up election 2022

UP में दो चरण के चुनाव अगले चरणों के लिए क्या संकेत देते हैं?

बीजेपी ने कानून व्यवस्था, गुंडाराज, बुलडोजर, कैराना का पलायन और मुजफ्फरनगर के दंगों जैसी तमाम बातों से किसान आंदोलन के असर की हवा निकालने की भरपूर कोशिश की लेकिन जो लोग इन मुद्दों को नकार चुके थे, उन्होंने दोबारा उधर वापसी करने की कोशिश नहीं की. हां, कुछ लोगों पर इसका असर जरूर पड़ा, लेकिन इतना भी नहीं कि वो एक बार फिर बीजेपी पर दांव लगाते.

ChandraVeer Singh

समीरात्मज मिश्रा की यूपी से खास रिपोर्ट . उत्तर प्रदेश में पिछले कई चुनावों के ट्रेंड को देखकर ऐसा आमतौर पर कहा जाता है कि पहले और दूसरे चरण में यानी पश्चिमी यूपी में राजनीतिक हवा का रुख जिधर होता है, आखिर तक हवा उसी तरफ बहती है. लेकिन ऐसा लगता है इस बार हवा भी क्षेत्र के हिसाब से रुख बदल रही है.

इस बार यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान जो मुद्दे हैं, वो लगभग वही रहे जिन्हें पहले से ही समझा जा रहा था. सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी ने खुद जिन मुद्दों को लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की, वो मुद्दे बन नहीं पाए. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन एक बड़ा फैक्टर था और कानून वापसी के बावजूद वह इस इलाके में बड़ा मुद्दा बना रहा.

बीजेपी ने कानून व्यवस्था, गुंडाराज, बुलडोजर, कैराना का पलायन और मुजफ्फरनगर के दंगों जैसी तमाम बातों से किसान आंदोलन के असर की हवा निकालने की भरपूर कोशिश की लेकिन जो लोग इन मुद्दों को नकार चुके थे, उन्होंने दोबारा उधर वापसी करने की कोशिश नहीं की. हां, कुछ लोगों पर इसका असर जरूर पड़ा, लेकिन इतना भी नहीं कि वो एक बार फिर बीजेपी पर दांव लगाते.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिन इलाकों में दो चरणों के चुनाव हुए हैं, यहां मुस्लिम आबादी काफी है. ऐसा माना जा रहा था कि सपा-रालोद गठबंधन ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देगा और उससे जाट मतदाता या भड़क सकते हैं और यदि नहीं दिया तो मुस्लिम भड़क सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं हुआ. टिकट वितरण को लेकर कुछ नाराजगी जरूर दिखी लेकिन न तो इससे जाटों के मतदान पर असर पड़ा और न ही मुस्लिमों के. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तमाम इलाकों में घूमने के बाद ऐसा लग रहा है कि मुस्लिम मतों का बँटवारा न के बराबर हुआ है. ज्यादातर मुस्लिम मतदाता इस बार गठबंधन के ही पक्ष में खड़े दिखे और गठबंधन उम्मीदवारों के पक्ष में ही उन्होंने मतदान किया. बावजूद इसके कि आबादी ज्यादा होने के बाद भी मुस्लिम उम्मीदवारों को गठबंधन ने कम टिकट दिया था.

कर्नाटक के हिजाब और बुर्का विवाद की चर्चा भी यूपी में खूब हुई लेकिन हिन्दू-मुस्लिम कार्ड यदि शुरू के दो चरणों में नहीं चला है तो आगे भी चलने की उम्मीद न के बराबर है. जहां तक तीसरे चरण की बात है तो यह इलाका यादव बहुल इलाका है और समाजवादी पार्टी की पकड़ यहां पहले से ही मजबूत है. लेकिन यादव बिरादरी के कुछ नेताओं और सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के परिवार के कुछ लोगों के बीजेपी में जाने और पिछले विधानसभा चुनाव में मिली सफलता को देखते हुए ऐसा लगता है कि बीजेपी की स्थिति बहुत कमजोर नहीं है.

