94वें एकेडमी अवॉर्ड्स के नॉमिनेशन्स की सूची में भारत की "राइटिंग विद फायर" डॉक्यूमेंट्री (Writing with Fire) ने ऑस्कर 2022 की फाइनल नॉमिनेशन (Oscars 2022 nominations) में जगह बना ली है। बता दें कि 'जय भीम' और 'मरक्कर' नॉमिनेशंस से बाहर हो गई हैं। ऐसे में "Writing with Fire" डॉक्यूमेंट्री को ऑस्कर में एंट्री मिलने के बाद से ये हर कोई इस फिल्म पर चर्चा कर रहा है। दरअसल ये डॉक्यूमेंट्री एक न्यूज पेपर की कहानी है जिसका नाम है खबर लहरिया (Khabar Lahariya) है। ऐसे में आपके मन में भी कोतूहल का विषय बन रहा होगा कि "राइटिंग विद फायर" डॉक्यूमेंट्री का विषय आखिर क्या है, क्यों इस डॉक्यूमेंट्री को फिल्म की दुनिया में सबसे बड़े पुरस्कार का नॉमिनेशन मिला और ये खबर लहरिया अखबार क्या है और ये कैसे शुरू हुआ।
दलित, अल्पसंख्यक और आदिवासी महिलाओं द्वारा चलाए गए न्यूजपेपर 'खबर लहरिया' की स्टोरी है - Writing with Fire
राइटिंग विद फायर डॉक्यूमेंट्री 30 जनवरी 2021 को रिलीज हुई, इसे सुमित घोष और रिंतु थोमस ने निर्देशित किया है और प्रॉड्यूस भी। ये डॉक्यूमेंट्री दलित, अल्पसंख्यक और आदिवासी महिलाओं द्वारा चलाए गए न्यूजपेपर 'खबर लहरिया' की स्टोरी है। इसमें बताया गया है कि कई वर्षों तक गांव की महिलाओं ने मोबाइल फोन और सीमित संसाधनों के सहारे रिपोर्टिंग की गई और पेपर में क्राइम, वुमन एम्पावरमेंट और दलित-पिछड़े वर्गों सहित कई इश्यूज को कवर किया गया। इस अखबार को शुरू करने वाली इन महिलाओं के जज्बे को दिखाया गया है, महिलाएं अपने मकसद में वो मुकाम हासिल कर लेती हैं जो पढ़े लिखे और बड़े दिग्गज नहीं कर सके थे। खास बात ये है कि ये पूरी डॉक्यूमेंट्री सत्य घटना पर आधारित है। जिस पर सुमित घोष और रिंतु थोमस ने 'राइटिंग विद फायर' डॉक्यूमेंट्री का निर्देशन किया है।
महिलाओं के जज्बे की कहानी
अखबार के बारे में तो हम और आप सभी परिचित हैं। रोज अल सुबह हमारे और आपके घरों के दरवाजे पर हॉकर न्यूज पेपर देता है। हम दुनियाभर की तमाम जानकारी पढ़ते हैं, लेकिन एक न्यूज पेपर ऐसा भी है जिसके पीछे की कहानी आप नहीं जानते होंगे। रिंतु थोमस की 'राइटिंग विद फायर' डॉक्यूमेंट्री के बाद यह अखबार अब चर्चा का विषय बन गया है। इस अखबार का नाम है खबर लहरिया। ये सिर्फ एक न्यूज पेपर नहीं बल्कि महिलाओं के जुनून, जज्बे और लगन की कहानी है। ये न्यूजपेपर महज खबरें नहीं बल्कि महिलाओं और बच्चों की भी प्रेरणा है और उन्हें प्रेरित भी करता है। महिलाओं के इसी जुनून की कहानी को बयां करती यह डॉक्यूमेंट्री अब दुनियाभर में अपनी सफलता के झंडे गाढ़ रही है।
खबर लहरिया अखबार कब अस्तित्व में आयाॽ
