सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र के वैक्सीन नीति के फैसले में हस्तक्षेप न करने के रुख पर पलटवार करते हुए कहा कि उसके पास न्यायिक समीक्षा का अधिकार है। शीर्ष अदालत ने केंद्र की उदारीकृत टीकाकरण नीति की बारीकी से जांच की और कई दिशा-निदेशरें को पारित करने के अलावा, सरकार को इस संबंध में एक हलफनामा दायर करने के निर्देश दिए। अदालत ने केंद्र से उसके द्वारा उठाए गए मुद्दों और प्रश्नों पर जवाब देने को कहा है।
न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, एल. नागेश्वर राव और एस. रवींद्र भट की पीठ ने कहा कि जब कार्यकारी नीतियों द्वारा नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है, तो अदालत मूक दर्शक नहीं रह सकती है। यह कहते हुए अदालत ने जोर देकर कहा कि उसके पास न्यायिक समीक्षा की शक्ति है।
पीठ ने कहा, यह अदालत एक खुली अदालत की न्यायिक प्रक्रिया के तत्वावधान में कार्यपालिका के साथ विचार-विमर्श करेगी, जहां मौजूदा नीतियों के औचित्य का पता लगाया जाएगा और मूल्यांकन किया जाएगा कि क्या वे संवैधानिक जांच से बचे हैं।
पीठ ने जोर देकर कहा कि अदालतों ने अक्सर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के प्रबंधन में कार्यपालिका की विशेषज्ञता को दोहराया है। इसने महामारी से लड़ने के लिए व्यापक अक्षांश की आड़ में मनमानी और तर्कहीन नीतियों के खिलाफ चेतावनी भी दी है।
शीर्ष अदालत ने केंद्र की वैक्सीन नीति में पांच मुद्दों का हवाला दिया, जिसमें विभिन्न श्रेणियों की आबादी के बीच वैक्सीन की खरीद और वितरण, निजी अस्पतालों द्वारा टीकाकरण के प्रभाव, अंतर मूल्य निर्धारण का आधार और प्रभाव, वैक्सीन लॉजिस्टिक्स और डिजिटल डिवाइड से जुड़े प्रमुख मुद्दे शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि वह टीकाकरण नीति के संबंध में अपनी सोच को दशार्ने वाले दस्तावेजों के साथ ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में अब तक टीकाकरण की आबादी के प्रतिशत (एक खुराक और दोनों खुराक के साथ) पर डेटा प्रस्तुत करे।