जब भी राजस्थान में शराबबंदी को लेकर चर्चा होती है तो हर किसी की जुबां पर गुरुशरण छाबड़ा का जिक्र जरूर होता है... शराबबंदी को लेकर राजस्थान में जितने आंदोलन छाबड़ा ने किए उतने शायद ही किसी ने किए हों... आज उनके निधन को छह वर्ष बीत चुके हैं... लेकिन जयपुर के हवा सड़क स्थित उनके नाम को समर्पित मार्ग के ठीक सामने शराब की दुकान गुरुशरण छाबड़ा के शराबबंदी को लेकर दिए गए योगदान को ही धत्ता साबित कर रही है।
गुरुशरण छाबड़ा मार्ग के सामने ही इस शराब की दुकान का होना मात्र गलती नहीं बल्कि सिस्टम का खुद पर जोरदार तमाचा मारने के समान है। जब इस मसले पर हमने जब गुरशरण छाबड़ा के पुत्र गौरव छाबड़ा से बात की तो उनका दर्द भी छलक गया।
दरअसल राजस्थान में पूरी तरह से शराबबंदी और मजबूती से लोकायुक्त कानून बनाए जाने की मांग को लेकर गुरुशरण छाबड़ा लम्बे वक्त से आंदोलनरत थे। साल 2015 में 2 अक्टूबर से आमरण अनशन पर चल रहे छाबड़ा का साथ उनकी हिम्मत ने तो खूब दिया, लेकिन शरीर जवाब दे गया। 69 की आयु में छाबड़ा अधूरी ईच्छा के साथ ही दुनिया को अलविदा कह गए।
प्रदेश में पूरी तरह से शराबबंदी को लेकर कई बार जान जोखिम में डालने वाले गुरुशरण छाबड़ा को प्रदेश में न बीजेपी की सरकार ने और न ही कांग्रेस की सरकार ने तवज्जो दी। कई बार मौके ऐसे आए कि कई नेता अनशन पर पहुंच झूठा दिलासा देकर उनका अनशन तुड़वा देते थे। नेताओं और सरकार के इसी रवैये के चलते उन्होंन बाद में पूरी तरह से प्रदेश में शराबबंदी होने तक आमरण अनशन का निर्णय लिया और अपने प्राण त्याग दिए।
पूर्व विधायक गुरुशरण छाबड़ा की गिनती ऐसे पॉलिटिशियन में होती है जिन्होंने निजी हितों को पीछे छोड़ जनता के हितों को सर्वोपरी रखा।
साल 1977 में छाबड़ जनता पार्टी के टिकट पर सूरतगढ़ से विधायक चुने गए थे। वे राजीनीति में शुरुआत से ही जनता के हितों के लिए लड़ रहे थे। उन्होने गोकुलभाई भट्ट के साथ मिलकर प्रदेश में सम्पूर्ण शराबबंदी को लेकर ऐसा लंबा आंदोलन चलाया कि एक बार तो सरकार भी सकते में आ गई,
लेकिन जब उन्होंने इस आंदोलन के बीच में बलिदान दिया तो उनके निधन के बाद साल दर साल शराबबंदी पर सरकार भी बैकफुट खिसकती चली गई।
राजनीति में जनता की सहानुभूति कैसे हासिल की जाती है। इसकी बानगी गुरुशरण छाबड़ा के शराबबंदी के आंदोलन में देखने को मिली।
आंदोलन के दौरान भी विपक्षी पार्टियों ने उनके आंदोलन के जरिए राजनीति लाभ लेने का प्रयास किया, लेकिन विपक्षी पार्टी जब भी सत्ता में लौटी तो वो भी पिछली सरकारों के रंग में रंग जाती। जैसे ही विपक्षी सत्ता में लौटे न सिर्फ छाबड़ा को भूले बल्कि उनकी मांगों को भी नजर अंदाज कर दिया।
वैसे तो गुरुशरण छाबड़ा लंबे समय से शराबबंदी को लेकर आंदोलनरत थे, लेकिन हर बार उन्हें सरकार से मात्र आश्वासन ही मिलता। फिर जब उन्होंने प्रदेश में शराबबंदी होने तक आमरण अनशन का प्रण लिया। करीब 32 दिन से अनशन पर रहने के बाद उनके शरीर ने साथ छोड़ दिया।
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