up election 2022

SI Original: चुनावी दंगल में नेताओं का अमंगल या पॉलिटिकल पिपासुओं के घड़ियाली आंसू!

जो नेता कार्यकर्ता पार्टी में रहकर ही अपनी जमीन तलाश रहे हैं.... उनकी हालत तो ऐसी हो चली है जैसे किसी प्राथमिक कक्षा में किसी बालक को कोई पद मिल गया हो और दूसरा बालक जो उस पद की उम्मीद लगाए बैठा था वो पद न मिलने के गम में दाहाड़े मार मार कर रोने लगता है...।

ChandraVeer Singh

चुनावी व्यंग

युपी में चुनावी बिगुल बज चुका है तो हर दल के मंत्री नेताओं का अपने दलों से इधर उधर होने का सिलसिला भी जारी है, लेकिन जो नेता कार्यकर्ता पार्टी में रहकर ही अपनी जमीन तलाश रहे हैं.... उनकी हालत तो ऐसी हो चली है जैसे किसी प्राथमिक कक्षा में किसी बालक को कोई पद मिल गया हो और दूसरा बालक जो उस पद की उम्मीद लगाए बैठा था वो पद न मिलने के गम में दाहाड़े मार मार कर रोने लगता है...। (assembly election 2022)

हम यहां किसी प्राथमिक कक्षा का उदाहरण इसलिए दे रहे हैं क्योंकि यहां बच्चों की शिक्षा का शेशव काल होता है... और यूपी व उत्तराखंड में जो नेता मंत्री पार्टी पद छिनने और टिकट न मिलने के बाद रुदाली की तरह रोना धोना मचा रहे हैं उनका रोना ठीक इन्हीं बच्चों के समान प्रतीत हो रहा है....

यहां हम ये भी साफ कर दें कि हमारा मकसद किसी भी नेता मंत्री की भावना को ठेस पहुंचाना नहीं हैं... बेशक उन्होंने पार्टी स्तर पर अपना 100 प्रतिशत दिया होगा.... लेकिन कहते हैं न.... राजननीति तो राजनीति होती है.... ये किसी पर रहम नहीं करती.... किसी को अर्श पहुंचा देती है.... तो किसी को धड़ाम से फर्श पर पटक देती है.... (assembly election 2022)

पार्टी आला कमान की भी मजबूरी रहती होगी.... जाती समीकरण.... प्रत्याशी की साख.... या अन्य दल से आए नेता को मनचाही जगह से टिकट देने का दबाव.. ये तमाम तरह की माथापच्ची हाईकमान को स्थानीय स्तर पर करनी होती है...

इस माथापच्ची के नतीजे में उन कार्यकर्ताओं की लंका लग जाती है... जो बरसों से पार्टी के लिए काम कर रहे होते हैं लेकिन एक झटके में उनका टिकट काट दिया जाता है... खैर ये राजनीतिक दलों का निजी मामला है हम इसमें ज्यादा नहीं पड़ेंगे....।

बहरहाल और फिलहाल आपको यूपी और उत्तराखंड के ऐसे तीन नेताओं के बारे में बता रहे हैं पार्टी की बेरुखी से रो दिए। उपरोक्त फैला पूरा रायता इन्हीं नेताओं की वजह से है।

जनाब का कहना था कि उन्होंने अपनी पूरी जवानी और जीवन पार्टी के लिए लगा दिया....

बात करते हैं समाजवादी पार्टी के नेता आदित्य ठाकुूर की.... जनाब टिकट नहीं मिलने से निराश थे तो आत्मदाह का प्रयास का हाई वोल्टेज ड्रामा कर डाला। अलीगढ़ के समाजवादी पार्टी के नेता आदित्य ठाकुर टिकट पाने की आशा में लम्बे समय से लगे थे.... ऐसे में उन्होंने शरीर पर पेट्रोल डालकर आग लगाने का प्रयास किया... तो पुलिस ने उनको तुरंत हिरासत में ले लिया।

दरअसल लखनऊ में समाजवादी पार्टी के प्रदेश मुख्यालय के बाहर रविवार सुबह करीब 11 बजे हंगामा हो गया। अलीगढ़ के छारा से लंबे समय से टिकट पाने की कोशिश कर रहे ठाकुर आदित्य सिंह लोधी ने निराश होकर आत्मदाह का कदम उठाया।

अलीगढ़ के आदित्य ठाकुर ने समाजवादी पार्टी कार्यालय के बाहर खुद पर पेट्रोल डालकर आत्मदाह करने की कोशिश की। जनाब का कहना था कि उन्होंने अपनी पूरी जवानी और जीवन पार्टी के लिए लगा दिया.... अलीगढ़ के चररा से टिकट नहीं मिलने से वे परेशान हैं।

टिकट न मिलने पर फूट फूट कर रो पड़े अरशद राणा...
रोने धोने वाले दूसरे नेताजी हैं मुजफ्फरनगर की चरथावल विधानसभा सीट दावेदारी कर रहे अरशद राणा। इन्हें टिकट न मिलने पर शहर कोतवाली में पुलिस के सामने फूट फूटकर रोते हुए नजर दिखे। अरशद राणा का आरोप लगा दिया कि पार्टी के एक वरिष्ठ नेता शमशुद्दीन राईन ने दो साल पहले उनसे टिकट के लिए 67 लाख रुपये की मांग की थी। अब बेचारे राणा को क्या पता कि पार्टी में प्रचार प्रसार तो मामूली है। वे कोतवाली में अपना दर्द ऐसे बता रहे थे जैसे किसी ने कक्षा में इनकी पेंसिल ​छीन ली हो....

रावत ने रोते हुए आरोप लगाया कि पार्टी ने उनसे बात किए बिना ​ही उन्हें पा​र्टी से बाहर कर दिया

इधर उत्तराखंड BJP के नेता रहे हरक सिंह रावत भी पार्टी और कैबिनेट से अपनी रुख्सती के बाद सोमवार को कैमरे के सामने ही रो पड़े। रावत ने रोते हुए आरोप लगाया कि पार्टी ने उनसे बात किए बिना ​ही उन्हें पा​र्टी से बाहर कर दिया। कांग्रेस से बीजेपी में आए नेता हरक सिंह रावत के वापस पुरानी पार्टी में लौटने की अटकलें लग रही हैं.... रावत ने आज न्यूज एजेंसी ANI से कहा कि बीजेपी ने इतना बड़ा फैसला लेने से पहले मुझसे एक बार भी डिस्कस नहीं किया। मंत्री बनने में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है। मैं बस काम करना चाहता था।

बहरहाल इन नेताओं के रोने पर एक सवाल ये भी है कि टिकट न मिलने और पार्टी से रुख्सती पर ही ये अपनी भावनाएं कंट्रोल नहीं कर पाए तो विधायक या मंत्री बन अपने क्षेत्र को कैसे संभालेंगे... क्या उस वक्त भी ये जनता से रोते हुए कह देंगे कि भैया हमसे न हो पाएगा....। बहरहाल इस चुनावी वार्तालाप को यहीं देते हैं विराम.... और नेताओं पर कटाक्ष के लिए क्षमा के साथ करते हैं उन्हें प्रणाम... इस तरह के रोचक किस्सों की बयार आगे भी जारी रहेगी।

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