Ram Mandir: अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे राजनीतिक दलों के बीच बयानबाजी और पुराने मुद्दे निकलकर बाहर आ रहे हैं।
कांग्रेस पार्टी की ओर से राम मंदिर उद्घाटन का न्योता ठुकराने पर भाजपा ने इसे मुद्दा बना लिया है।
भाजपा का कहना है कि जैसे पंडित नेहरू ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर के साथ जो किया था, वही अब कांग्रेस पार्टी राम मंदिर के साथ कर रही है।
अब ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि आखिर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के मामले क्या किया था। आइए जानते हैं राम मंदिर के साथ सोमनाथ मंदिर के कनेक्शन की पूरी कहानी ।
मिडिया रिपोर्ट के अनुसार 12 प्रतिष्ठित ज्योतिर्लिंगों में से एक गुजरात के सोमनाथ मंदिर को विदेशी आक्रांताओं ने कई बार नष्ट किया।
इतिहास में कई बार सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का जिक्र है, आखिरी बार औरंगजेब के आदेश पर इस मंदिर को ढहाया गया था।
इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत से भारत की आजादी के बाद पुनर्निर्माण होने तक यह मंदिर उसी जीर्ण-शीर्ण हाल में रहा था।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि आजादी के बाद गृह मंत्री सरदार पटेल ने सोमनाथ को उसके पुराने गौरव में लाने की कसम खाई थी।
हालांकि पंडित नेहरू को एक धार्मिक मुद्दे में भागीदारी के सवाल, इसके पुनर्निर्माण और 1951 में मंदिर के उद्घाटन के दौरान सरकारी प्रतिनिधियों की उपस्थिति को लेकर गहरी आशंका थी।
दावा किया जाता है कि पंडित नेहरू को डर था कि इसे एक धर्म के प्रति खास व्यवहार के रूप में गलत समझा जा सकता है।
इससे धर्मनिरपेक्षता के प्रति देश की प्रतिबद्धता खतरे में पड़ सकती है। सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण की योजना और नेताओं के बीच मतभेद जूनागढ़ रियासत के 1947 में भारतीय संघ में शामिल होने के कुछ ही साल बाद सामने आ गए थे।
जबकि सोमनाथ मंदिर के निर्माण के प्रभारी केएम मुंशी ने इसे हिंदू पुनरुत्थानवाद का प्रयास कहा गया था।
इतिहासकार रामचन्द्र गुहा ने लिखा कि वह (नेहरू) असुरक्षाओं के प्रति काफी सचेत थे। कुछ साल पहले ही हिंदू और मुस्लिम एक-दूसरे के गले लगे थे।
नेहरू नहीं चाहते थे कि दोनों समुदायों का फिर से ध्रुवीकरण हो जब भारत नए सिरे से बस रहा था। ऐसे में पुराने घावों को फिर से कुरेदने वाला काम नहीं करना चाहते थे।
वह नाजुक समय था। नेहरू ने सोचा था कि राष्ट्रपति को उस मंदिर से खुद को जोड़ने की जरूरत नहीं है, जिसे सैकड़ों साल पहले एक मुस्लिम आक्रमणकारी ने नष्ट कर दिया था। जब भारत के मुसलमानों का गजनी के महमूद से कोई लेना-देना नहीं था।
पंडित नेहरू यह भी नहीं चाहते थे कि सरकार सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण पर कोई पैसा खर्च करे।
उन्होंने वकालत की थी कि पुनर्निर्माण को राज्य निधि के बजाय सार्वजनिक दान के माध्यम से वित्त पोषित किया जाना चाहिए।
दावा किया जाता है कि पंडित नेहरू ने इस बात ये तर्क देते हुए कहा था कि एक धर्मनिरपेक्ष सरकार को किसी खास धर्म का पक्ष नहीं लेना चाहिए।
सोमनाथ मंदिर को नेहरू और राजेंद्र प्रसाद की हुई थी तकरार
हालांकि साल 1951 में सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन से ठीक पहले नेहरू ने राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को पत्र लिखा था।
इस पत्र में मंदिर के उद्घाटन में आए राष्ट्रपति पर अपना असंतोष व्यक्त किया था। पंडित नेहरू ने भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को लिखा था कि मैं स्वीकार करता हूं कि मुझे सोमनाथ मंदिर के शानदार उद्घाटन के साथ आपको जोड़ने का विचार पसंद नहीं है।
यह केवल एक मंदिर का दौरा नहीं है, जो निश्चित रूप से आपके या किसी और के द्वारा किया जा सकता है, बल्कि एक महत्वपूर्ण समारोह में भाग लेना है जो दुर्भाग्य से इसके कुछ निहितार्थ हैं। वहीं नेहरू की आपत्तियों के बावजूद राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद मई 1951 में सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन में शामिल हुए।
इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने पंडित नेहरू को बहुत बढ़िया तर्क दिया था। राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू को लिखा कि अगर मुझे आमंत्रित किया गया तो मैं मस्जिद या चर्च भी जाऊंगा। यह भारतीय धर्मनिरपेक्षता का मूल है।
हमारा राष्ट्र न तो अधार्मिक हैं और न ही धर्म-विरोधी है। अब इसी बात को असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने फिर से जीवित कर दिया है।