एक बार भारत में कोराना फिर से पैर पसारने लगा है। इसी के साथ ही केरल में कोरोना का नए सबवैरिएंट JN.1 की भी पुष्टि हुई है।
कोरोना के दौरान लोगों की जान बचाने के लिए देशभर के सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट लगाए गए थे। अब इनके अस्तित्व पर ही संकट मंडरा रहा है।
इसको लेकर देश के 9 शहरों में सर्वे किया गया। पता चला कि 48 प्लांट में से 20 ही चालू हैं, जबकि 28 बंद पड़े हैं।
कई अस्पतालों में इन्हें हफ्ते, पखवाड़े या महीने में एक बार मॉक ड्रिल के लिए चालू किया जाता है, लेकिन आईसीयू, ओटी में आपूर्ति के लिए इनका इस्तेमाल नहीं हो रहा है।
इसको लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि मॉक ड्रिल करना इसके लिए पर्याप्त नहीं है। मशीने खराब न हो इसके लिए इसे लगातार चलाते रहना चाहिए।
तभी ये मशीने सही से काम करेंगी। पीएसए (प्रेशर स्विंग एबर्साप्शन) तकनीक पर बने इन प्लांट का जीवनकाल 10 साल है। यदि इनका इस्तेमाल नहीं किया गया,
तो ये जल्द कबाड़ हो जाएंगे। वहीं और जगह की बात की जाए तो फरीदाबाद और हरियाण में इनका इस्तेमाल कर ऑक्सीजन सिलेंडर को कम किया गया है।
फरीदाबाद का सिमित हॉस्पिटल पहले निजी सप्लायर से हर महीने 1500 सिलेंडर लेता था। ऑक्सीजन प्लांट लगने के कद सिर्फ 50 सिलेंडर ले रहा है।
छत्तीसगढ़ के रायपुर के डॉ. आंबेडकर सरकारी अस्पताल को रोज 500 सिलेंडर की जरूरत पड़ती थी। प्लांट लगने के बाद यह निर्भरता 20 सिलेंडर रह गई है।
जिन अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट चल रहे हैं, उन्हें मैन्युफैक्चरिंग कंपनी के कॉन्ट्रेक्ट का फायदा भी मिल रहा है। फरीदाबाद में दो में से एक प्लांट पीएम केपर्स फंड से लगा है।
इसकी 10 साल वॉरंटी है। वहीं रायपुर के डॉ. आंबेडकर सरकारी अस्पताल का प्लांट इसलिए चल रहा है,
क्योंकि इसकी पांच साल की वॉरंटी है। छत्तीसगढ़ सरकर ने राज्यभर के प्लांट के मेंटेनेंस के लिए 58 लाख रुपए कर
ऐसे बचा सकते हैं केंद्र और राज्य सरकारें सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और निजी क्लीनिकों जैसे छोटे अस्पतालों के लिए ऑक्सीजन का उत्पादन कर पीएसए प्लांट को बचा कती है।
हालांकि उन्हें एक उपकरण स्थापित करने के लिए करीब 25 लाख रुपए का निवेश करना होगा, जिससे उत्पादित ऑक्सीजन गैस को सिलेंडर में स्टोर कर सकते हैं।