बिहार की राजनीति में सियासी उठापटक जारी है। बीते तीन दिनों से लोजपा में चाचा बनाम भतीजा की जंग बढ़ती जा रही है। पशुपति पारस जहां पार्टी में तानाशाही का आरोप लगा रहे हैं, वहीं चिराग पासवान अपने चाचा पर पार्टी को तोड़ने का आरोप लगा रहे हैं। चिराग पासवान आज मीडिया से रूबरू हुए और कई मामलो पर खुलकर उन्होंने अपनी बात रखी और चाचा को भी आड़े हाथ लिया वही अब सियासी बयान के बाद पलटवार भी होगा और राजनीती में गर्माहट बनेगी।
वही पिता के निधन के बाद उन्होंने परिवार और पार्टी दोनों को लेकर चलने का काम किया। इसमें संघर्ष था। जिन लोगों को संघर्ष का रास्ता पसंद नहीं था, उन्होंने ही धोखा दिया। चाचा बोलते, तो पहले ही संसदीय दल का नेता बना देता।
उन्होंने कहा कि LJP को पहले भी तोड़ने की कोशिश की गई थी। मैं रामविलास पासवान का बेटा हूं। शेर का बेटा हूं। पार्टी पापा की सोच के साथ मजबूती के साथ आगे बढ़ेगी। मुझे यह अधिकार पार्टी का संविधान ही देता है। कोई भी संगठन इसके अनुरूप ही चलता है। पारस गुट ने जो पटना में गुरुवार को कार्यकारिणी की बैठक बुलाई है, वो असैंवधानिक है। उनके लिए गए फैसले भी गलत हैं।
1. यह लड़ाई लंबी है
8 अक्टूबर को पिता जी का निधन हुआ। इसके तुरंत बाद पार्टी विधानसभा चुनाव में उतरी। इस दौरान ढंग से घर पर बैठने या पापा को याद करने का भी समय नहीं मिला। कुछ समय से मेरी तबीयत ठीक नहीं चल रही है। यह लड़ाई लंबी है। हम समय-समय पर सवालों का जवाब देंगे। मैं मीडिया के सामने आउंगा।
चुनाव में भी लोजपा को बड़ी जीत मिली। सभी ने कहा था कि हमें नकार दिया जाएगा, लेकिन हमें 6% वोट मिला। राज्य के 25 लाख लोगों ने हमारी पार्टी वोट को किया। लोजपा ने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। हमने गठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ा।
जब पापा एडमिट थे, तभी पार्टी को तोड़ने की कवायद जदयू कर रही थी। पापा ने भी चाचा को कहा था। पार्टी में कुछ लोग संघर्ष के रास्ते पर चलने के लिए तैयार नहीं थे। अगर जदयू, भाजपा और लोजपा मिलकर लड़ते तो परिणाम और अच्छा होता। मगर, नीतीश के सामने नतमस्तक होना पड़ता, जो हमें मंजूर नहीं है।
मुझे बिहार और बिहारियों से प्यार है। इस कारण मैंने कोई समझौता नहीं किया। चुनाव के दरम्यान भी सांसदों ने कोई भूमिका पार्टी के लिए नहीं निभाई। पार्टी उनसे पूछताछ और कार्रवाई कर सकती थी। ये उन्हें आभास था। कोरोना की वजह से सब कुछ रुक गया। तब तक मुझे टाइफायड भी हो गया। जब मैं बीमार पड़ा, तो मेरे पीठ पीछे षडयंत्र रचा गया, जबकि चुनाव के बाद से ही चाचा से संपर्क करने की कोशिश की। मगर संपर्क नहीं हुआ। जब कोई संवाद नहीं हुआ तो होली के दिन परिवार के लोग भी नहीं थे। उस दिन मैंने उन्हें पत्र भी लिखा था। मैंने उसके जरिए तो उनसे बात करने की कोशिश की।