उत्तराखंड मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को तीसरी बार उधम सिंह नगर की खटिया सीट से चुनावी मैदान में उतारा है। धामी 2012 और 2017 के चुनाव में जीत दर्ज कर चुके है। धामी ने राजनीति की शुरूआत संघ के कार्यकर्ता रहते हुए की और उत्तराखंड के सबसे कम उम्र (45) के सीएम के तौर पर रिकॅार्ड दर्ज किया।
मुख्यमंत्री धामी का जन्म पिथौरागढ़ के कनालीछिना में 1975 में हुआ। उनके पिता सेना में सूबेदार थे। उनका राजनीति से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था। धामी ने लॅा ड़िग्री हासिल की और इसके बाद आरएसएस से कार्यकर्ता के रूप में जुड़े। वे ABVP से जुडे़ और यही से उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ। धामी 2002 से 2008 के बीच उत्तराखंड बीजेपी युवा मोर्चा के दो बार अध्यक्ष रहें।
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी के ओएसडी रहे। पुष्कर सिंह धामी राजपूत जाति से आते है। वे उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी के करीबी माने जाते हैं। भगत सिंह कोश्यारी मुख्यमंत्री रहते धामी उनके ओएसडी रहे, लेकिन धामी कभी भी मंत्री या राज्यमंत्री पद पर नहीं रहे।
उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद खटीमा सीट पर अब तक चार बार चुनाव हो चुके है जिसमें 2002 और 2007 में कांग्रेस के एडवोकेट गोपाल सिंह राणा यहां से चुनाव जीते थे। 2012 में बीजेपी ने भगत सिंह कोश्यारी के सीएम रहते हुए उनके ओएसडी पुष्कर सिंह धामी को खटीमा सीट से चुनावी मैदान में उतारा गया और उन्होंने उम्मीदवार देवेंद्र चंद्र को 5394 वोट से हरा दिया। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में भी धामी ने कांग्रेस के भुवन कापड़ी को 2709 मतों से हरा दिया।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी रविवार को कपकोट पहुंचे थे. यहां हेलीपेड पर उतरने के बाद वे नजदीक के सरयू होटल में पहुंचे तथा जलपान किया. इसके बाद पार्टी का टिकट न मिलने से नाराज पूर्व विधायक शेर सिंह गड़िया अपने समर्थकों के साथ मुख्यमंत्री से मिलने पहुंचे। जहां उनकी मुख्यमंत्री समेत सांसद अजय टम्टा से 12 मिनट वार्ता हुई।
शेर सिंह के साथ बंद कमरे में हुई इस बातचीत के बाद सीएम पुष्कर धामी ने पत्रकारों वार्ता में कहा कि प्रत्येक सीट में टिकट वितरण में शीर्ष नेतृत्व का निर्णय होता है। भाजपा ऐसी पार्टी है, जहां हर कोई कार्यकर्ता योग्य होता है. उन्होंने कहा कि शीर्ष नेतृत्व के निर्णय के बाद शेर सिह से वार्ता सकारात्मक हुई, शेर सिंह पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता हैं, तभी उन्होंने नाराजगी के बाद भी नामांकन नहीं कराया।
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