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Positive Podcast : कहानी अमर बलिदानी उधम सिंह की जिन्होंने जलियावाला हत्याकांड का बदला लिया

Prabhat Chaturvedi

दरअसल सरदार उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था। उनके पिता सरदार तहल सिंह जम्मू उपल्ली गांव में रेलवे चौकीदार थे। उधम सिंह का असली नाम शेर सिंह था। उनका एक भाई भी था, जिसका नाम मुख्ता सिंह था। जब उधम सात साल के थे तब उनकी मां का निधन हो गया और फिर 6 साल बाद उनके पिता ने दुनिया को अलविदा कह दिया। उधम छोटी उम्र में ही अनाथ हो गए थे।

अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद, उधम और उनके भाई को अमृतसर के केंद्रीय खालसा अनाथालय भेज दिया गया, जहाँ उधम को अपनी नई पहचान मिली। अनाथालय में लोगों ने शेर सिंह का नाम बदलकर उधम सिंह कर दिया। फिर साल 1918 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद उधम अपनी आगे की पढ़ाई में व्यस्त हो गए, लेकिन इसके ठीक एक साल बाद साल 1919 में पंजाब के अमृतसर में एक ऐसी घटना घटी जिसने भारत के दिल को अंदर से झकझोर कर रख दिया।

वो काला दिन जिसकी यादे आज भी झकझोर देती हैं

बैसाखी का दिन था, जलियांवाला बाग में हजारों लोग जमा थे, इस भीड़ में कई बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं भी थीं और इस भीड़ में रौलट एक्ट के तहत कांग्रेस के सत्य पाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी का विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। शांतिपूर्ण ढंग से विरोध प्रदर्शन

शांतिपूर्ण आंदोलनकारियों को घेर कर मारा गया

इसी बीच जनरल डायर और पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओ डायर अपनी सेना के साथ वहां आए और पूरे बगीचे को घेर लिया। जनरल डायर ने न तो वहां मौजूद हजारों की भीड़ को जाने के लिए कहा और न ही किसी तरह की चेतावनी दी। डायर ने बगीचे का एकमात्र निकास द्वार बंद कर दिया और सीधे अपनी सेना को फायरिंग का आदेश दिया, जिसके बाद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का सबसे बड़ा नरसंहार शुरू हुआ। इस घटना में कई लोगों की जान चली गई

उन गिरती लाशो के बीच पथराई आँखों से सब देखते ज़िंदा बचने वालो में उधम सिंह भी थे

इस बगीचे में एक युवक था, जिसकी निगाहें यह सब देख रही थीं। अंग्रेजों की इस क्रूरता से लाल हो गई जलियांवाला बाग की मिट्टी की कसम खाकर सरदार ऊधम सिंह की आंखें ही उधम सिंह ने इस हत्याकांड का बदला लेने का फैसला किया। इसके बाद इस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए वे वर्ष 1940 में अपने गुस्से को संभालने के लिए लंदन पहुंचे, लेकिन वहां जाते समय उन्हें डायर की मृत्यु की खबर मिली। इस खबर से उन्हें थोड़ी निराशा हुई, लेकिन फिर उन्होंने माइकल ओ'डायर से जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने का फैसला किया।

13 मार्च का वो दिन जब जलियावाला कांड का बदला लेकर उधम सिंह के सीने की प्रतिशोध की ज्वाला शांत हुई

दरअसल, 13 मार्च 1940 को कैक्सटन हॉल में रॉयल सेंट्रल एशियन सोसाइटी की चल रही बैठक में नाराज सरदार उधम सिंह पहुंचे। वहां माइकल ओ'डायर भी वक्ताओं में थे। बैठक के बाद दीवार के पीछे से स्टैंड लेते हुए, उधम सिंह ने माइकल ओ'डायर को निशाना बनाया और एक के बाद एक उन पर गोलियां चला दीं, जिससे उनकी मौत हो गई। उधम सिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की। इसके साथ ही उधम सिंह ने दुनिया को संदेश दिया कि भारतीय वीर अत्याचारियों को कभी नहीं छोड़ते।

तो यह थी शहीद-ए-आजम उधम सिंह की कहानी, जिनकी बहादुरी साहस और जुनून की मिसाल है। एक बार जब आप कुछ करने की ठान लेते हैं, तो फिर चाहे कोई भी दौर हो, परिस्थिति कैसी भी हो, अपने लक्ष्य को पूरा करें।

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