कभी-कभी कुछ फिल्में ऐसी भी होती है जो सच्चाई से रुबरू करा जाती है और खास बात ये है कि वो हमारे लिए बेहद जरूरी भी होता है तो इन दिनों बॉलीवुड एक्टर आर माधवन की फिल्म ‘रॉकेट्री द नंबी इफेक्ट' की चर्चा हर तरफ हो रही है। ‘रॉकेट्री द नंबी इफेक्ट' हमारे देश के वैज्ञानिक नंबी नारायण की कहानी है, जिन्होंने देश को लिक्विड फ्यूल रॉकेट टेक्नोलॉजी दी है। फिल्म में साफ दिखाया गया है कि कैसे नंबी नारायण पर जासूसी और देशद्रोह का झूठा आरोप लगाया गया। साथ ही उनके द्वारा झेले गए दर्द को भी दिखाया गया है।
फिल्म की कहानी शुरू होती है नंबी नारायण के यौवन से। विक्रम साराभाई एक शानदार वैज्ञानिक की प्रतिभा को पहचानते हैं। इस बीच एपीजे अब्दुल कलाम को भी साथ काम करते देखा जा सकता है। नंबी दुनिया के बेहतरीन शिक्षण संस्थानों में पढ़ने जाते हैं। और नासा में भी नौकरी पा लेते है। लेकिन इसके बाद नासा से काफी कम भुगतान करने वाले इसरो में लौट जाते हैं। नंबी उपग्रहों को ले जाने के लिए एक रॉकेट विकसित कर रहे है। इसमें उन्हें सफलता भी मिलती है। वीआई एएस नाम के इस रॉकेट का परीक्षण भी सफल रहा है। यह रॉकेट अब तक इसरो में भेजे गए उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाने वाला एकमात्र रॉकेट है। अब इंटरव्यू के बहाने यह पूरी फिल्म आगे बढ़ती है।
बता दें कि देश की किसी भी बड़ी कंपनी ने फिल्म रॉकेट्री: द नंबी इफेक्ट पर पैसा नहीं लगाया है। फिल्म को यूएफओ मूवीज ने रिलीज किया है। जिस तरह नंबी नारायण कभी खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए व्यवस्था और न्यायपालिका से जूझ रहे थे, उसी तरह आर माधवन भी अकेले इस व्यवस्था से जूझ रहे हैं। नंबी को झूठे मामले में फंसाने वाला पुलिस अधिकारी अब जाकर तीस्ता सीतलवाड़ मामले में गिरफ्तार हुआ है।
यह फिल्म देश के अंतरिक्ष वैज्ञानिक के साथ हुए अन्याय की सच्ची घटना पर आधारित है। यह फिल्म सिर्फ एक फिल्म नहीं बल्कि एक एहसास है, जिसे आर माधवन ने अपना कर्तव्य समझते हुए बनाया है। फिल्म में नंबी नारायण के जीवन की परेशानियों को बखूबी दिखाया गया है। ऐसे में देश के हर युवा को यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए। और साथ हि ऐसी फिल्में बनती रहनी चाहिए...