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सरकार की हुनर के प्रति बेरुखी: तंगी ने नेशनल गोल्ड मे​डलिस्ट मुक्केबाज प्रियंका को पंचर निकालने के लिए किया मजबूर

11वीं की छात्रा प्रियंका लोधी नेशनल बॉक्सिंग प्रतियोगिता में गोल्ड होल्डर, लेकिन आर्थिक हालात ने हुनर किया बोना, सरकार का सपोर्ट मिले तो फिर रिंग में उतर सकती है प्रियंका

Deepak Kumawat

ब्यूरो रिपोर्ट- बुलंदशहर में बॉक्सिंग रिंग में प्रतिद्वंद्वियों को रौंदने वाली नेशनल सब जूनियर बॉक्सर प्रियंका लोधी वास्तव में टायर की पंचर निकालने और रूई धुनने को मजबूर हैं, प्रियंका ने हाल ही में गोवा में आयोजित राष्ट्रीय मुक्केबाजी प्रतियोगिता में स्वर्ण जीतकर उत्तर प्रदेश का नाम रोशन किया था, नेशनल बॉक्सिंग चैंपियन प्रियंका ओलंपिक खेलने की ख्वाहिश रखती हैं और सरकार से परिवार को आर्थिक मदद और अपने लिए बेहतर कोचिंग की गुहार भी लगा रही हैं।

नेशनल बॉक्सर प्रियंका लोधी नेशनल बॉक्सिंग प्रतियोगिता में गोल्ड जीता

बता दें कि वीडियो में बाइक के टायर का पंचर निकालते हुए नजर आ रही नेशनल बॉक्सर प्रियंका लोधी नेशनल बॉक्सिंग प्रतियोगिता में गोल्ड होल्डर है, दरअसल बुलंदशहर के मिर्जापुर गांव की रहने वाली प्रियंका लोधी बुलंदशहर के एक गर्ल्स इंटर कॉलेज में 11वीं की छात्रा हैं,

प्रियंका लोधी के अनुसार वे 11 अक्टूबर 2021 को लड़कियों के सब-जूनियर 50 किलोग्राम भार वर्ग में उन्होंने उत्तर प्रदेश से गोवा में आयोजित राष्ट्रीय मुक्केबाजी प्रतियोगिता में भाग लिया और तमिलनाडु की प्रतिद्वंद्वी को हराकर स्वर्ण पदक जीता, इससे पहले प्रियंका मंडल और राज्य स्तर पर भी मेडल जीत चुकी हैं। प्रियंका और उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है।

आर्थिक तंगी से पंक्चर और रूई धुनना बनी मजबूरी

अपने परिवार की आर्थिक तंगी दूर करने के लिए प्रियंका अपने पिता बिजेंद्र सिंह के साथ उनके काम में हाथ बंटा रही हैं। इसमें वे बाइक पंचर ठीक करती हैं तो वहीं सर्दियों में कॉटन मिलिंग मशीन में रुई धुनती है, तब जा​कर दो वक्त की रोटी उनके परिवार का पेट भर पाती है। प्रियंका ने बताया कि उनकी पांच बहनें और एक छोटा भाई है, घर में आय का कोई स्रोत नहीं है। ऐसे में पंक्चर और रूई धुनना अब उनकी मजबूरी बन चुकी है।

भारत सरकार मदद करे तो प्रियंका के हुनर को लग सकते हैं पंख

जब बुलंदशहर के मिर्जापुर गांव में खेल प्रेमियों ने सब-जूनियर 50 किलो वजन वर्ग के स्वर्ण पदक विजेता को इस तरह पंक्चर निकालते और रूई धुनते देखा तो हैरान रह गए। प्रियंका ने बताया कि अगर सरकार से उन्हें मदद मिले और बेहतर कोचिंग मिले तो वे उनमें देश को ओलंपिक के विश्वपटल पर पहुंचाने का मादा रखती हैं।

पंचर की कमाई से ही ली खुद कोचिंग

प्रियंका के अनुसार अब तक उन्होंने निजी स्तर पर कोचिंग की है और मंडल, राज्य में राष्ट्रीय स्तर पर मुक्केबाजी प्रतियोगिता में भाग लिया है, सभी का खर्चा पंचर ठीक कर खर्चे के लिए धन जुटाया है।

प्रियंका उनकी बेटी नहीं बल्कि उनका बेटा है

प्रियंका के माता पिता बिजेंद्र सिंह और लज्जा की माने तो प्रियंका उनकी बेटी नहीं बल्कि उनका बेटा है और उन्होंने उसे बेटों की तरह ही पाला है, बेटी की बचपन में बॉक्सिंग का हुनर ​​देखकर ही उन्होंने बॉक्सिंग की कोचिंग कराई, प्रियंका के परिवार और गांव वालों का भी यही मानना ​​है कि उनके गांव की यह नेशनल चैंपियन सरकारी मदद से वंचित है, अगर सरकार मदद करे तो गांव की बेटी दुनिया में देश का नाम रौशन कर सकती है।

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