डेस्क न्यूज़- उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को राजनीतिक दलों को निर्देश दिया है कि वे अपनी वेबसाइट पर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के चयन के कारणों को अपलोड करें। अदालत ने यह फैसला इसलिए दिया है क्योंकि पिछले चार राष्ट्रीय चुनावों में राजनीति के अपराधीकरण में काफी ज्यादा वृद्धि देखने को मिली है। शीर्ष अदालत का कहना है कि राजनीतिक पार्टियों को 48 घंटे के भीतर अपनी वेबसाइट और सोशल मीडिया पर विवरण अपलोड करना अनिवार्य होगा। पार्टियों को चुनाव आयोग को 72 घंटे के भीतर ब्यौरा देना होगा।
सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों को अखबारों, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और अपनी वेबसाइट पर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के चयन का कारण बताते हुए वेबसाइट पर उनका परिचय पत्र, उपलब्धियां और उनके अपराध का विवरण प्रकाशित करने का भी निर्देश दिया है।
उच्चतम न्यायालय का कहना है कि यदि राजनीतिक दल आदेश का पालन नहीं करते हैं तो वह अवमानना के उत्तरदायी होंगे। अदालत ने चुनाव आयोग से कहा है कि यदि राजनीतिक पार्टियां आदेश का पालन करने में विफल रहती हैं तो वह अदालत में अवमानना याचिका दायर करे।
अपराधीकरण पर जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, जानिए यहां
जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा आठ दोषी राजनेताओं को चुनाव लड़ने से रोकती है। लेकिन ऐसे नेता जिन पर केवल मुकदमा चल रहा है, वे चुनाव लड़ने के लिये स्वतंत्र हैं। भले ही उनके ऊपर लगा आरोप कितना भी गंभीर है।
जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा आठ(1) और (2) के अंतर्गत प्रावधान है कि यदि कोई विधायिका सदस्य (सांसद अथवा विधायक) हत्या, दुष्कर्म, अस्पृश्यता, विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम के उल्लंघन, धर्म, भाषा या क्षेत्र के आधार पर शत्रुता पैदा करना, भारतीय संविधान का अपमान करना, प्रतिबंधित वस्तुओं का आयात या निर्यात करना, आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होना जैसे अपराधों में लिप्त होता है, तो उसे इस धारा के अंतर्गत अयोग्य माना जाएगा और छह वर्ष की अवधि के लिये अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।
जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा आठ(3) में प्रावधान है कि उपर्युक्त अपराधों के अलावा किसी भी अन्य अपराध के लिये दोषी ठहराए जाने वाले किसी भी विधायिका सदस्य को यदि दो वर्ष से अधिक के कारावास की सजा सुनाई जाती है तो उसे दोषी ठहराए जाने की तिथि से अयोग्य माना जाएगा। ऐसे व्यक्ति सजा पूरी किए जाने की तारीख से छह वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ सकेंगे।
जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा आठ(4) के अनुसार यदि दोषी सदस्य निचली अदालत के इस आदेश के खिलाफ तीन महीने के भीतर हाईकोर्ट में अपील दायर कर देता है तो वह अपनी सीट पर बना रह सकता है। हालांकि इस धारा को 2013 में 'लिली थॉमस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया' के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बताकर निरस्त कर दिया था।