लखनऊ की चर्चित सरोजनीनगर विधानसभा सीट पर टिकट को लेकर योगी सरकार में मंत्री स्वाति सिंह और उनके पति दयाशंकर सिंह के बीच रस्साकशी के चलते पार्टी ने दोनों को प्रत्याशी न बनाकर राजराजेश्वर सिंह को मैदान में उतारा दिया है।
ऐसे में विवाद तो खत्म हो गया है लेकिन एक ही सीट को लेकर पति-पत्नी का झगड़ा अब राजनीति के अखाड़े में चर्चा का विषय बना चुका है। एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल बातचीत के दौरान दयाशंकर सिंह ने राजराजेश्वर सिंह को टिकट मिलने पर खुशी जाहिर की।
उन्होंने कहा कि वह राजेश्वर सिंह को जिताने की हम पूरी कोशिश करेंगे। दयाशंकर ने कहा कि राजेश्वर सिंह भी बलिया के ही हैं और मैं स्वयं भी वहीं का हूं। इसलिए हमारे बीच पारिवारिक संबंध भी हैं।
बता दें कि मंगलवार को बीजेपी के घोषित उम्मीदवारों में लखनऊ के सरोजनी नगर विस. क्षेत्र में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) स्वाति सिंह की जगह पार्टी ने राजराजेश्वर सिंह को मैदान में उतारा है। राजेश्वर सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस सेवा (यूपीपीपीएस) से साल 2007 में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) में प्रतिनियुक्ति पर थे और उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लिया है।
अपने वीआरएस की जानकारी देते हुए राजेश्वर सिंह ने एक ट्वीट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक एसके मिश्रा को धन्यवाद भी दिया है। सूत्रों की मानें तो सिंह यूपी के सुलतानपुर की सदर विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट के लिए प्रयास कर रहे थे।
राजेश्वर सिंह नें ईडी में रहते हुए 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर सौदा, एयरसेल मैक्सिस घोटाला, आम्रपाली घोटाला जैसे कई मामलों की जांच की और सुर्खियों में रहे। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि स्वाति सिंह और उनके पति दयाशंकर सिंह दोनों सरोजिनी नगर से टिकट के लिए दावेदारी कर रहे थे और इस टकराव को खत्म करने के लिए पार्टी ने एक नया चेहरा उतारा है। राजेश्वर सिंह लखनऊ में पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) के रूप में भी लोकप्रिय रहे।
भारत का सबसे बड़ा आर्थिक गबन 2-G घोटाला है। भारत के महालेखाकार और नियंत्रक (कैग) ने 2010 में अपनी रिपोर्ट में साल 2008 में किए गए स्पेक्ट्रम आवंटन पर सवाल खड़े किए थे। नीलामी के बजाए कंपनियों को 'पहले आओ और पहले पाओ' की नीति पर लाइसेंस दिए गए थे। इससे सरकारी खजाने को एक लाख 76 हजार करोड़ रुपए की आर्थिक क्षति मानी गई थी। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई। PMO और तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम पर भी सवाल उठाए गए। इस मामले में टेलीकॉम मंत्री ए. राजा को 15 महीने जेल में रहना पड़ा। तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि की बेटी कनिमोझी भी जेल गईं। उन्हें भी जमानत मिली।
दिग्गज नेताओं समेत 14 लोग और 3 कंपनियों पर घोटाले के आरोप लगे। 10 साल तक सुनवाई के बाद सबको बरी कर दिया गया। CBI के विशेष जज ओपी सैनी ने 700 पन्नों की रिपोर्ट में आरोपियों पर धोखाधड़ी, घूस लेने और सबूतों से छेड़छाड़ के आरोप लगाए थे। अदालत के सामने ये आरोप नहीं टिके थे।
2017 में CBI को INX मीडिया ग्रुप के खिलाफ 305 करोड़ के विदेशी फंड लेने के दौरान फॉरेन इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड (FIPB) की मंजूरी में कई तरह की अनियमितताएं मिली थीं। पाया गया कि साल 2007 में कंपनी को निवेश की स्वीकृति दी गई थी। पी चिदंबरम वित्त मंत्री हुआ करते थे। जांच एजेंसियों ने चिदंबरम और उनके बेटे को अभियुक्त बनाया था। ED ने INX मीडिया की प्रमोटर इंद्राणी मुखर्जी और उनके पति पीटर मुखर्जी से पूछताछ की थी।
बिल्डर्स ने बायर्स के 3,500 करोड़ को खुद के फायदे के लिए इस्तेमाल किया। आम्रपाली ग्रुप की 46 रजिस्टर्ड कंपनियां हैं। कंस्ट्रक्शन पूरे नहीं किए गए थे। पैसों का निवेश म्यूचुअल फंड, इंश्योरेंस आदि के लिए हुआ। आम्रपाली डायरेक्टर्स के इनकम टैक्स के भुगतान के लिए भी पैसे का इस्तेमाल हुआ है। इस मामले में आम्रपाली के CMD अनिल शर्मा और दो अन्य डायरेक्टर्स को पुलिस ने गिरफ्तार किया था।
जांच में बैंक, ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण की भी मिलीभगत मिली। ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने 10% प्रीमियम के बदले आम्रपाली को प्लॉट दिया था। आर्थिक अपराध शाखा में दर्ज FIR के अनुसार, 'आम्रपाली ग्रुप ने करीब 2 हजार 647 करोड़ रुपए अपने विभिन्न प्रोजेक्ट्स/टॉवर्स के नाम पर ग्राहकों से उगाही की थी।
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