राजनीतिक रण में सत्तारूढ़ दल पर विपक्षी पार्टियां हमेशा ही हमलावर रहती हैं। वर्तमान में विपक्षी पार्टी की भूमिका अदा कर रही है कांग्रेस, पर वह तो अपने ही दिग्गज सिपाहियों व सलाहकारों द्वारा रण छोड़ने से कमजोर होती जा रही है। धीरे-धीरे कांग्रेस के योद्धा रण में अपनी पार्टी को छोड़ रहे हैं जिससे विपक्षी दल की ताकत घट रही है।
हाल ही में कांग्रेस के बड़े नेता राज्यसभा सांसद आनंद शर्मा ने चुनाव अभियान समिति से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने इस्तीफा सोनिया गांधी को भेजा। यह इस्तीफा कांग्रेस के लिए दूसरी क्षति के तौर पर देखा जा रहा है। इससे एक सप्ताह पूर्व ही कांग्रेस के अनुभवी नेता गुलाम नबी आजाद ने भी इस्तीफा दिया था।
पिछले कुछ वर्षों में कई नेताओं ने कांग्रेस पार्टी को छोड़ा है। पार्टी की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कई नेता पार्टी से बाहर होकर किसी अन्य पार्टी में सम्मिलित हो गए या उदासीन होकर बैठ गए।
· जिम्मेदारी ना मिलने का आरोप
· ब्लॉक स्तर से कार्यसमिति तक चुनाव करवाने पर जोर
· पार्टी की कार्यशैली से नाराज
· अपमान का आरोप
· पार्टी के नेतृत्व पर हमेशा से सवालिया निशान
कांग्रेस के ऐसे दिग्गज, जिन्होंने अपमान, बहिष्कार और कार्यशैली को लेकर सवाल उठाये थे। पार्टी आलाकमान के व्दारा इस मुद्दे पर चर्चा से विमुखता दिखाने पर पार्टी छोड़ दी।
असम नेता हेमंता बिस्व शर्मा ने राहुल गांधी पर यहां तक आरोप लगाया कि मुझसे ज्यादा तवज्जों कुत्ते को दी जाती थी। उन्होंने राहुल गांधी की ओर से डाले गये एक कुत्ते की वीडियो को रिट्वीट करते हुए लिखा कि 'सर, मुझसे ज्यादा बेहतर उसे कौन जानता होगा। मुझे अब भी याद है, जब हम आपसे असम के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करना चाह रहे थे, तब आप उसे बिस्किट खिलाने में व्यस्त थे’।
ऐसे कई नेता जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस से किनारा कर लिया। जैसे अरूणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू, राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिधिंया, केन्द्रीय मंत्री नारायण राणे, यूपी सरकार में मंत्री जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव टीएमसी व प्रियंका चतुर्वेदी शिव सेना से राज्यसभा सांसद है।
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, गोवा के पूर्व सीएम लुईजिन्हो फलेरो, केरल के पीसी चोको, यूपी के आरपीएन सिंह, अदिति सिंह, इमरान मसूद, ललितेश त्रिपाठी समेत कई नेताओं ने कांग्रेस छोड़ किसी और राजनैतिक पार्टी का दामन थाम लिया।
किसी भी राजनैतिक पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं में सामंजस्य और एकजुटता ही उस पार्टी की जीत का आधार होती है। आगामी राज्यों में चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में देखना होगा कि विपक्षी दल कितनी सीटें व कितने राज्यों में अपनी सरकार बना पाती है।