आजादी के बाद 18 मार्च 1948 को पूर्वी राजपूताना की अलवर, भरतपुर, धौलपुर तथा करौली रियासतों को मिलाकर मत्स्य प्रदेश बनाया गया1अक्टूबर 1948 को करौली को राजस्व तथा पुलिस प्रशासन की दृष्टि से जिले का दर्जा मिला।
धौलपुर जिला बनने के बाद करौली की जनता में जागी थी चेतना
इतिहासकार वेणुगोपाल उपाध्याय के अनुसार राजस्थान में मत्स्य विलय के बाद करौली को सवाई माधोपुर नवीन जिले में उपजिला बनाया गया । नवंबर 1950 को इस निर्णय का विरोध करते हुए करौली को जिला मुख्यालय बनाने की मांग रखी। मार्च 1952 तक इस संबंध में पत्राचार चलता रहा । 1977 में राज्य के वित्त एवं राजस्व मंत्री मास्टर आदित्येंद्र द्वारा धौलपुर को जिला बनाने की स्वीकारोक्ति के बाद करौली की जनता में चेतना पैदा हुई। सरकार ने 1980 के प्रारंभ में लोकसभा चुनावों के बाद फिर 4 नए जिले बनाये, जिसमें करौली का नाम नहीं था ।
करौली जिला बनाने में बाबा हंसराम गुर्जर बने सूत्रधार
2 जून 1981 को राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री जगनाथ पहाड़िया ने करौली यात्रा के दौरान नगाड़खाना दरवाजे पर विशाल जनसभा में स्पष्ट रूप से कहा था कि आपके विधायक जनार्दन सिंह गहलोत के सामने करौली को जिला बनाने अथवा लघु उद्योग निगम का अध्यक्ष बनाए जाने के दो विकल्प हैं, कोई एक विकल्प चुन सकते हैं। किंतु इस अवसर पर विधायक जनार्दन सिंह गहलोत द्वारा करौली की उपेक्षा की गई।
1996 के अंत में करौली विधायक हंसराम गुर्जर ने भैरोसिंह शेखावत को तत्काल बिना कोई शर्त रखे समर्थन देकर करौली को जिला बनाने का रास्ता प्रशस्त किया।
19 जुलाई 1997 को मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत ने दी स्वीकृति
उपाध्याय के अनुसार आखिर 11 मार्च 1997 को वित्त मंत्री हरिशंकर भावद्य ने विधानसभा में बजट प्रस्तुत करते हुए करौली के पिछड़े डांग क्षेत्र के विकास के लिए नया जिला बनाने की घोषणा की। 10 मई 1997 को प्रीतम सिंह आईएएस ने ऑफिसर आन स्पेशल ड्यूटी पद पर कार्यभार संभाला और महाराजा हाई स्कूल भवन को जिला कलेक्टर कार्यालय के लिए उपयुक्त मानते हुए 19 जुलाई 1997 को मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत के कर कमलों से जिला कलेक्टर कार्यालय का श्री गणेश किया गया।
जिले का प्रारंभिक आकार
राजस्थान के 32 वें जिले करौली में करौली एवं हिंडोन को उपजिला तथा टोडाभीम, हिंडोन, करौली, सपोटरा, नादौती को तहसील एवं करणपुर, मंडरायल तथा मासलपुर को उप तहसील बनाते हुए 796 राजस्व गांव सम्मिलित किए गए। जिले में 5 पंचायत समितियां एवं 224 ग्राम पंचायतें रखी गई। इसी प्रकार 13 पुलिस थाने एवं सात पुलिस चौकियां बनाई गई। लम्बी विकास यात्रा के बाद अब जिले में 4 नगर निकाय, 6 उपखंड 9 तहसील, 4 उप तहसील 8 पंचायत समिति तथा 243 ग्राम पंचायतें हैं।
करौली जिले की प्रमुख समस्याएं
इस अवधि में जनसंख्या में भी लाख से अधिक वृद्धि हुई है, साथ ही जनसमस्याएं भी बढ़ी है। 25 वर्षों बाद भी युवाओं को रोजगार देने के लिए कोई उद्योग स्थापित नहीं हुआ। जिला मुख्यालय रेल लाइन से नहीं जुड़ पाया, रोडवेज डिपो कागजों में चल रहा है, चम्बल नदी पर पुल निर्माणाधीन है, पर्यटन का कार्यालय नहीं खुलने से जिला प्रगति नहीं कर पा रहा है। धार्मिक पर्यटन सर्किट में भी करौली का नाम नहीं है।
मेडिकल कॉलेज के भवन निर्माण की राह बनी है, किन्तु अभी शुरू होने में समय लगेगा। इंजीनियरिंग कॉलेज एवं पॉलिटेक्निक कॉलेज करौली के नाम से दूसरी जगह चल रहे हैं। नवीन जिला चिकित्सालय तक पहुँच कष्ट साध्य होने से बीमारों को समुचित सुविधा नहीं मिल रही है। रियासत कालीन पुराने चिकित्सालय भवन में सेटेलाइट अस्पताल स्वीकृत करने की जनता की मांग पूरी नहीं हुई है। पासपोर्ट कार्यालय, हेड पोस्ट ऑफिस सहित अनेक जिला स्तरीय कार्यालय एवं अन्य सुविधाओं से करौली आज तक वंचित है।
कुल मिलाकर करौली के विकास के सपने अभी साकार नहीं हो पाए है। यदि जन सेवक कहलाने वाले नुभायन्दे अपने स्वार्थ में लिप्त रहे तो आगे भी भारत सरकार के रिकॉर्ड में करौली आशान्वित जिला ही बना रहेगा।