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Helpless Hindus in Pakistan: बेटियों से घिनौना व्यवहार, नरक जैसा जीवन; हिन्दू शरणार्थियों की आपबीती

दिल्ली के हिंदू परिवार कैंप में रहने वाला सोनादास किसी तरह पाकिस्तान के सिंध प्रांत से अपनी और अपने परिवार की जान बचाकर दिल्ली पहुंचा। लेकिन वहां रह गए उसके परिजन वहां की उन गलियों के आतंक की कहानी कह रहे हैं।

Kunal Bhatnagar

पाकिस्तान के गुनाहों के कई सबूत दुनिया के सामने आ चुके हैं। वह भारत के साथ अपने संबंधों को लेकर अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुद को विक्टिम कहता है, लेकिन पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओं के साथ वहां कैसा व्यवहार किया जाता है? कुछ दिन पहले पाकिस्तान में एक हिंदू लड़की के साथ हुए बर्बर व्यवहार को पूरी दुनिया ने देखा। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान में हिंदुओं के हालात बेहद खराब स्थिति से गुजर रहे है।

पाकिस्तान में हिंदुओं पर अत्याचार

दिल्ली के हिंदू परिवार कैंप में रहने वाला सोनादास किसी तरह पाकिस्तान के सिंध प्रांत से अपनी और अपने परिवार की जान बचाकर दिल्ली पहुंचा। लेकिन वहां रह गए उसके परिजन वहां की उन गलियों के आतंक की कहानी कह रहे हैं। जहां सोनादास सालों से अपने परिवार और रिश्तेदारों के साथ रहता था। करीब 2 महीने पहले उनके मोबाइल पर वहां से ऐसा वीडियो आया था, जिसे देखकर उनके पैरों तले से जमीन ही खिसक गई। इस वीडियो में नजर आ रहा है कि मंदिर के बाहर की दीवार तोड़ती भीड़ अंदर जा रही है।

नरक का जीवन जीने को मजबूर

सोनादास की तरह, पाकिस्तान में अपमान और नरक का जीवन व्यतीत करने वाले अधिकांश परिवारों को जब लगा कि अगले कुछ दिनों में उनकी स्थिति ऐसी हो जाएगी कि उन्हें परिवार सहित मौत के घाट उतार दिया जाएगा, तो उन्होंने पाकिस्तान आने का फैसला किया।

हिन्दू परिवारों की बेटियों के साथ घिनौना व्यवहार

किसी तरह वे भारत तो आ गए, लेकिन वहां से भारत न आ सकने वाले उनके परिजनों के साथ अन्याय और क्रूरता की कहानी पहले से भी ज्यादा क्रूर हो गई। पाकिस्तान के विभिन्न प्रांतों में बने हिंदू मंदिरों, देवी-देवताओं की मूर्तियों को तोड़ा जा रहा है। घर की गलियों के बाहर, चौराहे पर हिन्दू परिवारों की बेटियों के साथ घिनौना व्यवहार होता है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।

नर्क की जिंदगी जीने को मजबूर परिवार के लोग

जो हिंदू परिवार किसी तरह पाकिस्तान से भारत आ गए, वे अब दोबारा वहां जाने का सपना भी नहीं देखते है। इसके बावजूद उनके परिवारों के कई सदस्य अभी भी वहीं फंसे हुए हैं और नर्क की जिंदगी जीने को मजबूर हैं।

यहां रहने वाले लोग अपनी आखिरी सांस तक इस अस्थायी छावनी के घरों पर शान से लहराते तिरंगे से अलग नहीं होना चाहते हैं और उनकी भी एक ख्वाहिश है कि उनकी आने वाली पीढ़ियां इस देश की मिट्टी में खेलकर बड़ी हों और इसका नाम रौशन करें।

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