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Rajasthan ACB: 'भ्रष्टों' पर ऑर्डर 48 घंटे में वापस; फिर विवादित फरमान किसके इशारे पर?

Rajasthan ACB: एसीबी के डीजी हेमंत प्रियदर्शी ने दो दिन में ही अपना विवादित ऑर्डर वापस ले लिया, जिसमें भ्रष्टों की पहचान नहीं बताने का फरमान था। अब आदेश कैंसिल हो गया पर इसके पीछे जरूर कोई छिपा कारण रहा है।

Om Prakash Napit

Rajasthan ACB: एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) ने अपने विवादित ऑर्डर को 48 घंटे में ही वापस ले लिया। यह ऑर्डर एसीबी के डीजी हेमंत प्रियदर्शी ने 4 जनवरी को जारी किया था, जिसमें भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों को ट्रैप करने के नाम-फोटो जारी नहीं करने के ऑर्डर जारी किए थे। आदेश जारी होने के साथ ही इस पर खूब हंगामा हुआ। विपक्ष समेत सरकार के मंत्री तक ने इसकी खुलकर खिलाफत की।

गौरतलब है कि एसीबी ने कोर्ट के फैसले को आधार बनाकर नाम और फोटो सार्वजनिक नहीं करने का आदेश दिया था। जबकि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने कभी भ्रष्टाचारियों का नाम छिपाने का कोई आदेश जारी किया ही नहीं था।

पहले जारी किया गया विवादित आदेश।

तो क्या CM के इशारे पर आया आदेश?

अशोक गहलोत ने कहा- कई मामले ऐसे होते हैं, जिसमें अफसर को झूठा फंसाया जाता है। उसे बदनामी का सामना नहीं करना पड़े, इसलिए ऐसा किया जा रहा है कि जब तक यह साबित न हो जाए कि उसने भ्रष्टाचार किया है, उसकी पहचान गुप्त रखी जाए। यह सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों का फैसला है।

यह सरकार की छवि चमकाने का प्रयास तो नहीं?

अब प्रश्न यह उठता है कि जिस अफसर की नियुक्ति राज्य सरकार की ओर से की जाती हो वह ऐसा विवादित आदेश भला बिना सरकार की सहमति के कैसे दे सकता है? चूंकि एसीबी गृह मंत्रालय के अधीन आती है और गृह मंत्रालय स्वयं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास है। ऐसे में यह हो नहीं सकता कि मुख्यमंत्री गहलोत को हेमंत प्रियदर्शी द्वारा जारी इस आदेश के बारे में पता नहीं हो।

पहले विवादित आदेश जारी होना, फिर दो दिन बाद ही आदेश वापस हो जाना...जरूर इसके पीछे कोई राजनीतिक मंशा छिपी हुई लगती है। लगता है जैसे इसके पीछे सरकार की मंशा अपनी छवि सुधारने की हो। क्योंकि इससे जनता में यह मैसेज जाता है कि सरकार भ्रष्टाचारियों के खिलाफ है, इसलिए उसने यह कदम उठाया है। ऐसे में हो सकता है एसीबी डीजी प्रियदर्शी ने पूर्व में भ्रष्टों की पहचान छिपाने का आदेश सरकार के इशारे पर ही जारी किया हो?

एसीबी का नया आदेश, इसमें पुराने आदेश को वापस लिया गया है।

मंत्री खाच​रियावास ने कहा था- वापस होगा ऑर्डर

एसीबी के आदेश के खिलाफ खाद्य मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा था- मेरा यह मानना है कि डीजी ने एंटी करप्शन ब्यूरो का चार्ज लेते ही जो ऑर्डर निकाला, वह ऑर्डर रिजेक्ट होने वाला ही है। मैं उस ऑर्डर से सहमत नहीं हूं। कोई भी कांग्रेस का विधायक, मंत्री इस तरह की कार्रवाई का समर्थन नहीं करेगा। खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत क्या इस तरीके के डीजी के ऑर्डर को मान सकते हैं?

