Jaipur Lit Fest 2023: अपनी बेबाक राय जनता के सामने रखने वाले सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू ने साल 2013 में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल को लेकर अपनी राय जनता के सामने रखी थी। इस दौरान मार्कंडेय काटजू ने दक्षिण एशिया के सबसे बड़े साहित्यिक त्यौहार को लेकर कई बड़ी बात कही थी।
JLF को लेकर काटजू ने अपना एक ब्लॉग लिखा था। इस ब्लॉग के पब्लिश होने के बाद जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के साहित्य मंच होने पर कई सवाल खड़े हो गए थे। हालाकिं इस बात से बिल्कुल इनकार नहीं किया जा सकता है कि जब से जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का आयोजन हो रहा है तब से किसी ना किसी बात को लेकर इस महोत्सव के ऊपर विवाद होता ही रहता है।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) के अध्यक्ष रहे जस्टिस मार्कंडेय काटजू अपने बयानों के कारण कई बार विवादों में फंस रहते हैं। मीडिया और सरकार के बीच चर्चा शुरू करने की बात हो या फिर सलमान रुश्दी पर राय देने की, जस्टिस काटजू अपनी बात कहने से कभी नहीं हिचकिचाते है।
जैसा की जयपुर में लिटरेचर फेस्टिवल चल रहा है, कृपया मेरा लेख 'द रोल ऑफ आर्ट, लिटरेचर एंड द मीडिया' पढ़ें।
खेद है कि आज मुझे कोई महान कला और साहित्य दिखाई नहीं देता। आज का डिकेंस कहाँ है? आज के टॉल्स्टॉय, विक्टर ह्यूगो, मैक्सिम गोर्की, बाल्ज़ाक, शेक्सपियर, बर्नार्ड शॉ, वॉल्ट व्हिटमैन, मार्क ट्वेन, अप्टन सिंक्लेयर, जॉन स्टीनबेक, गोएथे, शिलर, पाब्लो नेरुदा और सर्वेंट्स कहाँ हैं? आज के कालिदास, कबीर, प्रेमचंद, शरतचंद्र, तुलसीदास, गालिब, फैज, मीर, फिराक और मंटो कहां हैं? आज के वोल्टेयर, रूसो और थॉमस पेन कहाँ हैं?
ऐसा प्रतीत होता है कि लगभग संपूर्ण साहित्य शून्य हो गया है। आज हर चीज का व्यावसायीकरण हो गया है। लेखक केवल कुछ पैसे कमाने के लिए लिखते हैं, लोगों को बेहतर जीवन के संघर्ष में मदद करने के लिए नहीं।
जैसा कि मैंने अपने लेख में कहा था, भारत जैसे गरीब देश में कला और साहित्य को लोगों की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को उजागर करके और उन्हें गरीबी, कुपोषण, जैसी हमारी विशाल सामाजिक बुराइयों से छुटकारा पाने के लिए प्रेरित करके बेहतर जीवन के लिए उनके संघर्ष में मदद करनी चाहिए।
मूल्य वृद्धि, बेरोजगारी, स्वास्थ्य सेवा की कमी और जनता के लिए अच्छी शिक्षा, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार आदि। इसलिए जयपुर साहित्य महोत्सव मुझे एक वास्तविक साहित्य उत्सव के बजाय एक तमाशा अधिक लगता है।