डेस्क न्यूज. आज राजस्थान के जयपुर का शहीद स्मारक बांग देते मुर्गों की आवाज से गूज उठा, सैकड़ों की संख्या में एक साथ कोरस में बांग दे रहे हैं वो भी भरी दुपहरी में । ये अंडे से निकले तंदूर में पकने वाले मुर्गे नहीं लेकिन इनके हालात कुछ ज्यादा अलग भी नहीं, सिस्टम के ताव में ये रोज पक रहे हैं और बेरोजगारी इन्हें रोज रोज खाए जा रही है, सरकार को ये तामाशा लग सकता है, ये मुर्गे डमी लग सकते हैं, लेकिन ये जीते-जागते मुर्गे हैं, ये खाना भी खाते हैं और घूमते-फिरते भी हैं। कभी टीचर की डांट पर मुर्गा बनने वाला युवा आज मजबूरी में मुर्गों की मुद्रा में दिख रहा है, इनका पूरा परिचय है राजस्थान का वो बेरोजगार युवा जिसकी आंखों में कुछ सपने हैं, और उन्हीं सपनों को पूरा करने के लिए ये युवा पढ़-लिख सरकार से नौकरी की उम्मीद कर रहा है। लेकिन जिस सरकार ने इन युवाओं से खुद को वोट देने के बदले वादों की भरमार की थी। आज उसी सरकार ने इन युवाओं को मुर्गा बनने पर मजबूर कर दिया।
आज राजस्थान में सरकार को तीन साल पूरे हो गए हैं। लेकिन दुसरी तरफ बेरोजगारों का सरकार से असंतोेष भी बढ़ता जा रहा है। लगातार अभ्यर्थी सरकार से रीट में पदों को बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार है कि युवाओं की बात सुनने को तैयार ही नहीं है। ऐसा नहीं है कि सरकार ने युवाओं से वार्ता नहीं की, लेकिन वार्ता में केवल ओर केवल आश्वासन मिला, लेकिन युवाओं ने ठान लिया है कि अब आश्वासन से काम नहीं चलेगा। जब तक सरकार मांगों को पूरा नहीं कर देती तब-तक आंदोलन जारी रहेगा। इसी क्रम में आज युवाओं ने राजस्थान के जयपुर में शहीद स्मारक पर मुर्गा बनकर कर राजस्थान सरकार का विरोध किया।
67 दिनों से ज्यादा का समय हो गया है, और युवा रीट में पद को बढ़ाने की मांग को लेकर लगातार जयपुर के शहीद स्मारक पर डटे हुए हैं। बेरोजगार युवाओं का कहना है कि हम सरकार से अब आर-पार के मूड में हैं। अगर सरकार ने हमारी बात नहीं सुनी, तो आने वाले समय में सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
24 दिसंबर 2018 को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 31 हजार पदों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा की घोषणा की थी, लेकिन उसके बाद कोरोना के चलते परीक्षा की तारीख तीन बार टालनी पड़ी, लेकिन जब दूसरी लहर का प्रकोप थोड़ा कम हुआ तो सरकार ने 26 सितंबर को इस बड़ी परीक्षा का आयोजन कराया। उस समय जब मुख्यमंत्री ने रीट के 31000 पद की घोषना की थी, उस समय इतने पद काफी थे लेकिन इस दौरान बड़ी सख्या में शिक्षक सेवानिवृत्त हुए हैं। स्कूल में शिक्षकों के ऊपर बोझ बढ़ा है।
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