आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका ने मंगलवार को ऐलान किया है कि वह 51 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज नहीं चुका सकेगा। (sri lanka announces defaulting on all external deb) इसे चुकाने के लिए श्रीलंका अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से राहत पैकेज का इंतजार कर रहा है।
श्रीलंकाई सेंट्रल बैंक के गवर्नर पी. नंदलाल वीरसिंघे के मुताबिक, विदेशी कर्ज का भुगतान अस्थायी रूप से रोकने के लिए यह फैसला लिया गया है। वीरसिंघे ने कहा- कर्ज चुकाना देश के लिए चुनौतीपूर्ण और असंभव है। इस समय यह सही फैसला है।
वित्त मंत्रालय ने कहा कि ऋण देने वाले देश और अन्य ऋणदाता अपने ऋण पर ब्याज वसूल सकते हैं या मंगलवार दोपहर से श्रीलंकाई रुपये में ऋण राशि वापस ले सकते हैं। (ready to pay in sri lankan rupees) हमारे पास सीमित विदेशी मुद्रा भंडार है, जिसका उपयोग हम ईंधन जैसी आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिए करेंगे। इसका मतलब है कि श्रीलंका अब डॉलर में भुगतान करने की स्थिति में नहीं है।
राष्ट्रपति गोटाबाया ने संयुक्त गठबंधन सरकार के लिए 11 दलों के गठबंधन से बात की। बैठक में प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को हटाने और नए मंत्रिमंडल के गठन पर चर्चा हुई। हालाँकि, यह बैठक व्यर्थ समाप्त हो गई।
भारत ने मंगलवार को 11,000 मीट्रिक टन चावल श्रीलंका भेजा। पिछले हफ्ते ही भारत ने श्रीलंका को 16,000 मीट्रिक टन चावल भेजा था।
भारत अब तक श्रीलंका को 2,70,000 मीट्रिक टन से अधिक ईंधन की आपूर्ति कर चुका है।
प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर पुलिस ने दागे आंसू गैस के गोले, किसानों को जल्द मिलेगी खाद सब्सिडी
श्रीलंका में आर्थिक संकट गहराने के साथ ही लोगों का विरोध भी उग्र होता जा रहा है। दूसरी ओर सरकार भी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बल प्रयोग कर रही है। राजधानी कोलंबो में सोमवार को प्रदर्शन कर रहे सैकड़ों छात्रों ने आंसू गैस के गोले दागे ये छात्र श्रीलंकाई संसद की ओर मार्च कर रहे थे।
श्रीलंका के प्रधान मंत्री महिंदा राजपक्षे ने घोषणा की है कि वह किसानों के लिए उर्वरक सब्सिडी बहाल करेंगे। आर्थिक संकट गहराते ही सरकार ने कई सुविधाओं और सब्सिडी पर रोक लगाने का ऐलान किया था
आपको बता दें देश ने कुल कर्ज का 47 फीसदी हिस्सा डेट मार्केट से लिया है। इसके अलावा कुल लोन में चीन का कर्ज करीब 15 फीसदी है। वहीं, एशियन डेवलेपमेंट बैंक का 13 फीसदी, वर्ल्ड बैंक का 10 फीसदी, जापान का 10 फीसदी और भारत का 2 फीसदी है।
बता दें श्रीलंका का कुल एक्सटर्नल डेट (दूसरे देशों से लिया गया कर्ज) 5,100 करोड़ डॉलर का है वहीं, पिछले साल की बात करें तो उस समय देश पर कुल कर्ज 3,500 करोड़ डॉलर का था इस तरह एक साल में देश का कर्ज 1,600 करोड़ डॉलर तक बढ़ गया।
देश में इस समय आर्थिक संकट काफी गहरा रहा है। श्रीलंका सरकार ने कहा है कि उसके पास कर्ज डिफॉल्टर बनने का ही आखिरी विकल्प बचा था. देश की आम जनता इस समय ईंधन से लेकर खाने पीने तक की चीजों के लिए परेशान है। इसके अलावा बिजली संकट भी गहराता जा रहा है।
चीन के इस कर्ज के चक्रव्यूह में फंसे श्रीलंका को अपना हंबनटोटा बंदरगाह 99 साल की लीज पर चाइना मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग को देना पड़ा था। यह सामरिक महत्व का बंदरगाह है लेकिन अब इसमें श्रीलंका सरकार की हिस्सेदारी न के बराबर है।
इस बंदरगाह में श्रीलंका के बंदरगाह प्राधिकरण की 20 प्रतिशत हिस्सेदारी है जबकि 80 प्रतिशत का स्वामित्व एक चीनी कंपनी के पास है। इसी तरह, चीन ने श्रीलंका की कोलंबो पोर्ट सिटी परियोजना में लगभग 1.4 बिलियन डॉलर का निवेश किया, जो श्रीलंका के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा विदेशी निवेश है।
इसे एक निजी सार्वजनिक भागीदारी के रूप में पेश किया गया था। यह साझेदारी श्रीलंका सरकार और CHEC पोर्ट सिटी कोलंबो के बीच थी और इसे रोजगार के महान अवसर और देश के लिए राजस्व का एक प्रमुख स्रोत प्रदान करने के रूप में प्रचारित किया गया था।
इस परियोजना के लिए 269 हेक्टेयर भूमि का कब्जा और परियोजना में सीपीसीसी का 43 प्रतिशत के हिस्से वाली बात को देश में सार्वजनिक नहीं किया गया था। इसके लिए 99 साल का लीज एग्रीमेंट भी साइन किया गया। यानी एक बार फिर उसी देश में हंबनटोटा बंदरगाह की कहानी दोहराई जा रही है। श्रीलंका इस बात का जीता-जागता सबूत है कि कैसे चीन बीआरआई की आड़ में देशों पर बेकार और अनुपयोगी परियोजनाओं को थोपता है और फिर उन्हें कर्ज के जाल में फंसाकर अपंग बना देता है।
वह उन देशों को उनकी जरूरत के हिसाब से प्रोजेक्ट करने के लिए राजी नहीं करता है, बल्कि वह ऐसे बड़े-बड़े प्रोजेक्ट लेकर आता है, जिनमें भारी निवेश होता है और वे चीन के लिए ही फायदेमंद होते हैं। बीआरआई चीन को आसान और सुलभ अवसर प्रदान करता है और इसके अवसरों का भुगतान उन देशों की ओर से किया जाता है जहां परियोजनाएं शुरू की जाती हैं।