अयोध्या में बन रहे भव्य एवं दिव्य श्री राम मंदिर में 22 जनवरी, 2024 को प्राण प्रतिष्ठा होगी। इसी बीच Media में खबर चलने लगी कि UP के गाजियाबाद के रहने वाले मोहित पांडेय को राम मंदिर का Main पुजारी के लिए चयन किया गया।
इसके साथ ही कई मीडिया संस्थानों ने बताया कि तीन हजार पुजारियों के आवेदन स्वीकार किए गए थे, जिनमें से अंत में 50 को चुना गया जिनमें मोहित पांडेय का नाम है। जिन्हें मुख्य पुजारी के रुप में चुना गया है। जो दूधेश्वर वेद विद्यापीठ के छात्र रहे हैं।
इसके साथ ही श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य कामेश्वर चौपाल ने एक फेसबुक पोस्ट के जरिए इन खबरों को गलत बता दिया।
उनका कहना है कि अयोध्या स्थित श्री रामजन्मभूमि मंदिर के लिए किसी भी मुख्य पुजारी की नियुक्ति नहीं की गई है।
साथ ही उन्होंने अपील की कि कृपया भ्रामक ख़बरों पर ध्यान ना दें। कामेश्वर चौपाल ने कहा कि राम मंदिर के पुजारी सत्येंद्र दास ही हैं, और कोई नया पुरोहित नहीं चुना गया है।
सदस्य कामेश्वर चौपाल ने बताया कि किसी मुख्य पुजारी की नियुक्ति नहीं हुई है। कामेश्वर चौपाल, इंटरव्यू के बाद 21 लोगों का चयन किया गया है।
हालांकि, उन्हें अभी 6 महीने की ट्रेनिंग दी जानी है। उसके बाद योग्यता के आधार पर निर्णय लिया जाएगा। चौपाल ने कहा कि ये बात सत्य है कि सत्येंद्र दास बुजुर्ग हैं, लेकिन अभी वो ही मुख्य पुजारी का दायित्व निभा रहे हैं और उनके उत्तराधिकारी के रूप में किसी का नाम तय नहीं हुआ है।
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने भी मोहित पांडेय को मुख्य पुजारी बनाए जाने की खबरों पर कहा कि सोशल मीडिया का क्या है, वो तो कोई भी नाम लेकर चलाते रहते हैं, किसी का नाम चला सकते हैं। जिसका जो मन हो नाम चला दे।
सत्येंद्र दास पिछले 32 वर्षों से राम मंदिर के Main पुजारी हैं। वहीं रामलला की पूजा करते आ रहे हैं। 1992 के दिसंबर में बाबरी ढांचे के विध्वंस से 9 महीने पहले उनकी नियुक्ति की गई थी।
उन्होंने स्वयं बताया था कि पूजा करते हुए उन्हें लगता था कि एक न एक दिन रामलला का मंदिर बनेगा। प्राण-प्रतिष्ठा से पहले तक रामलला टेंट में ही रहेंगे जहां वो वर्षों से हैं।
सत्येंद्र दास को नियुक्ति के समय मात्र 100 रुपए का वेतन मिलता था, जिसे बाद में 13,000 रुपए कर दिया गया।
सत्येंद्र जैन पेशे से शिक्षक रहे हैं और इसी नौकरी से वो घर चलाते रहे। BJP सांसद रहे विनय कटियार और VHP प्रमुख रहे अशोक सिंघल ने उनका नाम तय किया था।
उनके हिन्दू नेताओं से अच्छे संबंध थे। 1949 में जिन बैरागियों ने राम जन्मभूमि में रामलला की प्रतिमा स्थापित की थी, उनमें वो भी शामिल थे।
1958 में उन्होंने घर छोड़ा, 1975 में आचार्य की डिग्री ली और इसके अगले ही वर्ष वो संस्कृत के अध्यापक हो गए। बाबरी विध्वंस के समय भी वो रामलला के पास ही थे और प्रतिमा को लेकर थोड़ी दूर चले गए थे।