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8 साल बाद फिर से चमकेगा Jaipur का हवामहल; Lockdown में चल रहा निखार का काम

इससे पहले 2013 में हुआ था हवामहल का रंग रोगन, अब आठ साल बाद फिर निखरेगा

Dharmendra Choudhary

डेस्क न्यूज़: दुनिया में देश की सांस्कृतिक पहचान वाला जयपुर अपने भीतर विरासत, वास्तुकला, संस्कृति और ऐतिहासिक विरासत समेटे हुए है। गुलाबी शहर जयपुर, यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत शहर में शामिल है, जयपुर भारत के खूबसूरत शहरों में से एक है। हवा महल यहां आने वाले विदेशी पर्यटकों के लिए सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। 953 जालीदार झरोखों वाला यह हवा महल आठ साल बाद फिर से चमकेगा। हवा महल में लॉकडाउन में सुधार के लिए रंग लाह का काम चल रहा है। ऐसे में लॉकडाउन हटने से शहर के लोग और यहां आने वाले पर्यटक इसे देख सकेंगे।

इससे पहले 2013 में हुआ था हवामहल का रंग रोगन, अब आठ साल बाद फिर निखरेगा

हवा महल अधीक्षक सरोज चंचलानी ने बताया कि 2013 में हवा महल के रंग और मर्रम्मद का काम किया गया था। इसके बाद पिछले कई सालों में हवा महल का रंग फीका पड़ने लगा। इसके अलावा अन्य जर्जर हिस्सों की मरम्मत भी महसूस की जा रही थी। इस तरह आमेर विकास प्रबंधन प्राधिकरण ने 3 मई को कार्यादेश जारी किया। इसके बाद हवा महल के विकास का काम जारी है।

करीब 30 साल पहले गुलाबी चौके के आधार पर तय होता है रंग

हवा महल अधीक्षक के अनुसार रंग कार्य शुरू होने से पहले हवामहल की फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी कर ली गई है। इसके अलावा यहां हवा महल में पिछले करीब 30 साल से रखे गुलाबी रंग के चौकों (पत्थरों) के अनुसार रंग बनाया जा रहा है। इसे चार साल पहले एक समिति ने अंतिम रूप दिया था। जानकारी के अनुसार यह कार्य ExEn रवि गुप्ता की देखरेख में किया जा रहा है।

1799 में महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने करवाया था निर्माण, पांच मंजिला इमारत को भगवान कृष्ण के मुकुट का आकार दिया

हवामहल एक शाही महल है। इसे जयपुर के महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने बनवाया था। वे कृष्ण के भक्त थे। ऐसे में वास्तुकार लालचंद उस्ताद की देखरेख में पांच मंजिला इमारत का निर्माण भगवान कृष्ण के मुकुट के आकार में किया गया था। इसे बनाने में लाल और गुलाबी बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया था। इसमें 953 आकर्षक छोटी जालीदार खिड़कियां हैं। पहले शाही परिवार की महिलाएं इन्हीं खिड़कियों से शहर को देखती थीं। वेंचुरी प्रभाव के कारण ये जालीदार खिड़कियां महल के अंदर हमेशा ठंडी हवा देती रहती हैं। यह भवन हवामहल के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

चौथी मंजिल प्रकाश मंदिर और पांचवीं हवा मंदिर कहलाई

हवामहल की स्थापत्य शैली भी राजपूत और मुगल शैलियों का अनूठा उदाहरण है। हवा महल की पहली दो मंजिलें गलियारों और कक्षों से जुड़ी हुई हैं। रत्नों से सजे इस कमरे को रत्न महल कहा जाता है। इसकी पांच मंजिलें हैं। इनमें से पहली मंजिल को शरद मंदिर, दूसरी मंजिल को रत्न मंदिर, तीसरी मंजिल को विचित्र मंदिर, चौथे को प्रकाश मंदिर और पांचवीं को हवा मंदिर कहा जाता है। हवामहल में आनंदपोल और चांदपोल नाम के दो दरवाजे हैं। आनंदपोल पर गणेश की मूर्ति के कारण इसे गणेश पोल भी कहा जाता है। महाराजा सवाई प्रताप सिंह (सवाई जय सिंह के पोते और सवाई माधो सिंह के पुत्र) थे।

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