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बिहार का सेनारी नरसंहार: जानवरों की तरह घर से खींचकर लाया, 34 लोगों की गर्दन काटने के बाद चीर दिया पेट

18 मार्च 1999 को सेनारी गांव में 34 लोगों को काट दिया गया था। सेनारी में वो काली रात थी। भेड़-बकरियों की तरह नौजवानों की गर्दनें काटी जा रही थी। एक की कटने के बाद दूसरा अपनी बारी का इंतजार कर रहा था। सोच कर देखिए दिल दहल जाएगा। कातिल धारदार हथियार से एक-एक कर युवकों की गर्दन रेतकर जमीन पर गिरा रहे थे और वहीं तड़प-तड़पकर सभी कुछ पलों में हमेशा के लिए चिरशांत हो जा रहे थे

Manish meena

18 मार्च 1999 को सेनारी गांव में 34 लोगों को काट दिया गया था। सेनारी में वो काली रात थी। भेड़-बकरियों की तरह नौजवानों की गर्दनें काटी जा रही थी। एक की कटने के बाद दूसरा अपनी बारी का इंतजार कर रहा था। सोच कर देखिए दिल दहल जाएगा। कातिल धारदार हथियार से एक-एक कर युवकों की गर्दन रेतकर जमीन पर गिरा रहे थे और वहीं तड़प-तड़पकर सभी कुछ पलों में हमेशा के लिए चिरशांत हो जा रहे थे।

18 मार्च 1999 को सेनारी गांव में 34 लोगों को काट दिया गया था

90 के दशक में बिहार जातीय संघर्ष से जूझ रहा था।

सवर्ण और दलित जातियों में खूनी जंग चल रहा था।

जमीन-जायदाद को लेकर एक-दूसरे के खून के प्यासे थे।

एक को रणवीर सेना नाम के संगठन का साथ मिला तो दूसरे को माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर का।

18 मार्च 1999 की रात को सेनारी गांव में 500-600 लोग घुसे। पूरे गांव को चारों ओर से घेर लिया।

घरों से खींच-खींच के मर्दों को बाहर निकाला गया।

चालीस लोगों को खींचकर बिल्कुल जानवरों की तरह गांव से बाहर ले जाया गया।

प्रतिशोध इतना था कि गला काटने के बाद तड़प रहे लोगों का पेट तक चीर दिया जा रहा था

गांव के बाहर सभी को एक जगह इकट्ठा किया गया। फिर तीन ग्रुप में सबको बांट दिया गया। फिर लाइन में खड़ा कर बारी-बारी से हर एक का गला काटा गया। पेट चीर दिया गया। 34 लोगों की नृशंस हत्या कर दी गई। प्रतिशोध इतना था कि गला काटने के बाद तड़प रहे लोगों का पेट तक चीर दिया जा रहा था।

इस घटना के बाद बहुत लोग शहरों से नौकरी-पढ़ाई छोड़कर गांव में रहने लगे, उनका बस एक ही मकसद था बदला

मरनेवाले सभी भूमिहार जाति से थे और मारनेवाले एमसीसी के। इस घटना के अगले दिन तब पटना हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार रहे पद्मनारायण सिंह अपने गांव सेनारी पहुंचे। अपने परिवार के 8 लोगों की फाड़ी हुई लाशें देखकर उनको दिल का दौरा पड़ा और उनकी मौत हो गई। इस घटना के बाद बहुत लोग शहरों से नौकरी-पढ़ाई छोड़कर गांव में रहने लगे, उनका बस एक ही मकसद था बदला।

24 दिन में बहाल हो गई थी राबड़ी सरकार

इससे पहले 1 दिसंबर 1997 को जहानाबाद के ही लक्ष्मणपुर-बाथे के शंकरबिगहा गांव में 58 लोगों को मार दिया गया था। 10 फरवरी 1998 को नारायणपुर गांव में 12 लोगों की हत्या कर दी गई थी। इसका आरोप सवर्ण जाति भूमिहार पर लगा। इस घटना के बाद केंद्र ने बिहार में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। मगर कांग्रेस के विरोध के चलते 24 दिनों में ही वापस लेना पड़ा था और राबड़ी सरकार फिर से वापस आ गई।

अब सेनारी नरसंहार का कोई दोषी नहीं

18 मार्च 1999 को दूसरे गुट की तैयारी पूरी थी। खास बात थी कि सेनारी में सवर्ण और दलितों में कोई विवाद नहीं था, सभी मिलजुलकर रहते थे शायद यही वजह थी कि सेनारी को चुना गया। आसपास के गांवों में एमसीसी सक्रिय थी, मगर इस गांव में नहीं। 300 घरों के गांव में 70 भूमिहार परिवार अपने दलित पड़ोसियों के साथ बड़ी शांति से रहते थे। अब 22 साल बाद पटना हाईकोर्ट ने इस मामले में निचली अदालत से दोषी सभी 13 लोगों को जेल से तुरंत रिहा करने का आदेश दिया है। 2016 में जहानाबाद कोर्ट ने 10 दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी। तीन दोषियों को उम्रकैद की सजा दी गई थी।

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