PM Modi With CM Yogi

क्षेत्रों के हिसाब से कई राजनीति के मुद्दे भी तय होते हैं लेकिन कुछ मुद्दे ऐसे हैं जो पश्चिम से लेकर पूरब तक एक जैसे रहते हैं, सिर्फ उनका स्वरूप बदल जाता है. मसलन, किसान आंदोलन का असर पूरे राज्य में है लेकिन पश्चिमी यूपी और मध्य यूपी के कुछ हिस्सों को छोड़कर अन्य जगहों पर उसकी चर्चा कम से कम इस रूप में नहीं होती है कि वो वोटिंग पैटर्न पर असर डाल पाएगी. बुंदेलखंड, अवध और पूर्वांचल जैसे इलाकों में किसानों के दूसरे मुद्दे मसलन, महंगी खाद, महंगा डीजल और बिजली जैसे मुद्दे प्रभावी हैं.

पूर्वांचल में जातिगत समीकरण पश्चिम से बिल्कुल अलग दिख रहे हैं. पश्चिम में अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों में बीजेपी के प्रति ज्यादा रुझान देखा गया जबकि पूर्वांचल में समाजवादी पार्टी गठबंधन ने इस बार इसमें काफी सेंध लगी ली है. छुट्टा जानवरों की समस्या पूरे राज्य में है लेकिन बुंदेलखंड में यह समस्या खासतौर से है और ज्यादा पुरानी भी है. पर दूसरी बात यह भी है कि छुट्टा जानवरों की समस्या को ध्यान में रखकर अब तक शायद ही किसी नो वोट किया हो या आगे भी शायद ही करे.

हां, एक मुद्दा जो पश्चिम से लेकर पूर्व तक चल रहा है, वो है युवाओं के रोजगार और भर्तियों का मुद्दा. पश्चिमी यूपी के युवा भर्तियां न निकलने से जहां सरकार से खफा हैं, वहीं यूपी के अन्य हिस्सों के लोग भी इससे नाराज हैं और परीक्षाओं में देरी और धांधली को लेकर भी गुस्से में है. यह मुद्दा राजनीतिक विरोध और समर्थन का कारण बन सकता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में मुस्लिम महिलाओं के साथ सहानुभूति जताते हुए उन्हें अपने पक्ष में वोट देने के लिए प्रेरित किया और ऐसा कहा जा रहा है कि कुछ मुस्लिम महिलाओं ने बीजेपी को वोट दिया भी है. लेकिन ज्यादातर महिलाओं से बातचीत पर यही जवाब मिलता है कि ऐसा नहीं हुआ है, हां, कुछेक महिलाओं ने बीजेपी को वोट जरूर दिया है.

यूपी के बचे हुए चरणों, खासकर पूर्वांचल वालों इलाकों में पिछड़ी जातियों के जातीय समीकरण उस तरह बीजेपी के पक्ष में नहीं दिख रहे हैं जैसे कि पिछले तीन चुनावों यानी 2014 के लोकसभा चुनाव, 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में दिखे थे. लेकिन यह बात भी सही है कि बीजेपी इस सच्चाई से अनजान नहीं है और उसकी चुनावी रणनीतियां इन सब बातों को ध्यान में रखकर बन रही हैं.

समीरात्मज मिश्र वरिष्ठ पत्रकार हैं. लंबे समय तक बीबीसी में संवाददाता रहे हैं. इस समय जर्मनी के पब्लिक ब्रॉडकास्टर डीडब्ल्यू से जुड़े हैं और यूट्यूब चैनल ‘द ग्राउंड रिपोर्ट’ के संपादक हैं.

ये एना​लेसिस यूपी चुनाव को लेकर बन रही श्रृंखला का लेख है, इस श्रृंखला में आगे भी यूपी चुनाव 2022 के राजनैतिक समीकरणों और जनता के रुझान को लेकर के समीक्षा निंरतर जारी रहेगी।

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