डेस्क न्यूज. आपको जानकर हैरानी होगी कि पृथ्वी को बचाने के लिए परमाणु बम का विस्फोट करना पड़ सकता है। ये बिल्कुल सच है। दरअसल, अमेरिका में लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लेबोरेटरी के पूर्व शोधकर्ता पैट्रिक किंग ने सुझाव दिया है कि भविष्य में हमें पृथ्वी को विनाश से बचाने के लिए परमाणु बमबारी का विकल्प अपनाना पड़ सकता है।
विज्ञान ने साबित कर दिया है कि करीब 6.6 करोड़ साल पहले एक बहुत बड़ा क्षुद्रग्रह इस धरती से टकराया था,
जिसमें डायनासोर जैसे बहुत बड़े जीवों का अस्तित्व खत्म हो गया था।
हालांकि, उसके बाद से इस धरती पर दोबारा ऐसी कोई बड़ी दुर्घटना नहीं हुई।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमारा भविष्य भी पूरी तरह सुरक्षित है।
अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी से क्षुद्रग्रह के टकराने का मामला
केवल अतीत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि भविष्य में भी यह खतरा बना हुआ है।
इस दिशा में काम कर रहे वैज्ञानिक पैट्रिक किंग ने हमें चेतावनी दी है।
अपने अध्ययन में पैट्रिक किंग का कहना है कि भविष्य में पृथ्वी को नष्ट करने की कोशिश
करने वाले क्षुद्रग्रहों से बचने के लिए परमाणु बमों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
उनका तर्क है कि अगर मानव इन क्षुद्रग्रहों को समय पर पृथ्वी से टकराने से
रोकने में विफल रहता है, तो हमारे पास मानवता को बचाने का एक ही तरीका होगा।
यानी परमाणु बम का इस्तेमाल।
यह शोध जर्नल एक्ट एस्ट्रोनॉटिका में प्रकाशित हुआ है।
हालांकि, इसने कहा कि क्षुद्रग्रहों को रोकने के लिए परमाणु बमों
का इस्तेमाल आखिरी विकल्प होगा। क्योंकि क्षुद्रग्रहों को रोकने के
लिए परमाणु बमों के इस्तेमाल का तरीका काफी जटिल है।
वैसे, कई वैज्ञानिक पैट्रिक के इस सुझाव से चिंतित हैं।
उनका कहना है कि ऐसा करने से हम इंसानियत को बचाने की
बजाय इंसानियत को खत्म कर देंगे। परमाणु बमों के प्रयोग से निकलने वाले
रेडियोधर्मी तत्व पूरे ब्रह्मांड को नष्ट कर देंगे। ये तत्व पृथ्वी पर गिरने लगेंगे।
वैज्ञानिकों की यह चिंता जायज है। इसलिए अंतरिक्ष वैज्ञानिक नताली स्टार्की का कहना है
कि इस स्थिति से बचने के लिए हमें एक खास तरीका अपनाना होगा.
उनका कहना है कि अगर कोई क्षुद्रग्रह तेजी से पृथ्वी के आर-पार गुजरता है
और उसका पृथ्वी की कक्षा तक पहुंचना खतरनाक साबित हो सकता है,
तो ऐसे क्षुद्रग्रहों को समय रहते यानी पृथ्वी की कक्षा के करीब आने से पहले
नष्ट करने के लिए परमाणु बमों का इस्तेमाल किया जा सकता हैं।
ऐसा करने से रेडियोधर्मी तत्वों का पृथ्वी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।