकर पहरेदारी करते देखे जा सकते हैं। वहीं, फारेस्ट स्टॉफ भी हाथी और मनुष्यों के बीच टकराव न हो, इस व्यवस्था में मुस्तैद है।
जंगली हाथी तीस साल पहले इस इलाके में आए थे। इतने लंबे अंतराल के बाद अब जाकर हाथियों का आगमन इस इलाके में दोबारा हुआ है। वाइल्ड लाइफ के जानकार और पूर्व रेंजर मुकेश रायजादा बताते हैं कि तराई की ये धरती हाथियों के पुरखों की जमीन रही है। कभी इन हाथियों का इन जंगलों पर एकछत्र राज था।
पर आबादी बढ़ने से जंगलों पर दबाव बढ़ता गया |जंगलों को काट खेती होने लगी। अब इन हाथियों को क्या पता कि उनके घर लोगों ने उजाड़ दिए। नेपाल से आए घुमंतू हाथियों की निगहबानी में लगे महेशपुर रेंज के रेंजर मोबीन आरिफ कहते हैं कि इस वक्त हाथियों के खाने के लिए धान की फसल पक रही है जंगलों के छोटे-छोटे पैचों के किनारे गन्ने की भरपूर फसल भी लगी है।