वरिष्ठ पत्रकार समीरात्मज मिश्र. मंगलवार को तीनों नदियों के संगम तट पर हर हर साल मकर संक्रांति से शुरू होकर एक महीने तक चलने वाले माघ मेले का सबसे प्रमुख स्नान पर्व था. कोविड संक्रमण को देखते हुए ऐसा माना जा रहा था कि श्रद्धालुओं की संख्या कम रहेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. प्रशासन का दावा है कि मंगलवार शाम तक एक करोड़ से भी ज्यादा श्रद्धालुओं ने पवित्र संगम में डुबकी लगाई. इसी जगह पर हर छह साल पर अर्धकुंभ और बारह साल बाद महाकुंभ का आयोजन होता है.
माघ मेला क्षेत्र में आस्था और भक्ति के आगे कोरोना का खौफ गायब दिखा. बड़ी संख्या में श्रद्धालु स्नान के बाद संगम का जल लेकर बाहर निकलते दिखे. संगम तट के अलावा रामघाट, दारागंज, गंगोली शिवालय, फाफामऊ आदि कई अन्य घाटों पर भी स्नान, दान का सिलसिला चलता रहा. जगह-जगह बच्चे, युवा और बुजुर्गों की लंबी कतारें दिखती रहीं. स्नान सुबह उस वक्त ही शुरू हो चुका था जब पूरा क्षेत्र घने कोहरे में ढका था और देर शाम तक यह सिलसिला चलता रहा. हालांकि दोपहर तीन बजे तक भीड़ काफी कम हो गई थी और लोग अपने घरों को लौटने लगे थे.
मेले में उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों के अलावा मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान और दक्षिण भारत से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. हजारों की संख्या में श्रद्धालु एक महीने तक संगम किनारे तंबुओं के घरों में रहकर कल्पवास भी करते हैं.
5,000 से ज्यादा जवानों ने संभाली मौनी अमावस्या स्नान पर्व की सुरक्षा
09 घाटों पर मौन डुबकी के लिए मेला प्रशासन ने किए अरेंजमेंट्स
22 स्थानों पर कोविड-19 की टेस्टिंग और स्क्रीनिंग सेंटर बनाए गए
24 जगह मेला क्षेत्र में कोविड हेल्प डेस्क की गई स्थापित
30 एंबुलेंस संगम समेत हर मेला सेक्टर में लगाई गई
कोविड संक्रमण को देखते हुए सरकार ने लोगों को आगाह किया था और जगह-जगह थर्मल स्क्रीनिंग भी की जा रही थी लेकिन पूरे मेले में न तो कहीं सोशल डिस्टैंसिंग दिखी और न ही लोग मास्क लगाए हुए दिखे. सिर पर गठरी रखे महिलाओं का एक झुंड संगम तट पर स्नान करके अपने घर को लौट रहा था. ये सभी लोग छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले से थे. समूह में कई पुरुष भी थे. उन्हीं में से एक देवी प्रसाद का कहना था कि वो लोग मौनी आमावस्या के स्नान के लिए तीन दिन पहले ही आ गए थे.
देवी प्रसाद बताने लगे, “हमारे साथ आस-पास के गांवों से चालीस लोग आए हैं जिनमें महिलाएं और बच्चे भी हैं. मौनी आमावस्या पर स्नान से पहले मौन व्रत रखा जाता है. भीड़-भाड़ से बचने के लिए हम लोग तीन दिन पहले ही मेला क्षेत्र में आ गए थे और संगम तट के पास ही एक टेंट में रुके हुए थे. अब हम लोग वापस चले जाएंगे. हम लोग लगभग हर साल आते हैं.”
मेले में हर साल बड़ी संख्या में साधु-संत भी आते हैं और एक महीने यहीं रहते हैं. संगम किनारे मुख्य स्नान घाट के अलावा गंगा के तट पर कई घाट बनाए जाते हैं जहां लोग स्नान करते हैं. हर साल गंगा की रेत में तंबुओं का एक नया शहर बसाया जाता है जिसकी पूरी प्रशासनिक व्यवस्था अलग होती है. मेले के बाद यहां तैनात अधिकारियों का तबादला दूसरी जगहों पर कर दिया जाता है.
मौनी अमावस्या पर स्नान के बाद दान करने का विशेष महत्व है. इसी कारण स्नान के बाद लोग तीर्थ पुरोहितों को तिल के लड्डू, तिल, तिल का तेल, वस्त्र, आंवला जैसी चीजें दान करते हैं. संगम तट पर बैठे एक तीर्थ पुरोहित जितेंद्र शुक्ल ने बताया कि वो कई पीढ़ियों से तीर्थ पुरोहित का काम कर रहे हैं. उनका कहना था कि लोग अपनी कुंडली और ग्रहों के अनुसार भी विभिन्न चीजों का दान करते हैं. जितेंद्र शुक्ल बताते हैं, “संगम तट पर वैसे तो बारहों महीने भीड़-भाड़ रहती है लेकिन माघ के महीने में मेले के कारण श्रद्धालुओं की संख्या काफी बढ़ जाती है. कुंभ और अर्ध कुंभ में और भी ज्यादा लोग आते हैं और सबसे ज्यादा भीड़ आमावस्या पर होती है. बसंत पंचमी के बाद भीड़ कम होने लगती है.”
मौनी अमावस्या के स्नान पर्व पर यात्रियों की भीड़ को देखते हुए संगम तट पर छह किमी लंबा घाट तैयार किया गया है. सुरक्षा की दृष्टि से दो सौ सीसीटीवी कैमरे भी मेला क्षेत्र में लगाए गए। और पांच ड्रोन कैमरों के जरिए भी मेले पर नजर रखी जा रही। इसके अलावा विभिन्न घाटों पर चार कंपनी जल पुलिस और एसडीआरएफ को तैनात किया गया है.
मेले में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए रेलवे ने भी कई स्पेशल ट्रेनें चलाई हैं और कई ट्रेनों में अतिरिक्त कोच भी लगाए गए हैं लेकिन मंगलवार को बाहर से आए कई श्रद्धालु इधर-उधर भटकते रहे और रेलवे स्टेशनों पर काफी भीड़ जमा हो गई. कई ट्रेनें भी इस वजह से काफी लेट रहीं. बस स्टेशनों पर भी लोग भटकते रहे जबकि यूपी रोडवेज ने मेले में यात्रियों की भीड़ को देखते हुए दो हजार से भी ज्यादा स्पेशल बसें चलाई थीं.
प्रशासन ने मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए 72 घंटे पहले की आरटीपीसीआर रिपोर्ट अनिवार्य कर दी थी लेकिन इतनी भीड़ में इस रिपोर्ट की जांच करने वाले कहीं दिख नहीं रहे थे. हां, कुछेक प्रवेश द्वारों पर थर्मल स्क्रीनिंग जरूर की जा रही थी. पिछले साल अप्रैल महीने हरिद्वार में कुंभ के दौरान कोविड की दूसरी लहर ने जबर्दस्त कहर ढाया था और हजारों की संख्या में लोग न सिर्फ संक्रमित हुए थे बल्कि कई लोगों की मौत भी हो गई थी. बढ़ते कोविड संक्रमण को देखते हुए हरिद्वार कुंभ मेले को समय से पहले ही समाप्त करना पड़ा था.
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