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कोरोना मरीज़ो के लिए राहत की खबर: चेस्ट फिजियोथैरेपी से मरीज़ हो रहे ठीक

Dharmendra Choudhary

डेस्क न्यूज़: देशभर में कोरोना से स्थिति भायवह होती जा रही है। देश में लगातार बढ़ रहे मरीजों में सबसे बड़ी चिंता यह है कि मरीज का इलाज कैसे किया जाए? कोरोना की वैक्सीन आ चुकी है, लेकिन कोरोना संक्रमण के बाद इलाज को लेकर पूरी दुनिया में अलग-अलग राय है। अलग-अलग दवाएं हैं। इस बीच अलग-अलग क्षेत्रों के डॉक्टर अपने स्तर पर नए-नए प्रयोग कर रहे हैं, जिनमें से कुछ कोरोना मरीजों के इलाज में भी मददगार साबित हो रहे हैं। ऐसी ही शुरुआत राजस्थान की राजधानी जयपुर में की गई है। अब यहां चेस्ट फिजियोथैरेपी दी जा रही है। इस थेरेपी से बड़ी संख्या में मरीज ठीक हो रहे हैं।

जयपुर के कई अस्पतालों में भर्ती कई मरीज़ चेस्ट फिजियोथैरेपी से हुए ठीक

कोरोना फिजियोथेरेपी उन रोगियों के लिए प्रभावी लगती है जो कोरोना संक्रमण के कारण ऑक्सीजन की कमी के कारण पीड़ित हैं। इसके माध्यम से, जयपुर के कई अस्पतालों में भर्ती मरीजों के न केवल संतृप्ति (ऑक्सीजन स्तर) में वृद्धि हुई है, बल्कि रोगी के फेफड़े की रिकवरी भी तेजी से हुई है। ऐसे नतीजे भी सामने आए हैं कि जो मरीज ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे, उनका ऑक्सीजन लेवल इस थेरेपी से सामान्य हो गया।

अतीत में, जिस तरह से डॉक्टरों ने कोरोना के संतृप्ति स्तर को कुछ स्तर तक बढ़ाने की सलाह दी थी, उसी तरह चेस्ट फिजियोथेरेपी भी रोगियों के ऑक्सीजन स्तर को बढ़ा सकती है और उन्हें संतुलित स्तर पर ला सकती है।

जयपुर के अन्य अस्पतालों में अभी तक चेस्ट फिजियोथैरेपी नहीं हुई शुरू

जयपुर के री-लाइफ हॉस्पिटल के चीफ फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. अवतार डोई ने कहा कि जयपुर के अन्य अस्पतालों में अभी तक चेस्ट फिजियोथेरेपी शुरू नहीं की गई है, लेकिन हमने व्यक्तिगत रूप से कुछ अस्पतालों में जाकर मरीजों को यह थेरेपी दी। उन्होंने बताया कि पिछले 15-20 दिनों के भीतर 100 से अधिक रोगियों ने इस चिकित्सा को अपनाया है। इसके बहुत अच्छे परिणाम मिले हैं।

इस थेरेपी ने न केवल रोगी के संतृप्ति स्तर में वृद्धि की, बल्कि फेफड़ों भी तेज़ी से ठीक हुए। कई रोगियों को इसे लेने के बाद ऑक्सीजन समर्थन की आवश्यकता भी नहीं थी। डॉ. अवतार डोई ने बताया कि यह थैरेपी केवल उन्हीं मरीजों को दी जाती है जिनका सैचुरेशन लेवल 80 या इससे ऊपर होता है। इसमें हम रोगी की लंग्स में जमा बलगम (कफ) को ढीला कर देते हैं, जिससे कफ बाहर निकल जाता है और रोगी की सांस लेने की क्षमता बढ़ जाती है।

मरीज को ऐसे मिल जाता है आराम

कोविड मरीजों के फेफड़े वायरस से डैमेज तो होते ही हैं, साथ ही कई मरीजों के फेफड़ों में टाइट स्पुटम (कफ) जमने की शिकायत भी होने लगती है। कफ
जमने से फेफड़े अपनी क्षमता के मुताबिक काम नहीं करते, इसके कारण मरीज की रिकवरी भी देरी से होती है।

रिकवरी की स्पीड को बढ़ाने के लिए मरीज के फेफड़ों से कफ हटाना जरूरी होता है, ताकि वह अच्छे से काम कर सकें और मरीज सांस ले सके।

फेफड़ों में जमे टाइट कफ को ढीला कर बाहर निकालने के लिए डॉक्टर अलग-अलग दवाइयां देते हैं, जिसमें समय लगता है। जबकि चेस्ट थैरेपी में बिना दवाइयों के कफ को ढीला करते हैं और वह अपने आप मरीज के शरीर से बाहर निकलने लगता है।

मरीज के शरीर से जब कफ बाहर आता है तो उसे सांस लेने में आसानी होती है। संक्रमित फेफड़े भी जल्दी से ठीक होने लगते हैं।

सीटी स्कैन की रिपोर्ट के आधार पर होती है थैरेपी

डॉ. डोई ने कहा कि चेस्ट थैरेपी में तीन प्रकार के वॉल्यूम होते हैं, जो रोगी की स्थिति के आधार पर तय किए जाते हैं। चेस्ट थैरेपी में, यह देखा जाता है कि फेफड़े के किस हिस्से में कफ अधिक होता है। दाहिने हाथ की ओर बने फेफड़े के तीन भाग होते हैं और फेफड़े के दो भाग विपरीत हाथ पर बने होते हैं। इसके लिए मरीज की सीटी स्कैन रिपोर्ट देखी जाती है। इस रिपोर्ट के आधार पर अलग-अलग हालत में इलाज दिया जाता है। थेरेपी में, तंग कफ को पहले मशीन से कंपन के माध्यम से ढीला किया जाता है और फिर हाथों से थंप देकर।

केस नं. 1 : फेफड़े होने लगे रिकवर

जयपुर की संगीता शर्मा (56) 25 अप्रैल से शास्त्री नगर के एक निजी अस्पताल में भर्ती हैं। उनके दोनों फेफड़े कोरोना की वजह से खराब हो गए हैं। उनके बेटे आशुतोष शर्मा ने बताया कि पिछले एक हफ्ते से चेस्ट थेरेपी लेने के बाद फेफड़ों की स्थिति में धीरे-धीरे सुधार होने लगा है। उन्होंने कहा कि उनकी मां की कोरोना रिपोर्ट भी लगभग एक सप्ताह पहले नकारात्मक आई थी, लेकिन फेफड़ों की क्षति के कारण, वह ऑक्सीजन के समर्थन में थीं, लेकिन जब उन्होंने चिकित्सा शुरू की, तब से ठीक होना शुरू हो गया।

केस नं. 2 : नहीं लेना पड़ा ऑक्सीजन सपोर्ट

सीताराम शर्मा दो दिन पहले कोरोना से संक्रमित थे, जो शास्त्री नगर के एक निजी अस्पताल में भर्ती हैं। उनके बेटे पवन शर्मा ने कहा कि जब उनके पिता यहां भर्ती हुए थे, तब ऑक्सीजन का स्तर 88-90 के बीच हुआ करता था और सांस लेने में भी परेशानी होती थी। डॉक्टरों ने ऑक्सीजन सहायता के बजाय चेस्ट फिजियोथेरेपी की सिफारिश की। दो दिन लगातार चेस्ट फिजियोथेरेपी कराने के बाद उन्हें कुछ हद तक सांस लेने की समस्या से राहत मिली। ऑक्सीजन भी नहीं लगानी पड़ती।

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