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नेपाल के नए पीएम बने शेर बहादुर देउबा, जानिए भारत के प्रति कैसा है देउबा का रूख ?

नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा पांचवीं बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने हैं। 75 वर्षीय देउबा ने मंगलवार शाम राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के कार्यालय में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।

savan meena

नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा पांचवीं बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने हैं। 75 वर्षीय देउबा ने मंगलवार शाम राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के कार्यालय में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। नेपाली मीडिया के अनुसार राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने उन्हें संविधान के अनुच्छेद 76(5) के तहत प्रधानमंत्री नियुक्त किया है।

एक दिन पहले, नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने 21 मई को प्रतिनिधि सभा (संसद) को भंग करने के पूर्व प्रधान मंत्री केपी शर्मा ओली के फैसले को खारिज कर दिया था और देउबा को नेपाल के प्रधान मंत्री के रूप में नियुक्त किया था। प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने प्रधानमंत्री पद पर ओली के दावे को असंवैधानिक करार दिया था।

राष्ट्रपति विद्या विद्या देवी भंडारी की भूमिका की भी आलोचना की

संविधान पीठ ने राष्ट्रपति विद्या विद्या देवी भंडारी की भूमिका की भी आलोचना की, जिन्होंने मई में देउबा को संसद में अपना बहुमत साबित करने का अवसर देने से मना कर दिया था। मंगलवार को राष्ट्रपति भंडारी के निजी सचिव भेष राज अधिकारी ने प्रेस से बातचीत में कहा कि "उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गए फ़ैसले के अनुरूप राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने देउबा को नेपाल का प्रधानमंत्री नियुक्त किया है।"

जानकारों का कहना है कि देउबा का तात्कालिक काम नेपाल में राजनीतिक स्थिरता लाना होगा। बताया गया है कि देउबा की गठबंधन सरकार में नेपाली कांग्रेस समेत माओवादी नेता पुष्प कमल दाहाल की प्रचंड पार्टी और जनता समाजवादी पार्टी शामिल हैं। जनता समाजवादी पार्टी पूर्व माओवादियों और मधेसी नेताओं की पार्टी है।

नेपाली मीडिया के अनुसार, देउबा ने मंगलवार को एक छोटी कैबिनेट के साथ शपथ ली। उनकी सरकार में ज्ञानेंद्र कार्की को क़ानून मंत्री और बाल कृष्ण खंड को गृह मंत्री बनाया गया है। वहीं जनार्दन शर्मा को वित्त मंत्रालय और पंफ़ा भूसल को ऊर्जा और सिचाई मंत्रालय की कमान सौंपी गई है। भूसल को जो मंत्रालय सौंपे गये हैं, उनका नेपाल में बहुत महत्व माना जाता है।

नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने दिया था आदेश

शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त किये जाने के बाद, केपी शर्मा ओली ने प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफ़ा तो दे दिया, मगर वे कोर्ट के निर्णय से बहुत नाखुश दिखे। इस्तीफ़ा देने से पहले ओली ने देश को संबोधित करते हुए कहा कि जनता का चुना हुआ प्रतिनिधि होने के बावजूद, वो सुप्रीम कोर्ट के आदेश की वजह से अपने पद से इस्तीफ़ा दे रहे हैं।

ओली ने सर्वोच्च अदालत की आलोचना करते हुए कहा कि "खिलाड़ियों का कर्तव्य होता है कि वो खेलें। रेफ़री को देखना होता है कि खेल ठीक से हो, ना कि वो किसी एक टीम को जीतने में मदद करे।"

ओली ने कहा कि उनके फ़ैसले का देश की संसदीय व्यवस्था पर दूरगामी असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि "फ़ैसले मे जो भाषा इस्तेमाल की गई वो उन लोगों को डराने वाली है जो बहुदलीय व्यवस्था में भरोसा रखते हैं। ये बस एक अस्थायी खुशी है जिसका दूरगामी असर होगा।"

ओली ने आरोप लगाया कि अदालत ने अपनी सीमा लांघी है। उन्होंने कहा कि "अदालत ने अपने दायरे को लांघा है और राजनीतिक मुद्दे पर फ़ैसला सुनाया है।" उन्होंने कहा कि "मुझे जनादेश से नहीं हटाया गया, बल्कि अदालत के आदेश से हटाया जा रहा है।"

 शेर बहादुर देउबा को जानिए?

अब से पहले, शेर बहादुर देउबा चार बार नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। वे पहली बार सितंबर 1995 से मार्च 1997, दूसरी बार जुलाई 2001 से अक्तूबर 2002, तीसरी बार जून 2004 से फ़रवरी 2005 और चौथी बार जून 2017 से फ़रवरी 2018 तक नेपाल के प्रधानमंत्री रहे। बताया गया है कि संवैधानिक प्रावधान के तहत प्रधानमंत्री के तौर पर नियुक्ति के बाद देउबा को 30 दिनों के अंदर सदन में विश्वास मत हासिल करना होगा।

भारत से भी देउबा का पुराना राबता रहा है। जून 2017 में प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा में, देउबा ने अगस्त 2017 में भारत का दौरा किया था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ द्विपक्षीय वार्ता की थी। देउबा इससे पहले 1996, 2004 और 2005 में भी प्रधानमंत्री के रूप में भारत के तीन दौरे कर चुके हैं।

पश्चिमी नेपाल के दादेलधुरा ज़िले के एक सुदूर गाँव में 13 जून 1946 को जन्मे शेर बहादुर देउबा ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत एक छात्र नेता के रूप में की थी। वे 1971 से 1980 तक नेपाली कांग्रेस की छात्र राजनीतिक शाखा, नेपाल छात्र संघ के संस्थापक सदस्य और अध्यक्ष थे।

देउबा ने क़ानून में स्नातक और राजनीति विज्ञान में परास्नातक किया है। उन्हें लोकतंत्र को मज़बूत करने में उनके योगदान के लिए नवंबर 2016 में नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया था।

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