साल 2002 की बात है... खबर लहरिया का प्रकाशन चित्रकूट सहित बुंदेलखंड के कई जिलों से शुरू हुआ। ये हिंदी व अंग्रेजी में न प्रकाशित होकर इसे बुंदेली और अवधि बोली में प्रकाशन शुरू किया गया। इसकी वजह ये कि इस अखबार के न्यूज रूम में वो महिलाएं इन खबरों का प्रकाशित कर रहीं थी जों अंग्रेजी या हिंदी से अनजान थी। इन महिलाओं को सिर्फ अपने क्षेत्र की बोली ही आती थी और उन्होंने अपने क्षेत्र के ही मुद्दों को अपनी देसी भाषा में उठाया। उनकी बोली में इतनी पावर थी कि आज उनकी प्रेरणास्पद कहानी देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी सराही जा रही है।
करीब 20 साल पहले चित्रकूट से 8 पन्नों में प्रकाशन के अखबार खबर लहरिया की शुरुआत हुई। ये अखबार धीरे धीरे सफलता के पायदान चढ़ता गया और बाद में लखनऊ और वाराणसी से भी पब्लिश होने लगा। बुंदेली भाषा में प्रकाशित होने के बाद ये अवधि और भोजपुरी भाषाओं में भी छपने लगा। इस अखबार के लिए धीरे धीरे 40 ग्रामीण महिलाओं का एक ग्रूप बना और इन्होंने अखबार के न्यूजरूम से से जुड़ा हर छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा काम करना शुरू कर दिया। ये रिपोर्ट्स प्रिपेयर के साथ एडिट करना, लिखना और यहां तक कि डोर टु डोर अखबार पहुंचाने का काम भी महलाओं के ही जिम्मे था।
देश का पहला दलित आदिवासी और अल्पसंख्यक अखबार जिसे महिलाएं चलाती थीं
ये संभवत: देश का पहला न्यूजपेपर है जिसे दलित-आदिवासी और अल्पसंख्यक महिलाएं निकालती थीं। इसकी 'निरंतर एनजीओ' ने मीरा जाटव, शालिनी जोशी और कविका बुंदेलखंडी के साथ मिलकर शुरुआत की। कविता एक दलित परिवार से बिलॉन्ग करती हैं। चित्रकूट के कुंजनपुर्वा गांव की रहने वाली कविता की शादी महज 12 साल की उम्र में कर दी गई थी। वह शादी और घर के रोजमर्रा कामों चलते पढ़ाई पूरी नहीं कर सकी, लेकिन उन्होंने एनजीओ की मदद से पढ़ाई पूरी कर ली। वहीं टीम के साथ मिलकर साल 2002 में खबर लहरिया अखबार को शुरू किया।
किस तरह अखबार में काम होता है?
ये महिलाएं समाज के ऐसे मुद्दों को उठाती हैं जिससे जनता अनभिज्ञ है। वहीं सरकार के वादे, भ्रष्टाचार, महिलाओं के खिलाफ हिंसा, दलित-आदिवासी के इश्यूज और गरीबों व महिलाओं से जुड़े इश्यूज को कवर किया जाता है। साल 2015 में ये अखबार बंद हो गया लेकिन इसकी वेबसाइट शुरू की गई। अब ये पूरी तरह से डिजिटल तौर पर काम करता है और स्थानीय भाषाओं में शुरू किया गया ये सफर आज इंग्लिश भाषा में भी खबरें परोसता है।
पूरी टीम महिला पत्रकारों की
खबर लहरिया को जो खास बनाती है वो ये कि इसकी पूरी टीम महिला पत्रकारों की है। इस टीम में कोई आदिवासी तो कोई दलित है। सभी महिलाओं ने एकजुट होकर पत्रकारिता का बिगुल बजाया। इन महिलाओं के पास किसी तरह की डिग्री या पढ़े लिखे होने के सर्टिफिकेट नहीं है, लेकिन इनका जज्बे ने वो सब कर दिया, जो बड़े संस्थानों के करने में पसीने छूट जाते हैं।