राजस्थान में मंत्री मंडल का विस्तार होगया है लेकिन जो मंत्री मंडल विस्तार से पहले राजनीती चल रही थी वह अब विवाद का एक नया मोड लेती नजर आ रही है। वही गहलोत सरकार पर भी पीठ पीछे गंभीर आरोप लग रहे है। जो मंत्री मंडल का विस्तार हुआ उसमे सारी मलाई तो गहलोत ने रख ली है। मंत्री मंडल में पायलट गुट को कुछ खास विभाग नहीं दिया गया है वही दूसरी और रामकेश मीणा ने भी गंभीर आरोप लगाए है।
पायलट गुट के मंत्री गहलोत गुट के मंत्रियों के कार्य करेंगे। वित्त, गृह, शिक्षा, स्वास्थ्य, यूडीएच, डीआईपीआर, उच्च शिक्षा, ऊर्जा, पीएचईडी, सार्वजनिक निर्माण विभाग जैसे महत्वपूर्ण विभाग मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गुट वाले मंत्रियों के पास है।
जबकि पायलट गुट के मंत्रियों को पंचायती राज, ग्रामीण विकास, पर्यटन, वन, परिवहन, जैसे मंत्रालय दिए है।
सबसे ज्यादा मारामारी शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे विभागों में रहती है।
तबादलों का मामला हो या स्वास्थ्य सुविधाओं का मामला। मंत्री अपने चेहतों का कार्य नहीं होते देख मंत्रिमंडल की बैठक में भिड़ जाते है। इसका पूर्व में उदाहरण रघु शर्मा, गोविंद सिंह डोटासरा, हरीश चौधरी, शांति धारीवाल खुद प्रदेश की जनता के सामने दे चुके है। ऐसा पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार के समय भी होता था, मंत्री अपने निजी स्वार्थ के काम नहीं होने पर आपस में या मंत्रिमंडल की बैठक में भिड़ जाते थे।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास वित्त और गृह मंत्रालय है, ऐसे में पहले जैसे स्थिति सामने आ सकती है। मुख्य सचिव भी गहलोत की पसंद का है। ऐसे में यह स्थिति आने वाले दिनों में आ सकती है कि पहले की तरह जिस पर पायलट गुट के मंत्री का कोई महत्वपूर्ण प्रस्ताव हो, वह वित्त विभाग में अटक सकता है। या ब्यूरोक्रेसी से अनबन होने के कारण अटक सकते है।
ऐसी संभावना ज्यादा है। पूर्व के अनुभवों के आधार पर अगर पंचायती राज मंत्री रमेश मीणा और पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह इस बार फूंक-फूंक कर कदम रखेंगे। पूर्व में यह दोनों मंत्री अपने ही विभाग के अफसरों से भिड़ चुके थे और विभाग के सभी महत्वपूर्ण कार्य अटक गए थे।
बहरहाल गहलोत मंत्रिपरिषद का पुनर्गठन करवा कांग्रेस हाई कमान ने वर्ष 2023 के दिसम्बर में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को एकजुट होकर चुनाव लड़ने का संदेश दिया है।