डेस्क न्यूज. पंजाब में अब तक कांग्रेस के तीन विधायक उस पार्टी में शामिल हो चुके हैं जिसे पंजाब के चुनावी मौसम में कमजोर बताया जा रहा है। ये तीनों विधायक पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के करीबी माने जाते हैं। लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि वह कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस की जगह बीजेपी में क्यों शामिल हुए। गुर हर सहाय विधानसभा सीट से विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री राणा गुरमीत सोढ़ी 21 दिसंबर को भाजपा में शामिल हुए थे। वह कैप्टन की सरकार में खेल मंत्री थे, लेकिन चन्नी के दौर में उन्हें कैबिनेट से बाहर कर दिया गया। इसके बाद कादियान से कांग्रेस विधायक फतेह जंग बाजवा और श्री हरगोबिंदपुर से विधायक बलविंदर सिंह भी मंगलवार को BJP में शामिल हो गए।
पंजाब की राजनीति की परख रखने वाले लोगों का कहना है कि इन लोगों के बीजेपी में शामिल होने की वजह शहरी इलाकों में बीजेपी का अच्छा जनाधार है। इन नेताओं को लगता है कि वे भाजपा के चुनाव चिह्न पर बड़ी संख्या में हिंदू वोट हासिल कर अपने चेहरे पर सिख वोट पा सकेंगे और विधायक बन पाएगें। कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी में शामिल नहीं होने को लेकर कहा जा रहा है कि वह अभी नई पार्टी हैं। ऐसे में जीत हासिल करना मुश्किल होगा। कहा जा रहा है कि आने वाले समय में कैप्टन अमरिंदर सिंह भी अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर देंगे। हालांकि, पंजाब लोक कांग्रेस के प्रवक्ता प्रिंस खुल्लर ने इन अफवाहों को खारिज करते हुए कहा है कि ये नेता कैप्टन से सलाह लेने के बाद ही भाजपा में शामिल हुए हैं।
प्रिंस खुल्लर के मुताबिक राणा गुरमीत सोढ़ी फिरोजपुर शहर से लड़ना चाहते हैं, जो एक शहरी इलाका है और यहां बड़ी संख्या में हिंदू हैं। इसके अलावा फतेह जंग बाजवा भी हिंदू बेल्ट से लड़ना चाहते हैं। ये सीटें बीजेपी के पारंपरिक वोट की हैं। ऐसे में इन नेताओं ने पंजाब लोक कांग्रेस की जगह बीजेपी में जाना सही समझा है। प्रिंस खुल्लर का कहना है कि यह गठबंधन के दलों के बीच एक समझ है।
सुत्रों की मानें तो बीजेपी, कैप्टन अमरिंदर और ढींडसा ने मिलकर फैसला किया है कि तीनों पार्टियों के दो-दो लोगों का पैनल बनेगा, जो टिकट तय करेगा। माना जा रहा है कि इस समझौते से बीजेपी को शहरी सीटों पर बढ़त मिल सकती है। गौरतलब है कि 2017 में बीजेपी ने पठानकोट, भोआ, जालंधर, मुकेरियां, आनंदपुर साहिब, होशियारपुर, अबोहर, फिरोजपुर सिटी, फाजिल्का, फगवाड़ा और सुजानपुर समेत 23 शहरी सीटों पर चुनाव लड़ा था। अकाली दल के साथ उनकी यही समझ थी कि वह शहरों में लड़ेंगी, जबकि अकाली दल, जिसकी सिखों में मजबूत उपस्थिति थी, ग्रामीण सीटों से चुनाव लड़ती थी।
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