खाचरियावास ने कहा था कि सरकार इस तरह के ऑर्डर के साथ नहीं है। यह बिल्कुल गलत है। हम कोई ऐसा काम नहीं करेंगे, जिससे हमारे पूरे किए हुए काम पर पानी फिर जाए, हमने कांग्रेस सरकार की नीयत आपको बता दी।

सरकार का तुगलकी फरमान : बीजेपी

राजस्थान में विपक्षी दल बीजेपी ने इस आदेश के बाद सरकार की नीयत पर सवाल उठाया है। इस आदेश के जारी होने के बाद राज्य में विपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौड़ ने सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि यह सरकार का ‘तुगलकी फरमान’ है। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि राज्य सरकार प्रेस की आजादी को रोक रही है।

उन्होंने लिखा,”भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने के लिए मीडिया में आरोपियों की फोटो और नाम उजागर नहीं करने के आदेश से प्रेस की स्वतंत्रता का हनन किया जा रहा है” राठौड़ ने आखिर में कहा कि जीरो टोलरेंस के सिद्धांत पर काम करने के वादे को धूलदर्शित कर चुकी गहलोत सरकार का यह आदेश इस बात का सबूत है कि एसीबी अब भ्रष्टाचारियों की ढाल बनकर काम करेगी।

बीजेपी प्रवक्ता रामलाल शर्मा ने कहा कि राजस्थान पुलिस में एसीबी एडीजी का यह फरमान किसी भी रूप में सही नहीं है। घूसखोर का नाम सार्वजनिक नहीं किया जाएगा तो घूस लेने वाले में डर नहीं होगा। हमारा सामाजिक ताना बाना ऐसा कि व्यक्ति को गलत रास्ते पर जाने और नाम उजागर होने की आशंका के डर से ही अपराध से बचता है। ऐसे में राजस्थान एसीबी घूसखोर की वास्तविकता सामने नहीं लाएगी तो घूसखोरों में भय नहीं रह पाएगा। सरकार को यह आदेश तत्काल रूप से वापस लेनेा चाहिए। इसके साथ ही भ्रष्टाचार पर अंकुश के सारे उपाय करने चाहिए।

जानें इसलिए नहीं थी इस आदेश की जरूरत…

  • क्योंकि शिकायत वेरिफाई होने के बाद ही होती है ट्रैप की कार्रवाई।

  • ACB ट्रैप की कार्रवाई से पहले पूरी तैयारी करती है। शिकायत मिलने के बाद उसे हर तरह से वेरिफाई किया जाता है।

  • संबंधित अधिकारी से इजाजत लेकर आरोपी की फोन टैपिंग की जाती है। उसे बाद में सबूत के तौर पर कार्रवाई में शामिल तक किया जाता है।

  • पुख्ता होने के बाद ही ACB अपने नोट परिवादी को संबंधित को रिश्वत के तौर पर देने के लिए कहती है।

  • जब ट्रैप होता है, तो वही नोट बरामद किए जाते हैं। यह भी दूसरी किश्त के होते हैं। यानी की घूसखोर पहली किश्त तो ले चुका होता है। आरोप तो यहीं प्रमाणित हो जाते हैं।

  • इस पूरी कार्रवाई में ACB अपने दो गवाह, जो अन्य विभाग के सरकारी कर्मचारी होते हैं, को भी तैयार किए जाते हैं। इसके बाद एफआईआर दर्ज होती है।

  • रिश्वत लेने पर गिरफ्तारी का आधार यही ग्राउंड होता है। राजस्थान भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम - 1988 के तहत किसी भी लोक सेवक के खिलाफ लगे रिश्वत के आरोपों का सत्यापन होने के बाद ही FIR रजिस्टर की जाती है। ये एक्ट के तहत ट्रैप में तत्काल गिरफ्तारी की ताकत देता है, क्योंकि ACB के पास पक्के सबूत होते हैं।

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